जयपुर. इतिहास को लेकर कई मर्तबा अनेक तरह के सवाल अक्सर सामने आते रहे हैं. इस बीच सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जाति (Controversy broke out over Prithviraj Chauhan caste) को लेकर बीते दिनों मध्यप्रदेश में खड़े हुए विवाद के बाद राजस्थान में भी कुछ लोगों ने इस पर अपना दावा किया है. इस सिलसिले में गुर्जर समाज ने 20 मई को मीडिया से मुखातिब होते हुए ऐतिहासिक तथ्यों को पेश करते हुए अपनी बात रखी.
गुर्जर समाज का कहना था कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे, न की राजपूत. ऐसे में समाज ने इतिहास को लेकर अपनी बात रखी. दूसरी ओर ईटीवी भारत ने भी इस दावे के बाद इतिहासकार देवेन्द्र भगत के जरिए इस मसले को समझने की कोशिश की. मौजूदा तस्वीर के मुताबिक चंदबरदाई की रचना पृथ्वीराज रासो, जिसका प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा बनारस से हुआ है, के साथ-साथ देसाई लल्लुभाई भीम भाई की लिखित किताब चौहान कुल कल्पद्रुम में चौहान वंश की कुल विवरणी के मुताबिक राजपूत वंशों में चौहान कुल सबसे पुराना है. पृथ्वीराज चौहान के राजपूत होने के प्रमाण इसमें मिलते हैं. वहीं इस सिलसिले में चौहान वंश को लेकर दशरथ शर्मा की किताब अर्ली चौहान डायनेस्टी का जिक्र भी उन्होंने किया.
किताबों में क्या लिखा है ?: इतिहासकार देवेन्द्र कुमार भगत ने कुछ प्रसंगों का ऐतिहासिक साहित्य के जरिए विवरण दिया और बताया कि ये विवाद दरअसल किन भ्रांतियों के कारण पैदा हुआ है. उन्होंने पृथ्वीराज रासो का जिक्र करते हुए बताया कि आदिपर्व और पृथ्वीराज काव्यम में सम्राट पृथ्वीराज चौहान को दी गई गूजराधिपति की उपाधि का मतलब जाति से ना होकर उनकी विजय से है. जब सम्राट चौहान ने वर्तमान गुजरात क्षेत्र और पाकिस्तान के मुल्तान के आस-पास के गुर्जर शासित राज्यों पर विजय प्राप्त की थी, तब उन्हें इस उपाधि से नवाजा गया था.
देवेन्द्र भगत कहते हैं कि चंद्रवरदाई खुद ने अपनी रचना में चौहान कुल के उद्भव को बयान किया है. इसके साथ दशरथ शर्मा की अर्ली चौहान डायनेस्टी किताब में दिए गए प्रसंगों का जिक्र करते हुए भगत ने बताया कि यह किताब एक मूल रिसर्च का दस्तावेज है. जिसमें पूरा विवरण चौहान कुल को लेकर दर्ज है. इसी तरह से चौहान कुल कल्पद्रुम में मोहम्मद गौरी से युद्ध करने वाले पृथ्वीराज चौहान की कुल शाखा को दिखाया गया है. उनके पिता सोमेश्वर से लेकर विग्रहराज और बीसलदेव जैसे शासकों के बीच अजमेर को बसाने वाले राजा अजयपाल का भी विवरण दिखाया गया है. उन्होंने बताया कि राणा हम्मीर , जिन्होंने अलाउद्दीन खिलजी से रणथम्भौर का युद्ध लड़ा था. जिन्हें हटी हम्मीर के नाम से भी जाना जाता है. वे भी चौहान कुल के शासक थे और पृथ्वीराज चौहान की आगे वाली पीढ़ियों में शासक रहे हैं.
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यह है गुर्जर समाज का दावाः अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान के गुर्जर होने के दावे से जुडे़ प्रमाण दिए. समाज का दावा है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान गुर्जर समाज से ताल्लुक रखते थे और इसके प्रमाण पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में भी मिलते हैं. समाज ने पृथ्वीराज चौहान पर आने वाली फिल्म को लेकर अंदेशा जताया और कहा है कि अगर फिल्म पृथ्वीराज में सम्राट चौहान को गुर्जर नहीं दिखाया गया या फिर तथ्यों से किसी तरह की कोई छेड़खानी की गई, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
इस मौके पर आचार्य वीरेंद्र विक्रम ने बताया कि कछवाहा और राजोर के शिलालेखों में, तिलक मंजरी, सरस्वती कंठाभरण, पृथ्वीराज विजय, के शिलालेखों में पृथ्वीराज के गुर्जर होने के प्रमाण मिले हैं. उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज विजयराजमहाकाव्यम में भी इसका वर्णन देखने को मिलता है. अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने यह भी दावा किया है कि पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गौरी पर विजय का वर्णन है.
उन्होंने यह भी दावा किया है कि पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के सर्ग 10 के श्लोक नंबर 50 में पृथ्वीराज के किले को गुर्जर दुर्ग लिखा है और सर्ग 11 के श्लोक नंबर 7 और 9 में गुर्जरों द्वारा गौरी को पराजित करने का वर्णन है. ऐसे में अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा का दावा है कि इन सभी के साक्ष्य के आधार पर यह प्रमाणित होता है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान गुर्जर समाज से थे.