जबलपुर। किसी ने सच ही कहा है कि मंजिल उन्हें ही मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है...पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. अगर किसी व्यक्ति में हौसला हो तो वो आसमान की बुलंदियों को छू सकता है, फिर चाहे उसके सामने लाख रुकावटें क्यों न आए. ऐसा ही कुछ कारनामा मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में एक दिव्यांग ने कर दिखाया है. जी हां हम बात कर रहे हैं सचिन वर्मा की जो तैराकी में जबलपुर और भारत का नाम दुनिया में रोशन कर रहे हैं. इन्होंने दुनिया की कई बड़ी तैराकी प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया और इनाम भी पाए.
सचिन ने जिद और हौसले से जीती जंग: सचिन की कहानी जबलपुर के हनुमान ताल से शुरू हुई थी. जबलपुर में कई परंपरागत अखाड़े हैं और इन अखाड़ों में शारीरिक विकास की कई विधाओं पर काम होता था. इन्हीं में से एक अखाड़ा हनुमान ताल में बच्चों को तैराकी सिखाता था. सचिन भी तैराकी सीखने के लिए हनुमान ताल में कोशिश करने लगे, हालांकि इनके बाएं हाथ का एक पंजा नहीं था, जो बचपन से ही विकसित नहीं हो पाया था. इसलिए इनके लिए तैराकी सरल काम नहीं था, लेकिन जब कोई काम पूरी लगन, हौसले और जिद से किया जाता है तो शारीरिक दिव्यांगता भी आड़े नहीं आती. सचिन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ और उनके तैरने के कौशल को देखकर उनके शुरुआती गुरु ने उन्हें सलाह दी कि वे किसी प्रोफेशनल कोच से तैराकी सीखें.
सचिन का हाथ का पंजा नहीं है: इसके बाद सचिन की कोचिंग भंवरताल स्विमिंग पूल में सुनील पटेल नाम के एक कोच के साथ शुरू हुई. सुनील पटेल ने सचिन को अंतरराष्ट्रीय स्तर की तैराकी के गुर सिखाए. साल 2006 में जब वे पहली बार विदेश जाने के लिए ग्वालियर पहुंचे तो सुनील पटेल खुद उन्हें छोड़कर आए थे. इसके बाद हनुमान ताल से शुरू हुआ यह सिलसिला दुनिया के कई देशों तक पहुंचा. सुनील पटेल का कहना है कि तैराकी में हाथ के पंजे का बड़ा अहम रोल होता है, क्योंकि इसी से पानी को हटाकर रफ्तार बनाई जाती है, लेकिन सचिन ने गजब का कमाल दिखाया और बिना पंजे के ही शरीर के मूवमेंट से वह रफ्तार हासिल की जो एक कुशल तैराक के पास होनी चाहिए.
सचिन वर्मा ने जिन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया
- 2006 में इंग्लैंड डीएससी ओपन इंटरनेशनल स्विमिंग चैंपियनशिप शेफील्ड
- 2007 में आई बॉस वर्ल्ड गेम ताइवान ताइपे
- 2008 में जर्मन ओपन चैंपियनशिप बर्लिन
- 2009 में वर्ल्ड चैंपियनशिप जर्मनी
- 2010 में एशियन गेम्स ग्वांगझू चाइना
- 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ मध्य प्रदेश के एकमात्र खिलाड़ी
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कोशिश करना बहुत जरुरी: सामान्य तौर पर खेलों में सफल होने वाले इन खिलाड़ियों को सरकार से बहुत सम्मान नहीं मिल पाता, लेकिन सचिन खुशनसीब हैं कि उन्हें पहले तो मध्यप्रदेश शासन द्वारा सर्वोच्च खेल सम्मान विक्रम पुरस्कार मिला. इसके साथ ही मध्य प्रदेश सरकार के कोऑपरेटिव विभाग में सरकार ने नौकरी भी दी. सचिन अभी भी स्विमिंग करने आते हैं और उनका मानना है कि शारीरिक विकलांगता आपके सपनों के आगे नहीं आ सकती. इसलिए लोगों को अच्छा करने की कोशिश करते रहना चाहिए. आप की कोशिश किसी ना किसी दिन सफल होती है और आपको सफलता जरूर मिलती है.