भोपाल। "मैं राहिला सलीम, डॉ. मोहम्मद सलीम की वाइफ हूं. हम लोग भोपाल के रहने वाले हैं. मेरे हसबेंड ने पहले इस्लाम कबूल किया. वह एक जैन फैमिली से बिलांग करते हैं. मैं अग्रवाल फैमिली से थी. मेरा पहला नाम मानसी अग्रवाल था. मेरे हस्बेंड ने जब इस्लाम कबूल किया तो वो मेरे लिए मेरी लाइफ का शाकिंग इंसीडेंट था. मैंने फर्स्ट टाइम अपने पति को नमाज पढ़ते हुए देखा. वह घर से कहीं चले जाते थे. मैं इनसे पूछती थी कि कहां जाते हैं तो वह जवाब नहीं देते थे. केवल इतना कहते थे कि, दिस इज नन ऑफ यूअर बिजनेस. तुम अपना काम करो. मैं भी खामोश हो जाती थी. मेरे फादर इन लॉ और इनके बीच अक्सर इसी बात पर बहस होती थी. लेकिन मुझे समझ नहीं आता था कि ये क्या है और इनकी डिबेट क्या है? फिर धीरे-धीरे मुझे इस्लाम के बारे में पता चला." यह सारे शब्द राहिला के हैं जिसे उसने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सबके सामने कहा. उसने बताया कि कैसे वो इस्लाम के प्रति आकर्षित हुई और घर से कैसे इसकी शुरुआत हुई.
पति को जब पहली बार नमाज पढ़ते देखा तो.. : राहिला (मानसी उर्फ सुरभि) बताती हैं "पहली बार पति को नमाज पढ़ते देखा तो ससुर को बताया और उन्होंने खामोश रहने की सलाह दी. मैंने सौरभ (जो अब सलीम बन चुका है) से पूछा कि आप नमाज क्यों पढ़ रहे हैं? उन्हें जब कुछ नहीं कहा तो मैने अपने ससुर को बताया. उन्होंने (ससुर ने) मुझसे कहा कि ठीक है, खामोश रहो, अभी किसी से कहना मत. हम देखेंगे. पहले डर लगा कि मेरे पति का खिंचाव कहीं टेरेरिज्म की तरफ तो नहीं हो रहे. वो मेरी लाइफ का टर्निंग मूमेंट था, वहां से मुझे लगा कि मेरी जिंदगी में बहुत कुछ बदल रहा है. मेरे मन में कई सवाल थे, जैसे कि सौरभ ऐसा क्यों कर रहे हैं? कहीं वो किसी ऐसे व्यक्ति से तो नहीं मिल रहे, जो इनको टेरेरिज्म की तरफ ले जा रहा है. उस वक्त मैं प्रेग्नेंट थी, फिर मैने इनकी अलमीरा में रखी बुक्स देखीं जिसे वो लगातार पढ़ते थे. यह किताबें छिपाकर रखा करते थे. बुक्स में कुछ डिफरेंट था. क्योंकि मैंने देखा कि इनके अखलाक, इनकी सब चीजें बिलकुल चेंज हो रही थीं. जो यह पहले थे, उससे बिलकुल ही अलग हो गए.
कैसे बदली मानसी की जिंदगी : राहिला ने वीडियो में बताया कि, "धीरे धीरे मेरी जिंदगी भी बदलने लगी. मेरे पति तब तक सौरभ से सलीम बन चुके थे. कलमा भी पढ़ चुके थे और कंवर्जन के बाद सब कुछ वैसा ही करने लगे जैसे नबी की सुन्न्तें हैं. नबी अपनी वाइफ की मदद करते थे, ठीक वैसे ही सलीम मरे साथ मेरे अधिकारों को लेकर हमेशा खड़े रहने लगे. मुझे अपने शौहर में ड्रास्टिक चेंज नजर आया. इसके बाद मैने भी उस साहित्य को पढ़ा और साथ ही अपने पति को समझना शुरु किया. फिर मैने इस्लाम की सभी अच्छी बातों को खुद के भीतर जज्ब किया ताकि एक बेहतर इंसान बन सकुं. इस दौरान मैने अपने शौहर और ससुर के बीच की डिबेट को भी ध्यान से सुना. तब मुझे समझ आया कि मेरे शौहर सही हैं और फिर यहीं से मेरी पूरी जिंदगी बदल गई."
सिद्दीकी साहब ने पढ़वाया कलमा : बकौल राहिला उसके एक फैमिली फ्रेंड किसी सिद्दीकी साहब के पास ले गए. उन्होने कहा कि मैं बहुत बुजुर्ग हो चुका हूं और मैं चाहता हूं कि तुम कलमा पढ़ लो. मेरी जिंदगी रहे या न रहे और मैं आपसे मिलूं या न मिलूं मगर आप आबाद रहना. इसके बाद राहिला (उर्फ मानसी उर्फ सुरभि) ने कलमा पढ़ा. राहिला इसके बाद कहती हैं कि जब वो अपने घर लौटीं तो शौहर सलीम को बताया कि मैं कलमा पढ़ चुकी है मगर इस्लाम से जुड़ी बातें उसे अभी और समझनी है. इस पर सलीम ने कहा कि तुम्हे जितना वक्त लेना है ले लो. कोई फोर्स नहीं करेगा तुम अपनी मर्जी से वो काम करो जो तुम्हे ठीक लगता है.
तहज्जुद की दुआ सिखाई : राहिला का कहना है कि मेरे शौहर ने मुझे एक दुआ सिखाई थी. उन्होने कहा था कि तुम एक दुआ मांगो कि 'या रब मेरे हस्बेंड गलत रास्ते पर हैं तो उसको सही रास्ते पर ले आओ और यदि मैं गलत रास्ते पर हूं तो मुझे सही रास्ता दिखाओ'. मैं यह दुआ लगातार मांगती थी. एक बार मेरी नींद तहज्जुद में खुली और मैं बस ध्यान करने बैठ गई और अचानक दिल चाहा कि सजदा करूं. मेरी जिंदगी का वो पहला सजदा था और बहुत लंबा सजदा था. उस सजदे में मैंने मेरे रब से क्या क्या मांग लिया था मुझे ठीक से अब याद भी नहीं है. मगर उस समय मुझे ऐसा फील हुआ कि जैसे अल्लाह मुझसे खुद बात कर रहे हैं और मेरे सवालों का जवाब खुद दे रहे हैं."
ऐसे शुरूआत हुई इस्लाम की शिक्षा : राहिला का कहना है कि उसके बाद उसे लगा कि इस्लाम उसका हक है और इस्लाम पर ही पूरी जिंदगी चलना है. बहुत सारी परेशानियां आई, मगर सब खुद-ब-खुद दूर होती चली गई. ऐसा लगा कि अल्लाह इसका रिवार्ड ही देता चला जाएगा. बस उस समय से मानसी जो अब राहिला बन चुकी है उसकी दीनी शिक्षा की शुरूआत हुई.
अल्लाह की खातिर ही इन परेशानियों को झेला: राहिला का कहना है कि "जब मैं घर से निकली, जब हमारे फादर इन लॉ ने हमें घर से निकाला तो मेरा बच्चा छोटा था. एक दूध की बोतल के सिवाए और कुछ भी नहीं था. मैं उसे अपनी मां के पास छोड़कर जाया करती थी. मेरे मम्मी-पापा हमसे डिटैच नहीं हुए थे, एक मोहब्बत थी उनको हमसे. उस मोहब्बत के कारण उन्होंने उस लेवल तक हमारा विरोध नहीं किया, जिसका हमेशा डर था. जब मैं मेरे मायके गई और मैंने बोला कि मां हमने वो घर छोड़ दिया. मां तो मां है, वो बहुत रोईं, बोली तुम लोग ऐसा क्यों कर रहे हो? क्यों हासिल करोगे? मैंने कहा कि आप सिर्फ एक मां हो न, लेकिन वो (अल्लाह) मुझे 70 मांओ के बराबर मोहब्बत करता है. जो रब मुझे 70 मांओ के बराबर मोहब्बत करता है तो मुझे कैसे रुसवा कर सकता है? सिर्फ एक छोटा सा विश्वास था, और सारी परेशानियां झेल लीं." ये पूरी बातें अपने वीडियो में राहिला कहती नजर आती है. उसने सबको बताया कि उसने किसी दबाव में नहीं बल्की अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन किया है.