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BJP को 2019-20 में मिले 75% इलेक्टोरल बॉन्ड, कांग्रेस को सिर्फ 9 प्रतिशत

भाजपा को चंदे के रूप में मोटी रकम मिली है. इस बात का खुलासा चुनाव आयोग (Election Commission of India) के आंकड़ों से हुआ है. भाजपा ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेचे गए तीन-चौथाई चुनावी बॉन्ड एकत्र किए जबकि कांग्रेस के हाथ सिर्फ 9 प्रतिशत बॉन्ड आए. भाजपा ने चुनावी बॉन्ड से करीब 2555 करोड़ रुपये की कमाई की है.

इलेक्टोरल बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉन्ड
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Published : Aug 10, 2021, 5:59 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेचे गए तीन-चौथाई चुनावी बॉन्ड एकत्र किए, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को केवल 9 प्रतिशत ही हासिल हुए.

भाजपा की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पार्टी का स्वैच्छिक योगदान 2017-18 में 21 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 74 प्रतिशत हो गया है. पार्टी को 2017-18 में स्वैच्छिक योगदान के रूप में मिले कुल 989 करोड़ रुपये में से 210 करोड़ रुपये मिले जबकि पार्टी ने 2019-20 में 3,427 करोड़ रुपये में से 2,555 करोड़ रुपये जुटाए.
दूसरी ओर कांग्रेस की आय 2018-19 में 998 करोड़ रुपये से 2019-20 में 25 प्रतिशत की गिरावट के साथ 682 करोड़ रुपये दर्ज की गई. पार्टी को 2018-19 में बॉन्ड से कुल हिस्सेदारी में 383 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जबकि 2019-20 में पार्टी 318 करोड़ रुपये एकत्र करने में सफल रही.

विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा प्रस्तुत ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने बॉन्ड के माध्यम से 29.25 करोड़ रुपये, तृणमूल कांग्रेस ने 100.46 करोड़ रुपये, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने 45 करोड़ रुपये, आम आदमी पार्टी ने 18 करोड़ रुपये एकत्र किए.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड

इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह है. इसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसे खरीद सकती है. वे अपनी पंसद की राजनीतिक पार्टियों को योगदान कर सकते हैं. यह ब्याज मुक्त होता है. इन बॉन्ड को डिजिटल या चेक के माध्यम से खरीदने की अनुमति है. ये बॉन्ड हर साल चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. पिछले साल, उन्हें केवल जनवरी और अक्टूबर में जारी किया गया था.

भाजपा ने विज्ञापन पर खर्चे 400 करोड़ से ज्यादा

भाजपा ने जो वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जारी की है उससे पता चला है कि चुनाव अभियानों के दौरान विज्ञापनों पर 400 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए थे. सत्तारूढ़ दल ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर 249 करोड़ रुपये खर्च किए जबकि प्रिंट मीडिया पर 47.38 करोड़ रुपये खर्च किए.

एडीआर ने दिया था तर्क

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने हाल ही में कहा था कि चुनावी बॉन्ड नागरिकों को कोई विवरण नहीं उपलब्ध कराते हैं जबकि सरकार भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुंच सकती है. इसका अर्थ यह है कि इन दान के स्रोत के बारे में अंधेरे में केवल करदाता ही हैं. यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि इन बॉन्ड की छपाई और बांड की बिक्री और खरीद की सुविधा के लिए एसबीआई कमीशन का भुगतान केंद्र सरकार द्वारा करदाताओं के पैसे से किया जाता है.

पढ़ें- इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्यों छिड़ी बहस, आसान भाषा में समझें

नई दिल्ली : भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेचे गए तीन-चौथाई चुनावी बॉन्ड एकत्र किए, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को केवल 9 प्रतिशत ही हासिल हुए.

भाजपा की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पार्टी का स्वैच्छिक योगदान 2017-18 में 21 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 74 प्रतिशत हो गया है. पार्टी को 2017-18 में स्वैच्छिक योगदान के रूप में मिले कुल 989 करोड़ रुपये में से 210 करोड़ रुपये मिले जबकि पार्टी ने 2019-20 में 3,427 करोड़ रुपये में से 2,555 करोड़ रुपये जुटाए.
दूसरी ओर कांग्रेस की आय 2018-19 में 998 करोड़ रुपये से 2019-20 में 25 प्रतिशत की गिरावट के साथ 682 करोड़ रुपये दर्ज की गई. पार्टी को 2018-19 में बॉन्ड से कुल हिस्सेदारी में 383 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जबकि 2019-20 में पार्टी 318 करोड़ रुपये एकत्र करने में सफल रही.

विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा प्रस्तुत ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने बॉन्ड के माध्यम से 29.25 करोड़ रुपये, तृणमूल कांग्रेस ने 100.46 करोड़ रुपये, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने 45 करोड़ रुपये, आम आदमी पार्टी ने 18 करोड़ रुपये एकत्र किए.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड

इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह है. इसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसे खरीद सकती है. वे अपनी पंसद की राजनीतिक पार्टियों को योगदान कर सकते हैं. यह ब्याज मुक्त होता है. इन बॉन्ड को डिजिटल या चेक के माध्यम से खरीदने की अनुमति है. ये बॉन्ड हर साल चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. पिछले साल, उन्हें केवल जनवरी और अक्टूबर में जारी किया गया था.

भाजपा ने विज्ञापन पर खर्चे 400 करोड़ से ज्यादा

भाजपा ने जो वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जारी की है उससे पता चला है कि चुनाव अभियानों के दौरान विज्ञापनों पर 400 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए थे. सत्तारूढ़ दल ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर 249 करोड़ रुपये खर्च किए जबकि प्रिंट मीडिया पर 47.38 करोड़ रुपये खर्च किए.

एडीआर ने दिया था तर्क

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने हाल ही में कहा था कि चुनावी बॉन्ड नागरिकों को कोई विवरण नहीं उपलब्ध कराते हैं जबकि सरकार भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुंच सकती है. इसका अर्थ यह है कि इन दान के स्रोत के बारे में अंधेरे में केवल करदाता ही हैं. यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि इन बॉन्ड की छपाई और बांड की बिक्री और खरीद की सुविधा के लिए एसबीआई कमीशन का भुगतान केंद्र सरकार द्वारा करदाताओं के पैसे से किया जाता है.

पढ़ें- इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्यों छिड़ी बहस, आसान भाषा में समझें

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