देवास। आपने कई ऐसे लोगों के बारे में सुना होगा जिन्हें सब कुछ हासिल होने के बाद भी वो खुशी या तृप्ति नहीं मिलती जिसकी उन्हें चाहत होती है. ऐसा ही कुछ हाल देवास जिले के हाटपिपल्या के रहने वाले 28 वर्षीय युवा प्रांशुक कांठेड़ की है. लिहाजा आंतरिक खुशी को तलासते हुए प्रांशुक ने जाना कि उन्हें सांसरिक मोह माया में कोई रुचि नहीं है, वे इन सब त्याग कर वैराग्य प्राप्त करना चाहते हैं. जिसके बाद प्रांशुक ने अमरिका में सवा करोड़ (1.25 करोड़) की सालाना नौकरी छोड़कर जैन मुनि बनने की इच्छा जाहिर की. प्रांशुक आचार्य उमेश मुनि महाराज के शिष्य जिनेंद्र मुनि से जैन संत बनने की दीक्षा लेंगे.
प्रांशुक के अलावा 2 और युवा लेंगे दीक्षा: बचपन से ही संत बनने की दृढ़ इच्छा से जैन मुनि बनने की दीक्षा ले रहे प्रांशुक कांठेड़ वर्ष 2016 से जनवरी 2021 तक करीब 4.5 साल USA में रहे. USA में करीब 3 साल तक वह डेटा साइंटिस्ट की नौकरी कर चुके हैंं. 15 साल की उम्र से ही श्वेताम्बर जैन मुनि बनने की उनकी प्रबल इच्छा थी. प्रांशुक देवास जिले के हाटपिपल्या के मूल निवासी हैं. घर परिवार में माता-पिता और एक छोटा भाई है. देवास जिले के हाटपिपल्या में होने जा रहे 3 दिवसीय दीक्षा महोत्सव में प्रांशुक के अलावा दो अन्य युवा भी श्वेताम्बर जैन मुनि बनेंगे. प्रांशुक के मामा के बेटे प्रियांशु (MBA) निवासी थांदला और पवन कासवा निवासी रतलाम भी दीक्षा लेंगे. देश के अलग-अलग कोने से करीब 53 जैन संत-संतिया आएंगे. जिनके सानिध्य में 26 दिसंबर को दीक्षा का कार्य सम्पन्न होगा.
माता-पिता से जाहिर की जैन मुनि बनने की इच्छा: जीवन में संत के सानिध्य में रहकर अपना जीवन बिताने वाले कुछ लोग ही वैरागी होते हैं. जिनमें अब देवास जिले के हाटपिपल्या के मूल निवासी प्रांशुक भी शामिल होने जा रहे हैं. प्रांशुक इंदौर के SGSITS कॉलेज से BE करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए. डेढ़ साल पढ़ाई के बाद वहां प्रांशुक ने 3 साल तक डेटा साइंटिस्ट की नौकरी की. जहां उनकी 1.25 करोड़ ₹ सालाना सैलेरी थी. इस दौरान भी वह वहां गुरु भगवंतों की किताबें और Net पर उनके प्रवचन और साहित्य को पढ़ते और अध्ययन करते रहे. नौकरी से मन भर जाने के बाद प्रांशुक ने परिवार से दीक्षा लेने व जैन संत बनने की इच्छा जाहिर की. माता-पिता ने भी लिखित में अपनी अनुमति गुरुदेव जिनेंद्र मुनि जी को दे दी. जनवरी 2021 में अमेरिका से आने के बाद वह जैन मुनि के सानिध्य में रहे.
डेढ़ साल खुद को परखने के बाद लिया फैसला: प्रांशुक का कहना है कि वे इस संसार के सुख को जब देखते है तो यह सुख उन्हें क्षण भंगुर नजर आता है. वे बताते हैं कि सुख हमारी तृष्णा को और बढ़ाता है. चिरकाल के सुख के लिए मैं जैन संत बनने जा रहा हूं. इसके लिए जैन संतों के बीच में करीब डेढ़ साल रहकर उन्होंने अपनी कामनाओं को परखा और अब वह हाटपिपल्या में दीक्षा लेकर आगे संत की तरह जीवन गुजारेंगे. परिजन भी इस बात को लेकर खुश हैं कि उनका बेटा जैन संत की दीक्षा ले रहा है.