नई दिल्ली : 'उजाला' योजना के तहत देशभर में 36.78 करोड़ से अधिक एलईडी लाइटों का वितरण किया गया है. इससे प्रति वर्ष 47,778 मिलियन किलोवॉट प्रति घंटा ऊर्जा की बचत और सीओ2 उत्सर्जन में 3.86 करोड़ टन की कमी संभव हुई है. यह योजना अब अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में लीडरशिप केस स्टडी का हिस्सा बन चुका है (UJALA scheme to be taught at iim Ahmedabad). इसके अलावा हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (Harvard business school) के पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल करने पर विचार हो रहा है.
केंद्र सरकार के विद्युत मंत्रालय द्वारा शुरू की गई 'उजाला' योजना के तहत एलईडी लाइटों के वितरण और बिक्री को सात वर्ष पूरे हो गए हैं. एक छोटी सी अवधि में ही यह दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सब्सिडी प्राप्त स्वदेशी लाइट प्रोग्राम बन गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच जनवरी, 2015 को उजाला - सबके लिये सस्ते एलईडी द्वारा उन्नत ज्योति का शुभारंभ किया था. अब यह कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सब्सिडी प्राप्त स्वदेशी प्रकाश कार्यक्रम बन गया है.
केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के मुताबिक 'उजाला' योजना के जरिए अब तक देशभर में 36.78 से अधिक एलईडी लाइटों का वितरण किया गया है. मंत्रालय का कहना है कि इस कार्यक्रम ने लोगों के जीवन को बदल डाला है. ऊर्जा दक्षता के लिये अनुपम रणनीतिक उपाय में योजना की सफलता निहित है.
केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2014 में उजाला योजना एलईडी बल्बों की खुदरा कीमत को नीचे लाने में सफल हुई थी. एलईडी बल्बों की कीमत 300-350 रुपये प्रति बल्ब से कम होकर 70-80 रुपये प्रति बल्ब पहुंच गई है. सबके लिये सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराने के अलावा, कार्यक्रम की बदौलत ऊर्जा में भारी बचत भी हुई. एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान समय तक, 47,778 मिलियन किलोवॉट प्रति घंटा की वार्षिक ऊर्जा की बचत हुई है. इसके अलावा 9,565 मेगावॉट की अधिकतम मांग से मुक्ति मिली तथा 3,86 करोड़ टन सीओ2 (कार्बन डाई-ऑक्साइड) की कटौती हुई.
उजाला को सभी राज्यों ने सहर्ष अपनाया है. इसकी मदद से घरों के वार्षिक बिजली बिलों में कमी आई है. उपभोक्ता पैसा बचाने, अपने जीवन स्तर में सुधार लाने तथा भारत की आर्थिक प्रगति और समृद्धि में योगदान करने में सक्षम हुये हैं.
कार्यक्रम के तहत, सरकार ने पारदर्शिता सुनिश्चित की है तथा सामान और सेवाओं की ई-खरीद के जरिये प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन दिया है. परिणामस्वरूप लेन-देन के खर्च और समय में कमी आई है तथा प्रक्रिया पहले से ज्यादा कारगर हुई है. उजाला योजना की बदौलत एलईडी बल्बों की कीमत में 85 प्रतिशत तक की कमी आई है. इसके कारण बोली-कर्ताओं की तादाद बढ़ी है, उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर हुई है और उपभोक्ताओं के लिये बेहतर विकल्प उपलब्ध हुये हैं. औद्योगिक प्रतिस्पर्धा और थोक खरीद के बढ़ने से ईईएसएल (एनर्जी एफीशियंसी सर्विसेज लिमिटेड) ने अनोखी खरीद रणनीति अपनाई है, जिसके परिणामस्वरूप चिर-परिचित लाभ प्राप्त हुये हैं. यही अब उजाला कार्यक्रम की यूएसपी बन गई है.
विद्युत मंत्रालय का कहना है कि पर्यावरण सम्बंधी बेहतर लाभ देने में उजाला कार्यक्रम की प्रमुख भूमिका है. इसके अलावा, उजाला से उपभोक्ताओं को ऊर्जा दक्षता से जुड़े वित्तीय और पर्यावरण सम्बंधी लाभों के प्रति जागरूक बनाने में भी मदद मिली है. इससे स्वदेशी प्रकाश उद्योग को गति मिलती है. इससे 'मेक इन इंडिया' को प्रोत्साहन मिलता है, क्योंकि एलईडी का स्वदेशी निर्माण एक लाख प्रति माह से बढ़कर 40 मिलियन प्रति माह पहुंच गया है.
उजाला की बदौलत नियमित थोक खरीद के जरिये निर्माताओं को लागत-लाभ प्राप्त होता है. इससे निर्माताओं को खुदरा क्षेत्र में भी एलईडी की कीमतों में कमी करने का मौका मिलता है. वर्ष 2014 और 2017 के बीच इसका खरीद मूल्य 310 रुपये से घटकर 38 रुपये हो गया है. इस तरह लगभग 90 प्रतिशत की कमी आई है. कार्यक्रम ने भारत के सर्वोच्च प्रबंधन संस्थानों का ध्यान भी आकर्षित किया है.
ऊर्जा दक्षता तथा मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के उपभोक्ताओं को बल्ब आदि के खर्च में बचत होने का श्रेय उजाला को जाता है. निम्न आयवर्ग के समुदाय की उन्नति के लिये समावेशी वृद्धि रणनीति के अंग के रूप में ईईएसएल ने उजाला कार्यक्रम के तहत एलईडी बल्बों के वितरण के संबंध में स्वयं सहायता समूहों को पंजीकृत किया है.
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