सागर। राजनीति में परिवारवाद को हमेशा कुरीति की तरह पेश किया जाता है, लेकिन हकीकत ये है कि परिवारवाद के बिना राजनीति करना ना तो राजनीतिक दलों को संभव है और ना ही राजनेताओं को. हम सागर जिले के ऐसे परिवार की राजनीतिक विरासत की चर्चा कर रहे हैं. जिसकी विरासत इतनी समृद्ध है कि एक ही परिवार के तीन भाईयों ने लगातार एक ही विधानसभा का तीन बार प्रतिनिधित्व किया और चौथा भाई सागर से सांसद भी चुना गया. इन भाईयों की उपबल्धि इससे कहीं ज्यादा है.
सागर नगर निगम में महापौर, जिला पंचायत सदस्य, जनपद अध्यक्ष और पार्षद भी इस परिवार के सदस्य चुने गए हैं. भले ही आज इस परिवार की विरासत की पूंजी को राजनीतिक तौर पर भले ही कोई आगे ना बढ़ा रहा हो, लेकिन सागर की सियासत में इस परिवार का नाम उनकी विशाल पारिवारिक विरासत के लिए सबसे पहले लिया जाता है.
खटीक परिवार की बेमिसाल विरासत: सागर का सर्राफा बाजार जिसे बड़ा बाजार भी कहा जाता है. यहां के मशहूर खटीक परिवार की राजनीतिक विरासत बेमिसाल है. यहां कुंदनलाल खटीक और रूकमणी देवी के पांच बेटों ने किसी न किसी क्षेत्र में परिवार का नाम रोशन किया. परिवार के पांच बेटों में से चार बेटों ने सियासत में नाम कमाया और विधायक, महापौर और सांसद जैसे पद भी हासिल किए. तो परिवार के एक बेटे को सागर के सबसे पहले आर्थोपैडिक सर्जन होने का गौरव हासिल है.
परिवार के लीलाधर खटीक,उत्तमचंद्र खटीक,लोकमन खटीक तीनों भाई एक ही विधानसभा से विधायक चुने गए. इतना ही नहीं इन्हीं भाईयो में से कोई नगर निगम का महापौर भी बना, तो शंकरलाल खटीक सांसद भी बने. जिला पंचायत सदस्य, जनपद अध्यक्ष, महापौर और पार्षद जैसे पदों की तो गिनती ही नहीं है.
नरयावली विधानसभा पर 15 साल रहा कब्जा: सागर जिले की नरयावली विधानसभा की बात करें तो ये सागर शहर का एक तरह से उपनगरीय इलाका है. सेना की छावनी शहर को दो हिस्सों में बांटती है. एक तरफ सागर शहर है, तो दूसरी तरफ नरयावली विधानसभा का सबसे बड़ा हिस्सा मकरोनिया नगर पालिका है. नरयावली विधानसभा की बात करें तो 1997 के परिसीमन के बाद नरयावली विधानसभा अस्तित्व में आई. नरयावली विधानसभा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित विधानसभा थी.
नरयावली विधानसभा के वजूद में आते ही कांग्रेस ने अपने खुरई विधायक स्व. लीलाधर खटीक को प्रत्याशी बनाया, जो 1972 में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट से विधायक बने थे. नरयावली विधानसभा का 1977 में हुआ पहला चुनाव स्वर्गीय लीलाधर खटीक ने जीता. 1980 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने टिकट काटा तो उनके छोटे भाई उत्तमचंद्र खटीक को टिकट दे दिया. ये चुनाव फिर कांग्रेस के उत्तमचंद्र खटीक जीत गए. स्वर्गीय अर्जुन सिंह के करीबी उत्तमचंद्र खटीक विधायक रहते हुए मध्यप्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं, लेकिन 1985 चुनाव में कांग्रेस ने उत्तमचंद्र खटीक का टिकट काटकर उनके छोटे भाई लोकमन खटीक को प्रत्याशी बना दिया और लोकमन खटीक भी चुनाव जीतने में सफल रहे.
एक भाई बने सागर संसदीय सीट से सांसद: तीन भाई तो कांग्रेस के टिकट से लगातार एक ही सीट से विधायक बने और नरयावली विधानसभा पर 13 साल खटीक परिवार का ही कब्जा रहा है. इतना ही नहीं इन पांच भाईयों में से एक भाई शंकरलाल खटीक भाजपा से सागर के सांसद चुने गए. शंकरलाल खटीक 9वीं विधानसभा में 1989 में सागर संसदीय सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते और 1991 तक सागर सीट के सांसद रहे. इन पांच भाईयों में सिर्फ एक भाई ऐसे थे, जिनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन वो पढ़ाई में तेज थे और डाक्टर बने. उनका नाम सागर के सबसे पहले हड्डीरोग विशेषज्ञ के तौर पर याद किया जाता है. जिन्हें सागर के लोग डाक्टर दादा के नाम से पुकारते थे.
विधायक के अलावा सागर नगर निगम के महापौर भी बने: 1980 से 1985 तक नरयावली विधायक रहे उत्तमचंद्र खटीक 1985 से लेकर 1987 तक सागर नगर निगम के महापौर भी बने. इसके बाद उनके भाई लोकमन खटीक 1995 में सागर नगर निगम के महापौर चुने गए. जो 1997 तक रहे और फिर 1998 से 2000 तक नगर निगम के महापौर का पद संभाला.
क्या कहते हैं परिजन: अपने परिवार की समृद्ध राजनीतिक विरासत पर चर्चा करते हुए खटीक परिवार के ज्वाला खटीक कहते हैं कि सागर शहर में राजनीतिक उत्थान की बात की जाए तो हमारे परिवार को उसका सबसे बड़ा क्रेडिट जाता है. हमारी दादी के पांच बेटे थे, जिनके चार बेटे विधायक सांसद, महापौर रहे हैं. कई सालों तक मंडी अध्यक्ष, जिला पंचायत, जनपद पंचायत भी रहे हैं. हमारे छोटे और बडे़ भाई पार्षद भी रहे हैं. हमारा पूरा राजनीतिक परिवार रहा है. मेरे पिता स्वर्गीय उत्तमचंद्र खटीक दो बार विधायक, दो बार महापौर, 25 साल मंडी में रहे. जिला पंचायत और जनपद पंचायत में रहे हैं.
मेरे बडे़ पापा लोकमन खटीक दो बार विधायक और दो बार महापौर रहे हैं. उनसे बडे़ बाबा लीलाधर खटीक दो बार विधायक रहे हैं. उनसे बडे़ पापा दो बार विधायक रहे हैं. लोग बोलते थे कि धन्य हैं ऐसी मां जिनके पांच बेटों में से चार बेटे राजनीति की विरासत संभाल रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं. मेरे जो हमारे पांचवे नंबर के दादा जी थे, वो मेरे पिताजी से बडे़ थे. जो सागर के सबसे पहले हड्डीरोग विशेषज्ञ रहे हैं. हमारे परिवार ने सागर में हमेशा समाजसेवा के काम को आगे बढ़ाया है.