भुवनेश्वर : यदि सपनों को पाने का हौसला हो और लक्ष्य तक पहुंचने की एकाग्रता हो तो कोई भी सपना साकार करना मुश्किल नहीं होता. एक आदिवासी लड़की यामिनी झंकार ने यह सच कर दिखाया है. यामिनी अपने गांव में पहली पीएचडी स्कॉलर के रूप में सामने आई है.
ओडिशा नौपाड़ा जिले का सूर्यबेडा अभयारण्य, जो चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है. दुर्गम क्षेत्रों के बीच में केवल पैदल आने-जाने का मार्ग है. इस क्षेत्र में चाकोतिया भुंजिया के आदिवासी समुदाय रहते हैं. पूरे जिले की कुल संख्या छह हजार है. यह समुदाय सरकार के विकास कार्यक्रमों के लाभों से वंचित रहते हैं वह लगातार खुद के लिए आजीविका बनाने के लिए संघर्ष करते हैं. यह आदिवासी समुदाय पूरी तरह से अंधविश्वासों और शिक्षा की कमी के अंधेरे की चपेट में है. इस अंधकार के बीच अचानक प्रकाश की एक किरण चमकी है. यामिनी झंकार चाकोतिया भुंजिया के आदिवासी समुदाय के बीच एक उच्च शिक्षित लड़की के रूप में उभरी है. वह अपने रास्तों में आने वाली सभी बाधाओं का मुकाबला करते हुए एक दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ीं. यामिनी आज आदिवासी समुदाय के बीच पहली पीएचडी स्कॉलर के रूप में सामने आई हैं.
चकोतिया भुंजिया समुदाय के रीति-रिवाज
यामिनी का जन्म सुनबेडा के सानबाहेली गांव के आदिवासी समुदाय चकोतिया भुंजिया के एक साधारण और गरीब परिवार में हुआ है. चाकोतिया भुंजिया समुदाय के सामाजिक रीति-रिवाज और बहुत सख्त हैं. यह समाज लड़कियों को स्कूलों जाने की अनुमति नहीं देता. इस समुदाय में पैरों पर चप्पल पहनने की भी मनाही है. अपने रिवाज के अनुसार उन्हें केवल सफेद रंग की साड़ी पहननी है, अपने बालों को खोलना है और आधुनिक शहरी से दूर रहना है. हालांकि, इन नियमों और रीति-रिवाजों की परवाह किए बिना यामिनी ने अध्ययन करने और अपने क्षेत्र में शिक्षा के बीज बोने के लिए दृढ़ संकल्प था. वह अपने रास्ते पर आने वाली सभी बाधाओं का मुकाबला करते हुए एक दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ी थी.
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यामिनी ने मेहनत कर और समाज के अंध विश्वासों की परवाह किए बिना अपने सपनों को पूरा करने पर आत्मविश्वास रखा है. यहा भविष्य में अन्य लड़कियों को प्रोत्साहित करेगा.