पटना: बिहार में सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता जेपी आंदोलन के गर्भ से निकले थे. तमाम नेता जेपी के सच्चे अनुयायी होने का दंभ भी भरते हैं, लेकिन पिछले 30 साल तक बिहार की बागडोर संभाले रखने के बावजूद जेपी के सपने धरातल पर नहीं आ पाए.
30 साल में भी जेपी के सपने अधूरे
सामाजिक चिंतक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि बिहार में लंबे समय तक जेपी के अनुयायी सत्ता के शीर्ष पर रहे लेकिन जब वह सत्तासीन हुए तब जेपी के सिद्धांतों को भुला दिया और सत्ता धन उपार्जन का माध्यम बन कर रह गई. आम लोगों के लिए शिक्षा और रोजगार मुद्दा कहीं खो सा गया.
- जेपी ने गैर कांग्रेस वाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था लेकिन आज की तारीख में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन चुका है.
- नेताओं ने गैरकांग्रेसवाद की हवा निकाल कर रख दी. पहले लालू प्रसाद यादव और फिर नीतीश कुमार ने भी कांग्रेस के साथ गलबहियां की.
- जेपी पूरे जीवन समाज में समरसता की वकालत करते रहे. सबके लिए शिक्षा और रोजगार की बात करते थे.
- भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा कर दिया था. जिसे उनके अनुयायियों ने ही भुला दिया.
'सिर्फ नीतीश कुमार ही जेपी के झंडाबरदार नहीं हो सकते. लालू प्रसाद यादव ने जेपी के सपनों को सच करने के लिए गरीबों को आवाज दी. जेपी के सपनों को पूरा करने के लिए लंबा वक्त लगेगा'- तनवीर हसन, आरजेडी नेता
'जेपी के नाम पर राजनीति करने वालों ने जेपी को भुला दिया. सत्ता की खातिर जेपी के गैरकांग्रेसवाद की हवा निकल गई. नेता सिर्फ जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर ही जेपी को याद कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं'- प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी नेता
फिर दिखी जेपी के सिद्धांतों की धमक
जेपी के सच्चे अनुयायी होने का दावा करने वाले नेताओं ने शपथ तो जेपी की ली लेकिन काम उनके अनुरूप नहीं कर पाए. इन नेताओं की या तो व्यवस्था भ्रष्ट रही या फिर खुद ही भ्रष्टाचार के शिकार हो गए. जेपी के वास्तविक संदेश पर ये लोग अमल नहीं कर पाए. हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के दौरान जेपी के सिद्धांतों की धमक एक बार फिर सुनाई दी यह पहला ऐसा चुनाव था जब राजनीतिक दल जात-पात से हटकर भ्रष्टाचार, रोजगार और विकास के इर्द-गिर्द घूमते रहे.