भोपाल। 2020 में बीजेपी में दाखिले के साथ अपनी राजनीतिक वल्दीयत बदल चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया क्या 2024 में अपना चुनावी मैदान भी बदलने की तैयारी में हैं. पिछले ढाई साल की सिंधिया की सियासत पर गौर कीजिए तो सिंधिया गुना के बजाए ग्वालियर में लैंडिंग करते दिखाई देते हैं. ग्वालियर बीजेपी संगठन में जड़ तक पकड़ जमाने के साथ इस इलाके में सौगातों की झड़ी लगाने तक सिंधिया का ग्वालियर पर फोकस केवल गृह नगर से लगाव का मसला नहीं दिखाई देता. ग्वालियर संसदीय क्षेत्र हमेशा से दिग्गजों के बीच सियासी दंगल की ज़मीन रहा है. इस समय अगर सिंधिया ग्वालियर में सियासी संभावनाएं देख रहे हैं तो दूसरी तरफ केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी मुरैना से ग्वालियर शिफ्टिंग के ख्वाहिशमंद सुनाई देते हैं. लेकिन सिंधिया इसके संकेत दे चुके हैं वे जमीनी जमावट को भी मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं.
2023 की परफॉर्मेंस रिपोर्ट पर है दारोमदार: नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर चंबल अंचल के दोनों बड़े नेता हैं. दोनों केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी हैं. ऐसे में दोनों ही नेता 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सेफ सीट का जुगाड कर लेना चाहते हैं. पिछले चुनाव में सिंधिया को जहां गुना से हार मिली थी वहीं मुरैना से नरेंद्र सिंह तोमर की जीत का अंतर भी काफी कम रहा था. यही वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दोनों ही नेता अपनी अपनी फिल्डिंग करने में जुट गए हैं, लेकिन पार्टी का फोकस दोनों ही नेताओं की 2023 की परफॉर्मेंस पर रहेगा. इस इम्तेहान को पास कर लेने के बाद ही तय होगा कि किसे क्या मिलता है. क्योंकि लोकसभा सीट के लिए नाम तय होने से पहले ग्वालियर चंबल के इन दो क्षत्रपों की पऱफार्मेंस रिपोर्ट में 2023 के नतीजे के नंबर भी जुड़ेंगे.
ग्वालियर में सिंधिया की लैडिंग की पूरी तैयारी: ग्वालियर चंबल की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली की राय में सिंधिया की ग्वालियर से आम चुनाव के मैदान से उतरने की तैयारी पूरी है. यही वजह से उनका पूरा फोकस ग्वालियर पर है. वे ग्वालियर की हर छोटी बड़ी प्रशासनिक खबर पर नज़र रखते हैं. पूरा नियंत्रण भी बनाए रखते हैं. महीने में पांच छह दौरे ग्वालियर के करते ही हैं. श्रीमाली इस बात का भी दावा करते हैं कि सिंधिया कद्दावर नेता हैं वे गुना या ग्वालियर जहां से भी लड़ना चाहेंगे पार्टी का टिकट उन्हें आसानी से मिलेगा. ग्वालियर को पिछले कुछ दिनों में ही करोड़ों की सौगातें देकर उन्होंने इसका संकेत भी दे दिया है.
- 500 करोड़ की लागत से बननने वाला अंतराराष्ट्रीय एयर टर्मिनल शहर का सूरत ए हाल बदल देगा. इस टर्मिनल पर एक साथ 20 बोइंग विमान खड़े हो सकते हैं.
-इसके अलावा प्रदेश की पहली एलिविटेड रोड की सौगात भी ग्वालियर को मिली है
- आधुनिक अंतरराज्यीय बस स्टैंड के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए एक हज़ार बिस्तर के अस्पताल के साथ ग्वालियर से आगरा तक 6 लेन हाईवे.
- ग्वालियर से इटावा नेशनल हाइवे को फोरलेन में बदलने का निर्णय. ये वो सौगातें हैं जिनके जरिये सिंधिया 2024 के पहले ग्वालियर को अपना मैदान बनाने का संकेत देते हुए केंद्र से दिलाई हैं.
जमीनी जमावट मजबूत कर रहे हैं सिंधिया: बीजेपी में शामिल होने के बाद से सिंधिया की राजनीति में जो तीन बड़े बदलाव दिखाई दिए. उनमें पहला बड़ा बदलाव था उनकी कार्यशैली में.
- अमूमन मुखर बायन देते रहे सिंधिया ऐसे बयानों से दूर हुए और खांटी भाजपाई मार्का पॉलीटिक्स में आगे बढ़ते हुए उनका पूरा जोर संगठन पर पकड़ और आरएसएस का भरोसा जीतने पर रहा.
-मैदान ग्वालियर चंबल ही रहना है लिहाजा बीजेपी ज्वाइन करते हुए उन्होने सबसे पहले बीजेपी में अपने उन धुर विरोधियों को साधा जिनकी राजनीति का बड़ा हिस्सा ही सिंधिया का विरोध रहा. इनमें जयभान सिंह पवैया से लेकर अनूप मिश्रा प्रभात झा जैसे नेता शामिल थे. बड़ी चुनौती जमीनी कार्यकर्ता की संभाल की भी थी. तो महाराज के दायरे से बाहर आए सिंधिया ने ग्वालियर में पार्टी के हर रुठे छूटे कार्यकर्ता से संवाद कायम कर लिया. बीजेपी के लिहाज से किसी भी नेता के लिए ये सबसे जरुरी है कि वो कम समय में कार्यकर्ताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करे.
-बेशक सिंधिया अपनी फौज के साथ बीजेपी में आए हैं. लेकिन बीजेपी का कार्यकर्ता आज भी नतीजे बदलने की ताकत रखता है. ग्वालियर नगर निगम का चुनाव इसकी तस्दीक है जिसमें सिंधिया तोमर की खींचतान में नाराज़ कार्यकर्ता ने हाथ खींचे 57साल का इतिहास पलटा और मेयर का पद कांग्रेस के खाते में चला गया. ये हार भी सिंधिया के सिर ही आई थी. यह वजह है कि सिंधिया अभय चौधरी को ग्वालियर बीजेपी का जिलाअध्यक्ष बनाए जाने पर अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं. चौधरी तोमर खेमे के नेता माने जाते हैं. ग्वालियर को लेकर तोमर की ख्वाहिश को समझते हुए महाराज छवि तोड़कर जमीनी जमावट को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं.
2019 की हार के बाद गुना से मोहभंग: राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जमाने से गुना लोकसभा सीट सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट रही है. लेकिन 2019 के आम चुनाव में गुना में सिंधिया को बीजेपी प्रत्याशी के हाथों लगभग पौने 2 लाख वोट से मिली हार भुलाए नहीं भूलती. इस अप्रत्याशित हार के बाद से ये माना जाने लगा था कि सिंधिया का इस सीट से अब वैसा जज्बाती जुड़ाव नहीं रहा. यही वजह है कि गुना सीट हारने के बाद ज्योतिरादित्य की नजर ग्वालियर लोकसभा सीट पर नजर है, क्योंकि गुना का अपना अभेद्य माना जाने वाला किला गंवा चुके सिंधिया का अब वहां से मोहभंग हो गया है.
सिंधिया की राह में स्पीड ब्रेकर हैं तोमर: बीजेपी में आने के बाद भी सिंधिया के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.ग्वालियर चंबल अंचल में नरेंद्र सिंह तोमर भाजपा के क्षत्रप माने जाते हैं यही वजह है कि अब ग्वालियर चंबल अंचल में भाजपा की राजनीति में नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीचअंदरूनी तौर पर वर्चस्व की जंग चल रही है. इन दोनों की लड़ाई का एक तीसरा चेहरा भी है जयभान सिंह पवैया . जय भान सिंह पवैया की सिंधिया से सियासी अदावत थी, तो नरेंद्र सिंह तोमर से भी उनके सियासी रिश्ते अच्छे नहीं कहे जा सकते. 1999 में जय भान सिंह पवैया ग्वालियर के सांसद थे तब नरेंद्र सिंह तोमर उनकी एक विधानसभा से विधायक बने थे. बाद में हालात ऐसे बने कि नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश में तेजी से उभरते गए और उन्होंने केंद्र की राजनीति में अपनी पकड़ बना ली. पवैया 2018 का विधानसभा चुनाव नरेंद्र सिंह तोमर के अंदरूनी विरोध के चलते ही हारे थे, पवैया ने इशारों इशारों में नरेंद्र सिंह को अपनी हार का जिम्मेदार भी बताया था. ऐसे में सिंधिया अब जय भान सिंह पवैया से भी करीबी बढ़ा रहे हैं, क्योंकि जय भान सिंह पवैया अंदरूनी तौर पर भी नरेंद्र सिंह तोमर के विरोधी माने जाते हैं, ऐसे में सिंधिया चाहते है कि पवैया का सहयोग भले ही ना मिले, लेकिन अगर पवैया विरोध ना भी करें तो सिंधिया के लिए फायदे का सौदा होगा. अपनी परंपरागत सीट से हार का सामना कर चुके सिंधिया यह अच्छी तरह सियासत में जीत ही मायने रखती है और यहां न तो कोई स्थाई दोस्त होता है और न दुश्मन.