नई दिल्ली : कोरोना का प्रकोप अब भी जारी है. इसकी तीसरी लहर ने लगभग पूरे देश को चपेट में ले लिया है. हालांकि, इसकी तीक्ष्णता पहले के मुकाबले कम है. ऐसे में आने वाले बजट में हर व्यक्ति को उम्मीद है कि सरकार स्वास्थ्य बजट को लेकर कुछ बड़ा निर्णय ले सकती है. इसके बजट में इजाफा कर सकती है. बजट को लेकर सरकार क्या करेगी, यह तो बजट सामने आने पर ही पता चलेगा, लेकिन पिछले साल स्वास्थ्य बजट को लेकर सरकार ने जो निर्णय लिया, उसके आधार पर आप अनुमान लगा सकते हैं स्वास्थ्य को लेकर सरकार कितनी गंभीर है.
यहां आपको बता दें कि कोरोना काल से पहले और कोरोना काल के बाद, के बजट में व्यापक अंतर आया है. यह बदलाव किस स्तर तक आया है, और क्या सरकार उस दिशा में बढ़ रही है, जिसकी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इशारा किया है. डब्लूएचओ के पैमाने के अनुसार अगर आप देश में स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहतर करना चाहते हैं, तो प्रति 10 हजार की आबादी पर 44.5 हेल्थ वर्कर्स होने चाहिए. अभी हमारे यहां इसकी संख्या आधी है.
इसी तरह से दुनिया के विकसित देशों के बजट पर गौर करेंगे, तो पाएंगे कि उनके यहां स्वास्थ्य सेक्टर पर जीडीपी का औसतन 10 फीसदी या उससे अधिक खर्च किया जाता है. भारत में खर्च होता है जीडीपी का 1.25 फीसदी. ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, न्यूजीलैंड और फिनलैंड जैसे देशों में स्वास्थ्य पर जीडीपी का नौ फीसदी खर्च किया जाता है. अमेरिका अपने यहां जीडीपी का 16 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करता है. जापान, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी और स्विटजरलैंड जैसे देश तकरीबन 10 फीसदी खर्च करते हैं. आप कहेंगे कि ये तो सारे विकसित देश हैं.
आइए देखिए, विकासशील देशों के आंकड़े. ब्राजील जीडीपी का आठ फीसदी खर्च करता है. हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश और पाकिस्तान भी स्वास्थ्य पर हमारे मुकाबले अधिक खर्च करता है. उनके यहां 3 प्रतिशत खर्च किए जाते हैं. हमारे यहां नेशनल पॉलिसी 2017 ने 2025 के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया गया था. इसके अनुसार 2025 तक हम जीडीपी का 2.5 प्रतिशत तक स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करेंगे. लेकिन हकीकत क्या है, इसे समझिए. हमारे यहां वर्तमान में 1.25 फीसदी खर्च किया जाता है. अगर 2025 तक लक्ष्य तक पहुंचना है, तो हर साल हमें कम से कम 0.35 प्रतिशत की वार्षिक बढ़ोतरी करनी होगी. पर, कितना कर पा रहे हैं, मात्र 0.02 फीसदी. अब आप अंदाजा लगाइए, कब तक वहां पहुंचेंगे. दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले हेल्थ एक्सेस क्वालिटी इंडेक्स पर देखें, तो भारत का स्थान 195 देशों की सूची में 145 वें स्थान पर है.
अब आपको भारत सरकार के बजट की हकीकत से रूबरु करा देते हैं. पिछली बार जब सरकार ने बजट पेश किया था, तब दावा किया था कि उसने कोरोना काल से पहले के मुकाबले बजट में 137 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है. क्योंकि कोरोना ने स्वास्थ्य क्षेत्र को पूरी तरह से एक्सपोज कर दिया, लिहाजा सरकार ने बजट में आंकडों की बाजीगरी भी दिखाई.
बजट के विशेषज्ञों ने दावा किया कि दरअसल कोरोना से पहले के काल में पेश किए गए बजट की तुलना में बजट घटा दिया गया. उनके अनुसार 9.5 फीसदी की सरकार ने बजट में कटौती कर दी. लेकिन सरकार ने यह कैसे किया, इसे समझिए. इनके अनुसार सरकार ने 2021-22 का बजट पेश करते समय स्वास्थ्य के अलावा उसमें कल्याण शब्द का भी प्रयोग किया था. कल्याण यानी वेलफेयर. इसके अंतर्गत पोषण, सफाई-स्वच्छता, पेयजल और राज्यों को दी जाने वाली फाइनेंस कमीशन ग्रांट स्वास्थ्य बजट को भी जोड़ दिया. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना को भी स्वास्थ्य के ही अंतर्गत दिखाया था. इसका बजट अकेले ही 64,180 करोड़ रु. का था. आलोचकों का कहना है कि सरकार ने बजट में इसका उल्लेख किया था, लेकिन बाद में बजट के दस्तावेज में इस राशि को लेकर कुछ नहीं कहा. इसके पीछे सरकार की क्या मंशा रही है, यह कहना मुश्किल है.
सरकार ने बजट में 35,000 करोड़ रु. कोविड वैक्सीन के लिए आवंटित किए. सरकार ने आश्वासन दिया कि जरूरत पड़ने पर इस बजट को और बढ़ाया जा सकता है. इस बजट में से स्वास्थ्य मंत्रालय को 11,756 करोड़ रु. ही निर्धारित किए गए. हेल्थ वर्कर्स के टीकाकरण की प्रक्रिया के लिए 360 करोड़ दिए गए. वैक्सीन खरीदने के लिए सरकार ने पैसे दिए, मगर इनमें से हेल्थ वर्कर्स को कितना अधिक मिला, इसे लेकर बजट में कुछ नहीं कहा गया. सरकार यह कहे कि हमने हेल्थ का बजट बढ़ा दिया, लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले कर्मियों को अगर सुविधा और पैसे न मिले, तो क्या कहेंगे आप.
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कुल 74,602 करोड़ रु. का आवंटन किया गया था. कोरोना से तुरंत पहले वाले साल में सरकार ने 67,484 करोड़ रु. का बजट निर्धारित किया था. लेकिन बाद में संशोधित बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कुल राशि 82,445 करोड़ कर दी गई थी. बजट में सरकार ने स्वास्थ्य और कल्याण शब्द का प्रयोग किया था. इसलिए इसका कुल बजट 2,23,486 करोड़ रु. का निर्धारित किया था. आप इसे अलग-अलग करके समझ सकते हैं.
सरकार का पक्ष
सरकारा का कहना है कि केंद्र के 23,123 करोड़ रु के आपातकालीन कोविड प्रतिक्रिया पैकेज के तहत स्वीकृत फंड में से राज्यों ने मात्र 17 फीसदी का ही उपयोग किया. आपको बता दें कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचों को ठीक करने के लिए केंद्र ने पिछले साल अगस्त महीने में पैकेज को मंजूरी दी थी. उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश को मिलकर 23 हजार 56 आईसीयू बेड का इंतजाम करना था. उन्हें अस्पतालों के लिए अन्य बुनियादी आवश्कताओं को सही करना था. लेकिन इस दिशा में उतनी प्रगति नहीं हुई.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के लिए 71,268 करोड़ रु.. स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के लिए 2663 करोड़ रु. आयुष के लिए 2970 करोड़ रु. (इससे पहले वाले बजट में इस मद में 2100 करोड़ रु ही निर्धारित थे). राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 37130 करोड़ का आवंटन हुआ. 2020-21 के मुकाबले यह 1576 करोड़ रु. अधिक था. बजट से पहले आर्थिक सर्वे में यह कहा गया कि स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक खर्च को जीडीपी के एक फीसदी से बढ़ाकर 2.5 से तीन फीसदी की जानी चाहिए.
पीएम आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना
पीएम आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना के अंतर्गत- ग्रामीण-शहरी स्वास्थ्य केंद्रों को सहायता में बढ़ोतरी की गई. बजट के आलोचक कुछ और बताते हैं. उनके अनुसार 64,180 करोड़ रु. खर्च करने का लक्ष्य रखा गया था. इन आंकड़ों को देखने पर लगेगा कि सरकार ने पूरे स्वास्थ्य आवंटन में सौ फीसदी की बढ़ोतरी कर दी. लेकिन वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि इसे अगले छह सालों में खर्च किया जाएगा. इससे भी ज्यादा आश्चर्य यह रहा कि बजट दस्तावेज में इस योजना का जिक्र ही नहीं किया गया. यहां यह भी जानना जरूरी है कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार जो भी बजट निर्धारित करती है, वह पूरा का पूरा हेल्थ मिनिस्ट्री को ही जाता है.
आपको बताएं कि 2020-21 के बजट में 67112 करोड़ रु. आवंटित किए गए थे. लेकिन कोविड के कारण अगले साल 2021-22 में यह बजट 82928 करोड़ रु. का हो गया. इनमें से हेल्थ मिनिस्ट्री को 73931 करोड़ मिले. 10.84 प्रतिशत अधिक मिला.
पोषण को लेकर जो चुनौती है, उस पर भी सरकार ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया. 2020 में ही राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण में बताया गया कि देश में पोषण का स्तर गिर गया. 18 राज्यों में एक चौथाई बच्चे अविकसित थे. उन्होंने कहा कि आईसीडीएस योजनाएं भी सफल नहीं रहीं. इसे बच्चों तक पहुंचाया नहीं जा सका. आंगनबाड़ियों में घर का राशन कम स्तर पर मिल रहा है. पोषण बजट को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और मिड डे मील को एचआरडी नियंत्रित करता है.
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