चेन्नई : तमिलनाडु सरकार ने रविवार को उस फैसले को पलट दिया, जिसके तहत मुदुरै जिला प्रशासन ने शैव पंथ की एक परंपरा, पालकी में शोभायात्रा, पर रोक लगा दी थी. इसके तहत इस पंथ के मानने वाले श्रद्धालु अपने गुरु को पालकी में बिठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं. धरमापुरम अधीनम का शैव सम्प्रदाय के लोगों के लिए वही महत्व है, जो कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी का है.
श्रद्धालुओं ने अपील की थी कि इस प्राचीन शैव मठ की परंपरा का सम्मान किया जाना चाहिए, न कि विरोध. धरमापुरम अधीनम के महंत को अनुयायियों द्वारा पालकी में लेकर निकाले जाने वाली वार्षिक 'पट्टिना प्रवेशम' शोभायात्रा पर राजस्व अधिकारियों के रोक लगाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए मदुरै अधीनम ने कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को हस्तक्षेप करना चाहिए और कार्यक्रम का आयोजन होने देना सुनिश्चित करना चाहिए. कार्यक्रम मई के अंतिम सप्ताह में होना है.
मदुरै अधीनम ने दावा किया कि यह कार्यक्रम लोगों की अपने गुरु के प्रति सम्मान का प्रतीक है और वे स्वेच्छा से गुरु को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं. उन्होंने कहा कि कार्यक्रम सदियों से होता आ रहा है और इसे ब्रिटिश राज के दौरान तथा देश की आजादी के बाद सभी मुख्यमंत्रियों ने भी अनुमति दी थी.
उन्होंने कहा, "यह दावा करते हुए कि उक्त परंपरा मानव की गरिमा को प्रभावित करती है, कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाना निंदनीय है. धार्मिक परंपराओं में हस्तक्षेप करना निंदनीय है. मैं मुख्यमंत्री एम के स्टालिन से पट्टिना प्रवेशम कराने की जिम्मेदारी लेने का आग्रह करता हूं."
उल्लेखनीय है कि मयीलादुथुरई जिले के राजस्व अधिकारियों ने संविधान के अनुच्छेद 23 का हवाला देते हुए निषेधाज्ञा जारी कर दी थी और कहा था कि कार्यक्रम नहीं किया जा सकता, क्योंकि लोगों से पालकी ढोने को कहा जाता है.