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ये हैं पर्यावरण के असली रक्षक! बरगद की जटाओं से खड़ा कर दिया जंगल, जानिए पूरी कहानी - Real protector of environment in Chhindwara

छिंदवाड़ा के बढ़चिचोली गांव के लोगों ने तेजी से खत्म हो रहे बरगद के पेड़ को बचाने का जिम्मा उठाया है. यही वजह है कि आज पूरे गांव में बरगद के पेड़ लहलहा रहे हैं. पर्यावरण के हितों की रक्षा में लगे ग्रामीणों के लिए ये बहुत बड़ी जीत है. ग्रामीण करीब 5 सालों से इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेड़ों को बचा रहे हैं. खास बात यह है कि उन्होंने कभी भी इसे प्रसारित नहीं किया.

story of environment protectors of Chhindwara
बरगद की जटाओं से खड़ा कर दिया जंगल
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Published : Jun 7, 2023, 2:14 PM IST

Updated : Jun 7, 2023, 6:19 PM IST

ये हैं पर्यावरण के असली रक्षक

छिंदवाड़ा। पौधारोपण के बाद फोटो सेशन और वाहवाही लूटने की खबरें बहुत सामने आती हैं. लेकिन वे पौधे, पेड़ बनते हैं या नहीं इसका ठिकाना नहीं होता. लेकिन कुछ ऐसे पर्यावरण प्रेमी भी हैं जो काम को प्रचारित करने की बजाए हकीकत में अमलीजामा पहना रहे हैं. बात मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के बढ़चिचोली की है, जहां पर बरगद के पेड़ से निकलने वाली जटाओं को जड़ों में परिवर्तित कर गांव वालों ने करीब 400 पेड़ बचाने का काम किया है.

जटाओं को जड़ में करते हैं परिवर्तित: बढ़चिचोली गांव में करीब 5 एकड़ जमीन में बरगद के पेड़ों का जंगल है. गांव वाले बताते हैं कि ''पहले यहां पर भयंकर घना जंगल हुआ करता था, जैसी जैसी आबादी बढ़ ही जंगल कम होता गया. गांव की पहचान और विरासत बरगद के पेड़ कम होते चले गए, इन्हें बचाने के लिए ग्रामीणों ने बरगद के पेड़ों से निकलने वाली जटाओं को जड़ में परिवर्तित किया और बक्से बनाकर उनमें मिट्टी भरकर जटाओं को डाला जिससे जटाएं पेड़ बन गई.''

बरगद की जटाओं से करीब 400 पेड़ हुए तैयार: पेड़ों को सहेजने और उनकी देखभाल करने वाले ग्रामीणों ने बताया कि ''अगर एक बरगद का पौधा लगाते हैं तो उसे पेड़ बनने में करीब 10 साल तक का समय लग जाता है, लेकिन बरगद के पेड़ से निकलने वाली जटाओं को अगर मिट्टी से मिला दिया जाए तो 2 से 3 साल में बड़े पेड़ तैयार हो जाते हैं. इसी तकनीक का उपयोग करके उन्होंने बिल्डिंग में लगने वाले कॉलम के बॉक्स और बक्सों में मिट्टी भरकर बरगद की जटाओं को डाल दिया. इस तकनीक में करीब 2 से 3 महीने तक जटाओं को मिट्टी में रखना होता है और फिर उसके बाद जटा तने का रूप ले लेती हैं, जिससे पेड़ 2 से 3 साल में तैयार हो जाते हैं. इसी तकनीक के सहारे ग्रामीणों ने करीब 400 से ज्यादा बरगद के पेड़ तैयार कर लिए हैं.''

बरगद की जड़ धार्मिक और आयुर्वेदिक रुप से है लाभकारी: बरगद के पेड़ की जटाओं का काफी धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व है. बताया जाता है कि बरगद की जटाएं ग्रहों की शांति करने जैसे कामों में महत्वपूर्ण हैं. वैदिक ज्योतिष के अनुसार बरगद के पेड़ पर मंगल का आधिपत्य होता है, इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए बरगद की जड़ धारण करने का विधान है. यदि कोई भी वट वृक्ष की जड़ को धारण करता है तो उसकी जन्मकुंडली में मंगल से जुड़े समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं.

पेड़ों को बचाने के प्रयास जारी: ग्रामीणों का कहना है कि वे करीब 5 सालों से इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेड़ों को बचा रहे हैं. लेकिन कभी भी उन्होंने इसे प्रसारित नहीं किया. ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव का नाम बढ़चिचोली है और गांव की पहचान कायम रहने के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी बना रहे इसलिए भी लगातार इस तकनीक से पेड़ों को बचा रहे हैं और लोगों को इस तकनीक के उपयोग की सलाह भी दे रहे हैं.

Also Read: पेड़ संरक्षण से जुड़ी अन्य खबरें

धीमी गति से बढ़ते हैं बरगद के पेड़: बरगद के पेड़ जिसे भारतीय बरगद या फिकस बेंघालेंसिस के रूप में भी जाना जाता है. बरगद, अंजीर के पेड़ की एक प्रजाति है जो भारत और बांग्लादेश में मुख्यता पाए जाते हैं. बरगद अपने बड़े फैले हुए चंदवा (तने के नीचे फैली हुई जड़े) और हवाई जनों (छातानुमा) के लिए जाने जाते हैं. बरगद के पेड़ को धीमी गति से बढ़ने वाला पेड़ भी माना जाता है. जिसे अपने पूर्णरूप तक पहुंचने में कई दशक लग सकते हैं. बरगद के पेड़ आम तौर पर नदी के किनारे जंगल में और उष्णकटिबंधीय उपोष्ण कटिबंध क्षेत्रों में खुले क्षेत्रों में पाए जाते हैं. उनकी व्यवहारिक और दोनों प्रकार के उपयोग हैं. बरगद के पेड़ की ऊंचाई 30 मीटर से अधिक और 100 मीटर व्यास में फैल सकती है.

ये हैं पर्यावरण के असली रक्षक

छिंदवाड़ा। पौधारोपण के बाद फोटो सेशन और वाहवाही लूटने की खबरें बहुत सामने आती हैं. लेकिन वे पौधे, पेड़ बनते हैं या नहीं इसका ठिकाना नहीं होता. लेकिन कुछ ऐसे पर्यावरण प्रेमी भी हैं जो काम को प्रचारित करने की बजाए हकीकत में अमलीजामा पहना रहे हैं. बात मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के बढ़चिचोली की है, जहां पर बरगद के पेड़ से निकलने वाली जटाओं को जड़ों में परिवर्तित कर गांव वालों ने करीब 400 पेड़ बचाने का काम किया है.

जटाओं को जड़ में करते हैं परिवर्तित: बढ़चिचोली गांव में करीब 5 एकड़ जमीन में बरगद के पेड़ों का जंगल है. गांव वाले बताते हैं कि ''पहले यहां पर भयंकर घना जंगल हुआ करता था, जैसी जैसी आबादी बढ़ ही जंगल कम होता गया. गांव की पहचान और विरासत बरगद के पेड़ कम होते चले गए, इन्हें बचाने के लिए ग्रामीणों ने बरगद के पेड़ों से निकलने वाली जटाओं को जड़ में परिवर्तित किया और बक्से बनाकर उनमें मिट्टी भरकर जटाओं को डाला जिससे जटाएं पेड़ बन गई.''

बरगद की जटाओं से करीब 400 पेड़ हुए तैयार: पेड़ों को सहेजने और उनकी देखभाल करने वाले ग्रामीणों ने बताया कि ''अगर एक बरगद का पौधा लगाते हैं तो उसे पेड़ बनने में करीब 10 साल तक का समय लग जाता है, लेकिन बरगद के पेड़ से निकलने वाली जटाओं को अगर मिट्टी से मिला दिया जाए तो 2 से 3 साल में बड़े पेड़ तैयार हो जाते हैं. इसी तकनीक का उपयोग करके उन्होंने बिल्डिंग में लगने वाले कॉलम के बॉक्स और बक्सों में मिट्टी भरकर बरगद की जटाओं को डाल दिया. इस तकनीक में करीब 2 से 3 महीने तक जटाओं को मिट्टी में रखना होता है और फिर उसके बाद जटा तने का रूप ले लेती हैं, जिससे पेड़ 2 से 3 साल में तैयार हो जाते हैं. इसी तकनीक के सहारे ग्रामीणों ने करीब 400 से ज्यादा बरगद के पेड़ तैयार कर लिए हैं.''

बरगद की जड़ धार्मिक और आयुर्वेदिक रुप से है लाभकारी: बरगद के पेड़ की जटाओं का काफी धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व है. बताया जाता है कि बरगद की जटाएं ग्रहों की शांति करने जैसे कामों में महत्वपूर्ण हैं. वैदिक ज्योतिष के अनुसार बरगद के पेड़ पर मंगल का आधिपत्य होता है, इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए बरगद की जड़ धारण करने का विधान है. यदि कोई भी वट वृक्ष की जड़ को धारण करता है तो उसकी जन्मकुंडली में मंगल से जुड़े समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं.

पेड़ों को बचाने के प्रयास जारी: ग्रामीणों का कहना है कि वे करीब 5 सालों से इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेड़ों को बचा रहे हैं. लेकिन कभी भी उन्होंने इसे प्रसारित नहीं किया. ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव का नाम बढ़चिचोली है और गांव की पहचान कायम रहने के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी बना रहे इसलिए भी लगातार इस तकनीक से पेड़ों को बचा रहे हैं और लोगों को इस तकनीक के उपयोग की सलाह भी दे रहे हैं.

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धीमी गति से बढ़ते हैं बरगद के पेड़: बरगद के पेड़ जिसे भारतीय बरगद या फिकस बेंघालेंसिस के रूप में भी जाना जाता है. बरगद, अंजीर के पेड़ की एक प्रजाति है जो भारत और बांग्लादेश में मुख्यता पाए जाते हैं. बरगद अपने बड़े फैले हुए चंदवा (तने के नीचे फैली हुई जड़े) और हवाई जनों (छातानुमा) के लिए जाने जाते हैं. बरगद के पेड़ को धीमी गति से बढ़ने वाला पेड़ भी माना जाता है. जिसे अपने पूर्णरूप तक पहुंचने में कई दशक लग सकते हैं. बरगद के पेड़ आम तौर पर नदी के किनारे जंगल में और उष्णकटिबंधीय उपोष्ण कटिबंध क्षेत्रों में खुले क्षेत्रों में पाए जाते हैं. उनकी व्यवहारिक और दोनों प्रकार के उपयोग हैं. बरगद के पेड़ की ऊंचाई 30 मीटर से अधिक और 100 मीटर व्यास में फैल सकती है.

Last Updated : Jun 7, 2023, 6:19 PM IST
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