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CM के आश्वासन और प्रावधान के बाबजूद बिरहोर प्रजाति के दो भईयों को नहीं मिली नौकरी, 3 सालों से दफ्तर के लगा रहे है चक्कर

चाईबासा में दो शिक्षित बिरहोर प्रजाति के भाइयों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है. तकनीकी शिक्षा और नौकरी में प्रावधान होने के बाबजूद तीन सालों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे है. बाबजूद इसके अभी तक कोई आशा की किरण नहीं दिख रही है.

निराश बिरहोर प्रजाति के युवा
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Published : Jul 26, 2019, 7:21 AM IST

चाईबासा: विलुप्त हो रही बिरहोर प्रजाति को बचाने के लिए केंद्र और राज्य में कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन सरकारी प्रावधानों की जानकारी के अभाव में इन लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसा ही एक मामला पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत टाटीबा गांव का है, जहां दो शिक्षित बिरहोर भाइयों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है.

देखें पूरी खबर

नहीं दिख रही है कोई आशा की किरण
बता दें कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सारंडा के दौरे के क्रम में दोनों भाइयों को प्रावधानों के अनुसार नौकरी देने का आश्वासन दिया था. इसको लेकर दोनों बिरहोर भाई मुख्यमंत्री के आश्वासन और सरकार द्वारा बनाए गए प्रावधान के अनुसार नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन अभी तक कोई आशा की किरण नहीं दिखी है. नौकरी की आस में इनकी आंखें पत्थरा सी गई हैं और अब हिम्मत भी जबाब दे रही है.

इस लाभ से बिरहोर आदिम जनजाति पूरी तरह है वंचित
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से भोजन संग्रह, शिकार और स्थानांतरण खेती के रूप में भटक रहे बिरहोर आदिम जनजाति समुदाय के पुनर्वास के लिए विशेष कार्यक्रम चला रही है, लेकिन इस विशेष कार्यक्रम के लाभ से पश्चिम सिंहभूम जिले के बिरहोर आदिम जनजाति पूरी तरह वंचित है. नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत टाटीबा गांव के इंटरमीडिएट और तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके दो भाई दशरथ बिरहोर और विष्णु बिरहोर सरकारी प्रावधानों के लिए प्रशासनिक पदाधिकारियों के दरवाजे खटखटा कर थक चुके हैं.

3 सालों से बीडीओ और जिला उपायुक्त कार्यालय के लगा रहे है चक्कर
दोनें भााईयों का कहना हैं कि मैट्रिक, इंटरमीडिएट और तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर उसने किरीबुरू स्थित नियोजनालय में पंजीकरण भी करवाया था और नौकरी के लिए आवेदन लेकर 3 सालों से बीडीओ और जिला उपायुक्त कार्यालय के चक्कर लगा रहे है. उसने बताया कि हमारे समुदाय के मैट्रिक उत्तीर्ण लोगों के लिए सीधे सरकारी नौकरी का प्रावधान है, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. उसने बताया कि जिस तरह हमारे समुदाय के लोगों को सरकार के द्वारा आवास दी गई है, उसी प्रकार रोजगार दी जाती तो इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता.

ये भी पढ़ें-कारगिल विजय दिवस, शहीद के परिवार को अब तक नहीं मिला पैकेज, पेंशन भी बंद

मात्र 1 साल के लिए निकाली गई थी नौकरी का प्रावधान
इस संबंध में जिला उपायुक्त अरवा राजकमल ने बताया कि बिरहोर जाती के लिए नौकरी का प्रावधान सरकार ने मात्र 1 साल के लिए निकाला था. उस दौरान जितने भी शिक्षित बिरहोर समुदाय के युवक-युवतियां थे, उन्हें नौकरी दी गई थी. उसके बाद से अभी तक सरकार की ओर से कोई प्रावधान नहीं निकाले गए हैं. प्रावधान आने पर नौकरियों दी जाएगी.

चाईबासा: विलुप्त हो रही बिरहोर प्रजाति को बचाने के लिए केंद्र और राज्य में कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन सरकारी प्रावधानों की जानकारी के अभाव में इन लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसा ही एक मामला पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत टाटीबा गांव का है, जहां दो शिक्षित बिरहोर भाइयों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है.

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नहीं दिख रही है कोई आशा की किरण
बता दें कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सारंडा के दौरे के क्रम में दोनों भाइयों को प्रावधानों के अनुसार नौकरी देने का आश्वासन दिया था. इसको लेकर दोनों बिरहोर भाई मुख्यमंत्री के आश्वासन और सरकार द्वारा बनाए गए प्रावधान के अनुसार नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन अभी तक कोई आशा की किरण नहीं दिखी है. नौकरी की आस में इनकी आंखें पत्थरा सी गई हैं और अब हिम्मत भी जबाब दे रही है.

इस लाभ से बिरहोर आदिम जनजाति पूरी तरह है वंचित
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से भोजन संग्रह, शिकार और स्थानांतरण खेती के रूप में भटक रहे बिरहोर आदिम जनजाति समुदाय के पुनर्वास के लिए विशेष कार्यक्रम चला रही है, लेकिन इस विशेष कार्यक्रम के लाभ से पश्चिम सिंहभूम जिले के बिरहोर आदिम जनजाति पूरी तरह वंचित है. नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत टाटीबा गांव के इंटरमीडिएट और तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके दो भाई दशरथ बिरहोर और विष्णु बिरहोर सरकारी प्रावधानों के लिए प्रशासनिक पदाधिकारियों के दरवाजे खटखटा कर थक चुके हैं.

3 सालों से बीडीओ और जिला उपायुक्त कार्यालय के लगा रहे है चक्कर
दोनें भााईयों का कहना हैं कि मैट्रिक, इंटरमीडिएट और तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर उसने किरीबुरू स्थित नियोजनालय में पंजीकरण भी करवाया था और नौकरी के लिए आवेदन लेकर 3 सालों से बीडीओ और जिला उपायुक्त कार्यालय के चक्कर लगा रहे है. उसने बताया कि हमारे समुदाय के मैट्रिक उत्तीर्ण लोगों के लिए सीधे सरकारी नौकरी का प्रावधान है, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. उसने बताया कि जिस तरह हमारे समुदाय के लोगों को सरकार के द्वारा आवास दी गई है, उसी प्रकार रोजगार दी जाती तो इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता.

ये भी पढ़ें-कारगिल विजय दिवस, शहीद के परिवार को अब तक नहीं मिला पैकेज, पेंशन भी बंद

मात्र 1 साल के लिए निकाली गई थी नौकरी का प्रावधान
इस संबंध में जिला उपायुक्त अरवा राजकमल ने बताया कि बिरहोर जाती के लिए नौकरी का प्रावधान सरकार ने मात्र 1 साल के लिए निकाला था. उस दौरान जितने भी शिक्षित बिरहोर समुदाय के युवक-युवतियां थे, उन्हें नौकरी दी गई थी. उसके बाद से अभी तक सरकार की ओर से कोई प्रावधान नहीं निकाले गए हैं. प्रावधान आने पर नौकरियों दी जाएगी.

Intro:चाईबासा। विलुप्त हो रही बिरहोर प्रजाति को बचाने के लिए केंद्र व राज्य में कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, परंतु सरकारी प्रावधानों की जानकारी के अभाव में बावजूद इन योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा। पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत टाटीबा गांव के दो शिक्षित बिरहोर भाइयों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है। सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास सारंडा के दौरे के क्रम में उन्होंने दोनों भाइयों को प्रावधानों के अनुसार नौकरी देने का भी आश्वासन दिया था। दोनों बिरहोर भाई मुख्यमंत्री के आश्वासन व सरकार के द्वारा बनाई गई प्रावधान के अनुसार नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हुए हैं। अब तो नौकरी की आश में इनकी आंखे भी पत्थरा गई हैं और हिम्मत भी जबाब दे रहा है।


Body:केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा भोजन संग्रह, शिकार और स्थानांतरण खेती के रूप में भटक रहे बिरहोर जैसे आदिम जनजाति समुदाय के पुनर्वास के लिए विशेष कार्यक्रम चला रही है। परंतु यह विशेष कार्यक्रम का लाभ पश्चिम सिंहभूम जिले के बिरहोरों को मिलता दिखाई नहीं पड़ता है। इंटरमीडिएट एवं तकनीकी प्रशिक्षण (आईटीआई) प्राप्त कर चुके दशरथ बिरहोर एवं विष्णु बिरहोर सरकारी प्रावधानों की दुहाई देते हुए प्रशासनिक पदाधिकारियों के दरवाजे खटखटा कर अब थक चुके हैं। सरकार के द्वारा बनाई गई अपने ही प्रावधानों को धरातल पर नहीं उतार पा रही है। दशरथ व विष्णु बिरहोर बताते हैं कि मैट्रिक इंटरमीडिएट एवं मशीनिस्ट का तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर उसने किरीबुरू स्थित नियोजनालय में पंजीकरण भी करवाया है। उसके बाद सर्टिफिकेट एवं नौकरी के लिए आवेदन लेकर प्रखंड कार्यालय के बीडीओ, जिले के उपायुक्त कार्यालय के लगभग 3 वर्ष तक चक्कर भी लगाए। उसके बावजूद भी उसे नौकरी के आसार नजर नहीं आते हैं। उसने बताया कि हमारे समुदाय के मैट्रिक उत्तीर्ण लोगों के लिए सीधे सरकारी नौकरी का भी प्रावधान है परंतु अब तक कुछ ऐसा नजर नहीं आता। उसने बताया कि हमारे समुदाय के कई लोग रोजगार के लिए इधर-उधर पलायन भी कर रहे हैं। सरकार के द्वारा समुदाय के लोगों को आवास दी गई है। उसी प्रकार अगर हमारे समुदाय के लोगों को रोजगार दी जाए तो रोजगार की तलाश में बिरहोर प्रजाति के लोगों को इधर उधर भटकना नहीं पड़ेगा।


Conclusion:इस संबंध में जिला उपायुक्त अरवा राजकमल ने बताया कि बिरहोर हो के लिए नौकरी का प्रावधान सरकार ने मात्र 1 साल के लिए निकाला था। उस दौरान जितने भी शिक्षित बिरहोर समुदाय के युवक युवतियां थे। उन्हें नियमानुसार नौकरी भी दी गई। उसके बाद से अब तक सरकार के द्वारा ऐसे कोई प्रावधान नहीं निकाले गए हैं जिसके अनुसार शिक्षित बिरहोर समुदाय के युवक-युवतियों को सीधे नौकरी दी जाए।
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