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MP: साल 2023 में चुनावी मुद्दा बनेंगे भोपाल के खत्म होते कब्रिस्तान, भोपाल में दफन होना है तो मिट्टी भी लाइए

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Published : Feb 6, 2023, 10:47 PM IST

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार भोपाल के खत्म होते कब्रिस्तान भी मुद्दा बन सकते हैं. भोपाल के नौजवान सैय्यद फैज अली और उनके साथियों ने एक कैम्पेन शुरू किया है. यह अभियान मिट्टी जुटाने का दफन की मिट्टी बचाने के लिए है. भोपाल देश दुनिया का पहला शहर होगा जहां कब्र की जमीन तैयार करने मिट्टी जुटाई जा रही है.

bhopal cemetery issue
भोपाल के खत्म होते कब्रिस्तान
भोपाल के खत्म होते कब्रिस्तान

भोपाल। जिंदा इंसानों के लिए राजनीतिक दल तमाम घोषणाएं करते हैं, लेकिन क्या चुनावी साल में राजनीतिक दलों के एजेंडे में मौत के बाद का प्लान भी होगा. इस सवाल पर आप चौंक जाएं इससे पहले ये जान लें कि आपके हरे भरे भोपाल में कब्जों ने कब्रों को भी नहीं छोड़ा है. मुमकिन है कि अगले कुछ सालों में मुस्लिम वर्ग में जीते जी इंसान की सबसे बड़ी फिक्र ये होगी कि मरने के बाद क्या ठीक-ठाक कब्र मिल पाएगी. भोपाल देश दुनिया का पहला शहर होगा जहां कब्र की जमीन तैयार करने मिट्टी जुटाई जा रही है.

दफन के लिए मिट्टी लाइए: सियासी दलों के सामने चुनावी साल में एक अभियान सवाल बनकर खड़ा है. अभियान मिट्टी जुटाने का दफन की मिट्टी बचाने के लिए. भोपाल के नौजवान सैय्यद फैज़ अली और उनके साथियों ने कैम्पेन इसी मकसद से शुरु किया है कि किसी तरह दफन के लिए आ रहे जनाजों को जमीन मिल सके. सैय्यद फैज कहते हैं लोगों को जागरुक होना है ये समझना है कि पक्की कब्रें कैसे लोगों के लिए मुश्किल बन रही है. इसीलिए हमने ये कैम्पेन शुरु किया कि एक तगाड़ी मिट्टी दीजिए ताकि कब्र की जमीन बचाई जा सके, लेकिन क्या लड़ाई इतनी आसान है. फैज कहते हैं इसमें हमें प्रशासन और सियासी दलों की मदद की बहुत जरुरत है. उन्हें सामने आना चाहिए. बाकी ये नौबत आ जाए कि भोपाल में किसी को दफनाने जमीन ही ना मिले, इसलिए हमने मिट्टी मांगे कब्रिस्तान ये अभियान छेड़ा है. हम वक्फ बोर्ड भी गए कि कब्रिस्तान का नामांकन हो सके और अब बड़ा बाग कब्रिस्तान से ये अभियान शुरु करके भोपाल के हर कब्रिस्तान तक जाएंगे.

दफन की दो गज जमीन भी गई कहां: तो कब्रिस्तानों की जमीन गई कहां. आपके इस सवाल का जवाब ये है कि आधी जमीन पर कब्जे की दुकान और मकान बन गए जो ज़मीन बाकी हैं वहां पक्की कब्रों की वजह लाशों को दफनाना मुश्किल हो गया है. ईटीवी भारत जब भोपाल के सबसे पुराने और बड़े बड़ा बाग कब्रिस्तान पहुंचा तो यहां कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले अनीस भाई के लफ्ज काबिल ए गौर थे. अनीस भाई ने कहा, इस वक्त अगर कोई नया जनाजा आ जाए तो हमें किसी की कब्र खोदनी पड़ेगी. मुश्किल ये है कि कब्र खोदने में लाठी डंडे निकल आते हैं.

Guna: मुस्लिम समुदाय की महिला को मंदिर के सामने दफनाने की तैयारी, जानें आगे क्या हुआ...

पक्की कब्रें जायज़ नहीं: कब्रिस्तानों को बचाने के इस अभियान में जुटे राशिद अंसारी इस्लाम के नजरिए से भी बताते हैं कि कुरान शरीफ ये कहता है कि पक्की कब्रें जायज नहीं है. अल्लाह फरमाते हैं कि इसी मिट्टी में तुम्हे पैदा किया इसी मिट्टी में तुम्हे दफनाते हैं और इसी मिट्टी से हम उठाए जाएंगे. राशिद ने ईटीवी भारत के जरिए राजनीतिक दलों से कलेक्टर एसपी से अपील की है कि मुस्लिम तबके के लिए नई जमीन अलॉट की जाए.

33 एकड़ में फैला कब्रिस्तान 13 एकड़ ही बचा: कब्रिस्तान में कब्जे का अंदाजा इस बात से लगाइए 33 एकड़ 37 डेसीमल में फैला भोपाल का बड़ा बाग कब्रिस्तान अब अब 13 एकड़ ही बचा है. 16 दरवाज़े वाले इस कब्रिस्तान के बड़े हिस्से में लोगों ने मकान तान लिए हैं. भोपाल में किसी समय 180 कब्रिस्तान हुआ करते थे जो अब सिमट कर चालीस के आस पास बाकी रहे है.

अब कब्रिस्तान की लड़ाई में आरिफ मसूद की एंट्री: कब्रिस्तान बचाने के इस संघर्ष में अब आरिफ मसूद भी एंट्री ले रहे हैं. मसूद का कहना है कि ये चुनावी नहीं इंसानियत की लड़ाई है. कब्रिस्तानों के कब्जे हटाने प्रशासन पर तो दबाव बनाएंगे ही इसके अलावा लोगों के बीच भी जब जाएंगे तो उन्हें समझाएंगे कि पक्की कब्रें तो कुरान शरीफ में भी जायज़ नहीं हैं.

भोपाल के खत्म होते कब्रिस्तान

भोपाल। जिंदा इंसानों के लिए राजनीतिक दल तमाम घोषणाएं करते हैं, लेकिन क्या चुनावी साल में राजनीतिक दलों के एजेंडे में मौत के बाद का प्लान भी होगा. इस सवाल पर आप चौंक जाएं इससे पहले ये जान लें कि आपके हरे भरे भोपाल में कब्जों ने कब्रों को भी नहीं छोड़ा है. मुमकिन है कि अगले कुछ सालों में मुस्लिम वर्ग में जीते जी इंसान की सबसे बड़ी फिक्र ये होगी कि मरने के बाद क्या ठीक-ठाक कब्र मिल पाएगी. भोपाल देश दुनिया का पहला शहर होगा जहां कब्र की जमीन तैयार करने मिट्टी जुटाई जा रही है.

दफन के लिए मिट्टी लाइए: सियासी दलों के सामने चुनावी साल में एक अभियान सवाल बनकर खड़ा है. अभियान मिट्टी जुटाने का दफन की मिट्टी बचाने के लिए. भोपाल के नौजवान सैय्यद फैज़ अली और उनके साथियों ने कैम्पेन इसी मकसद से शुरु किया है कि किसी तरह दफन के लिए आ रहे जनाजों को जमीन मिल सके. सैय्यद फैज कहते हैं लोगों को जागरुक होना है ये समझना है कि पक्की कब्रें कैसे लोगों के लिए मुश्किल बन रही है. इसीलिए हमने ये कैम्पेन शुरु किया कि एक तगाड़ी मिट्टी दीजिए ताकि कब्र की जमीन बचाई जा सके, लेकिन क्या लड़ाई इतनी आसान है. फैज कहते हैं इसमें हमें प्रशासन और सियासी दलों की मदद की बहुत जरुरत है. उन्हें सामने आना चाहिए. बाकी ये नौबत आ जाए कि भोपाल में किसी को दफनाने जमीन ही ना मिले, इसलिए हमने मिट्टी मांगे कब्रिस्तान ये अभियान छेड़ा है. हम वक्फ बोर्ड भी गए कि कब्रिस्तान का नामांकन हो सके और अब बड़ा बाग कब्रिस्तान से ये अभियान शुरु करके भोपाल के हर कब्रिस्तान तक जाएंगे.

दफन की दो गज जमीन भी गई कहां: तो कब्रिस्तानों की जमीन गई कहां. आपके इस सवाल का जवाब ये है कि आधी जमीन पर कब्जे की दुकान और मकान बन गए जो ज़मीन बाकी हैं वहां पक्की कब्रों की वजह लाशों को दफनाना मुश्किल हो गया है. ईटीवी भारत जब भोपाल के सबसे पुराने और बड़े बड़ा बाग कब्रिस्तान पहुंचा तो यहां कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले अनीस भाई के लफ्ज काबिल ए गौर थे. अनीस भाई ने कहा, इस वक्त अगर कोई नया जनाजा आ जाए तो हमें किसी की कब्र खोदनी पड़ेगी. मुश्किल ये है कि कब्र खोदने में लाठी डंडे निकल आते हैं.

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पक्की कब्रें जायज़ नहीं: कब्रिस्तानों को बचाने के इस अभियान में जुटे राशिद अंसारी इस्लाम के नजरिए से भी बताते हैं कि कुरान शरीफ ये कहता है कि पक्की कब्रें जायज नहीं है. अल्लाह फरमाते हैं कि इसी मिट्टी में तुम्हे पैदा किया इसी मिट्टी में तुम्हे दफनाते हैं और इसी मिट्टी से हम उठाए जाएंगे. राशिद ने ईटीवी भारत के जरिए राजनीतिक दलों से कलेक्टर एसपी से अपील की है कि मुस्लिम तबके के लिए नई जमीन अलॉट की जाए.

33 एकड़ में फैला कब्रिस्तान 13 एकड़ ही बचा: कब्रिस्तान में कब्जे का अंदाजा इस बात से लगाइए 33 एकड़ 37 डेसीमल में फैला भोपाल का बड़ा बाग कब्रिस्तान अब अब 13 एकड़ ही बचा है. 16 दरवाज़े वाले इस कब्रिस्तान के बड़े हिस्से में लोगों ने मकान तान लिए हैं. भोपाल में किसी समय 180 कब्रिस्तान हुआ करते थे जो अब सिमट कर चालीस के आस पास बाकी रहे है.

अब कब्रिस्तान की लड़ाई में आरिफ मसूद की एंट्री: कब्रिस्तान बचाने के इस संघर्ष में अब आरिफ मसूद भी एंट्री ले रहे हैं. मसूद का कहना है कि ये चुनावी नहीं इंसानियत की लड़ाई है. कब्रिस्तानों के कब्जे हटाने प्रशासन पर तो दबाव बनाएंगे ही इसके अलावा लोगों के बीच भी जब जाएंगे तो उन्हें समझाएंगे कि पक्की कब्रें तो कुरान शरीफ में भी जायज़ नहीं हैं.

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