नई दिल्ली : तालिबान के हमले के बाद अफगानिस्तान से भागे लोगों में अफगान कमांडो (Afghan commandos) शामिल हैं, जिन्हें विशेष रूप से यूएस सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (Central Intelligence Agency) द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है, जिनका तालिबान द्वारा विशेष रूप से पीछा किया जा रहा है और उनको निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन अब यह सामने आया है कि लगभग 20,000 बल में से अधिकांश ने सफलतापूर्वक अमेरिका में प्रवेश कर लिया है.
एक उच्च-स्तरीय सूत्र जो पिछली सरकारों में देश के खुफिया और सुरक्षा अभियानों (security operations) से बहुत निकटता से जुड़ा था ने ईटीवी भारत को बताया कि लगभग 90 प्रतिशत अफगान विशेष बल कमांडो (Afghan special forces commandos) जिन्हें सीआईए द्वारा प्रशिक्षित और सुसज्जित किया गया था, उन्हें कतर की माध्यम से सफलतापूर्वक निकाल लिया गया है.
सूत्र काबुल में एक अज्ञात स्थान से ईटीवी भारत के साथ बात कर रहा था और तालिबान द्वारा प्रतिशोध के डर से नाम नहीं लेना चाहता था, जो पहले से ही काबुल में 33 सदस्यीय अंतरिम सरकार ( interim government) की स्थापना कर चुके हैं.
तालिबान की सरकाम जिसमें 30 पश्तून, दो ताजिक और एक उज्बेक शामिल है. लेकिन कोई शिया, हजारा, बलूच, तुर्कमेन, महिला या गैर-मुसलमान शामिल नहीं है.
सूत्र ने कहा कि अमेरिका के आह्वान पर युद्ध से तबाह देश के इलाके से परिचित हजारों युद्ध-कठोर अफगान लड़ाकों की उपलब्धता, जिनका इस्तेमाल किसी भी सैन्य अभियान ( military operation ) के लिए किया जा सकता है, उन्हें अमेरिका में बुलाना चाहता है. यह अफगानिस्तान में अमेरिका के लिए एक बड़ा सामरिक लाभ (huge tactical advantage) है.
कुशल सेनानियों (skilled fighters) की एक सेना होने के अलावा वे पंजशीर-मुख्यालय में राष्ट्रीय प्रतिरोध बल (National Resistance Force) के नेतृत्व में जरूरत पड़ने पर लाभकारी हो सकते हैं.
यह एक खुला रहस्य है कि लड़ाकों के इस विशेष समूह ने अशरफ गनी के नेतृत्व वाली सरकार (Ashraf Ghani-led government) के अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों (Afghan National Security Forces ) के अभियानों का नेतृत्व किया, जबकि नियमित ANSF सैनिकों ने बैक-अप सहायता प्रदान की.
उन्हें सीआईए द्वारा तुलनात्मक रूप से उच्च वेतन का भुगतान किया गया, यह बल राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (National Directorate of Security) के तहत आयोजित किया गया था, जो पूर्व-तालिबान सरकारों के समय में अफगानिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान के खुफिया और सुरक्षा तंत्रिका केंद्र था.
संचालन के क्षेत्र के आधार पर एनडीएस की चार मुख्य इकाइयां संगठित थीं. NDS-01 मध्य अफगानिस्तान में संचालित होता है, पूर्व में NDS-02, दक्षिण में NDS-03 (जिसे कंधार स्ट्राइक फोर्स (Kandahar Strike Force) भी कहा जाता है) जबकि NDS-04 को उत्तर में संचालित करना अनिवार्य था.
कई मामलों में, ये एनडीएस-नियंत्रित कमांडो विशिष्ट इकाइयों का हिस्सा बनते थे. उदाहरण के लिए, खोस्त प्रांत में वे खोस्त सुरक्षा बल (Khost Protection Force ) के तहत आयोजित किए गए थे, जो खोस्त शहर के बाहरी इलाके में स्थित सीआईए बेस कैंप चैपमैन से संचालित होता था.
यह पूछे जाने पर कि क्या तालिबान के हालिया हमले के दौरान केपीएफ ने तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी, सूत्र ने कहा, 'केपीएफ ने अपनी आखिरी गोली तक लड़ाई लड़ी. और फिर उन्होंने स्थानीय तालिबान के साथ बातचीत शुरू की.
इन सभी को काबुल हवाईअड्डे तक सुरक्षित भागने का रास्ता दिया गया. वहां से उन सभी को कतर और फिर अमेरिका ले जाया गया.
आश्चर्य की बात नहीं है कि गुप्त मिशनों और कानून की सीमा से परे संचालन के लिए जाने जाने वाले, इन कमांडो ने पिछले कुछ वर्षों में अवैध हत्याओं, अधिकारों के दुरुपयोग और उनके खिलाफ क्रूर हिंसा के आरोपों का सामना करना पड़ा.
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UN mission in Afghanistan) ने इन एनडीएस विशेष बलों के संचालन के बारे में कहा कि वे अंतर्राष्ट्रीय सैन्य खिलाड़ियों के साथ समन्वयित प्रतीत होते हैं, जो कि कमांड की सामान्य सरकारी श्रृंखला के बाहर हैं.
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इस बीच मीडिया ने खबर दी है कि तालिबान के काबुल की ओर बढ़ने के बाद उज्बेकिस्तान भाग गए अफगान वायु सेना के पायलटों को जल्द ही कतर के दोहा में अमेरिकी बेस में स्थानांतरित किए जाने की उम्मीद है और जहां से उनकी आगे की यात्रा की योजना के अंत तक योजना बनाई जानी है.
इस सप्ताह लगभग 46 अफगान वायु सेना के विमानों ने वायु सेना के पायलटों, सैन्य कर्मियों और उनके परिवारों के सदस्यों के साथ उज्बेकिस्तान में उड़ान भरी थी.
सिर्फ ये लड़ाके ही नहीं, पिछले कुछ हफ्तों में देश भर में तालिबान के आगे बढ़ने के साथ, अफगानिस्तान में डॉक्टरों, इंजीनियरों, शिक्षकों, पत्रकारों आदि सहित शिक्षित और कुशल अफगानों का एक बड़ा पलायन हुआ है. यहां तक कि अल्पसंख्यक समुदाय भी जल्दबाजी में बाहर निकल गए हैं.
कुछ समय पहले भारत आए एक अफगान सिख छबौल सिंह ने कहा कि इन सब से पहले, अफगानिस्तान में लगभग 2 लाख हिंदू और सिख थे. अब केवल कुछ सौ गुरुद्वारों में दिए गए आश्रयों में रहते हैं.
अफगान मीडिया ने बताया कि हाल ही में काबुल से ज़ाब्लोव सिमिंटोव के जाने के साथ, अंतिम अफगान-यहूदी देश छोड़कर चला गया था. कुछ दशक पहले देश में अफगान यहूदियों की संख्या लगभग 40,000 थी.