नई दिल्ली : एअर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया को रद्द करने की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट (Air India disinvestment delhi high court)ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत 6 जनवरी को आदेश पारित करेगी. बता दें कि भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एअर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया को रद्द करने की मांग (swamy challenges air india disinvestment) की है. स्वामी ने याचिका में आरोप लगाया है कि एअर इंडिया विनिवेश के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली 'मनमानी, दुर्भावनापूर्ण और भ्रष्ट' थी. केंद्र ने स्वामी की याचिका का विरोध किया है.
मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में स्वामी के साथ ही केंद्र की तरफ से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता और एअर एशिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों को सुना गया. मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने केंद्र के वकील और अन्य प्रतिवादियों से आज शाम तक संक्षिप्त टिप्पणी दाखिल करने का निर्देश दिया.
स्वामी को बुधवार तक संक्षिप्त टिप्पणी दाखिल करने की छूट प्रदान की गई है. अदालत ने याचिकाकर्ता (सुब्रमण्यम स्वामी) को याचिका के साथ संलग्न कुछ दस्तावेजों की पढ़ने योग्य प्रतियां दाखिल करने का भी निर्देश दिया.
राज्य सभा सदस्य स्वामी ने एअर इंडिया और टाटा की डील (swamy against Air India tata deal) प्रक्रिया के संबंध में अधिकारियों द्वारा किसी भी कार्रवाई या निर्णय या किसी भी आगे की मंजूरी, अनुमति या परमिट को रद्द करने और निरस्त करने का अनुरोध किया है. स्वामी ने अधिकारियों की भूमिका और कामकाज की सीबीआई जांच और अदालत के समक्ष एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का भी अनुरोध किया है.
स्वामी ने दलील दी है कि स्पाइसजेट नीत एक संघ अन्य बोलीदाता के रूप में था, लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय में एयरलाइन के खिलाफ दिवाला कार्यवाही चल रही है, इसलिए वह बोली लगाने की हकदार नहीं थी और इसलिए, प्रभावी रूप से केवल एक बोलीदाता था. उन्होंने कहा, 'एअर इंडिया के मूल्यांकन में सरकार द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली मनमानी, अवैध, भ्रष्ट, दुर्भावना और जनहित के खिलाफ थी.'
सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि याचिका तीन गलत धारणाओं पर आधारित है और इस पर किसी विचार की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के अनुसार, स्पाइसजेट दूसरी बोलीदाता थी, लेकिन तथ्य यह है कि एयरलाइन कभी भी उस संघ का हिस्सा नहीं थी जिसने बोली जमा की थी और उसके खिलाफ लंबित कार्यवाही की यहां कोई प्रासंगिकता नहीं है.
सॉलीसिटर जनरल ने कहा, 'एक व्यक्ति, अजय सिंह, संघ का हिस्सा था, जो दूसरी बोली लगाने वाला था, न कि स्पाइसजेट.' उन्होंने कहा कि एअर इंडिया का विनिवेश केंद्र का एक नीतिगत निर्णय था, जो एयरलाइन को हो रहे भारी नुकसान को ध्यान में रखते हुए लिया गया था और सरकार ऐसा निर्णय लेने के लिए सक्षम थी.
साल्वे ने यह भी तर्क दिया कि याचिका में कुछ भी नहीं है और बोलियां पूरी हो गई हैं, शेयर समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और यह सब काफी समय से सार्वजनिक पटल पर है. उन्होंने कहा कि एयरलाइन व्यवसाय का प्रबंधन करना कठिन है और बहुत बड़े लेन-देन होते हैं और कहा कि यदि कोई व्यक्ति इस स्तर पर आता है और रिट याचिका के साथ चीजों को लंबित रखने की कोशिश करता है, तो कोई भी इसमें निवेश नहीं करेगा.
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में केंद्र ने एअर इंडिया और एअर इंडिया एक्सप्रेस के 100 प्रतिशत इक्विटी शेयरों के लिए टाटा संस कंपनी द्वारा की गई उच्चतम बोली के साथ ही जमीनी परिचालन देखने वाली कंपनी एआईएसएटीएस में सरकार की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी को स्वीकार कर लिया था. यह पिछले 20 वर्षों में पहला निजीकरण था.
स्वामी ने कहा कि वह विनिवेश की नीति का विरोध नहीं कर रहे हैं और उन्होंने हमेशा एक मुक्त बाजार के विचार में विश्वास किया है, लेकिन वह इस प्रक्रिया में 'अनुचित, अवैधता, कदाचार और भ्रष्टाचार' का मुद्दा उठा रहे हैं.
बता दें कि लगभग दो साल पहले भी स्वामी ने संकेत दिया था कि वे एअर इंडिया बिक्री के खिलाफ अदालत जा सकते हैं. स्वामी ने सौदे को पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी बताया था. उन्होंने कहा था सरकार अगर सौदा रद्द नहीं करती है तो वे अदालत जाने के लिए मजबूर होंगे.
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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने विगत 8 अक्टूबर को एअर इंडिया विनिवेश (Air India Disinvestment) की प्रक्रिया पूरी होने का एलान किया था. टाटा सन्स को एअर इंडिया की कमान मिली है. (Tata Sons wins bid for Air India) यह जानकारी दीपम सचिव (DIPAM Secretary) तुहिन कांत पांडे (Tuhin Kant Pandey) ने दी. एअर इंडिया की कमान मिलने के बाद चेयरमैन एमिरेटस (Chairman Emeritus) रतन टाटा (Ratan Tata) ने ट्वीट कर लिखा कि वेलकम बैक एअर इंडिया.
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