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चाईबासा के सेरेंगसिया घाटी में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन, कोल विद्रोह के नायकों को हो समाज के लोगों ने किया याद

चाईबासा के सेरेंगसिया घाटी के पास शहीद स्थल पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया (Tribute Meeting Organized In Serengsia Valley) गया. जिसमें कोल विद्रोह के नायकों को याद कर हो समाज के लोगों ने श्रद्धा-सुमन अर्पित की और युवाओं को गौरवशाली इतिहास की जानकारी दी.

Tribute Meeting Organized In Serengsia Valley
People Present In Tribute Meeting Organized in Serengsia Valley of Chaibasa
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Published : Jan 2, 2023, 7:09 PM IST

चाईबासा : कोल विद्रोह के नायकों की याद में सेरेंगसिया घाटी के पास सोमवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया (Tribute Meeting Organized In Serengsia Valley) गया. जिसमें सैकड़ों लोगों ने पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी. बताते चलें कि दो जनवरी 1838 को कोल विद्रोह के दो नायक बोड़ो हो और पांडुआ हो को सेरेंगसिया घाटी के पास फांसी दी गई थी. यहां उत्तरी कोल्हान के लोग सार्वजनिक फांसी को देखने के लिए इकट्ठा हुए थे. लोगों में आतंक का माहौल बनाने के लिए 1 जनवरी 1838 को पोटो हो, नारा हो और बुड़ाई हो को जगन्नाथपुर के पास सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई थी.

ये भी पढे़ं-कमलदेव गिरी की हत्या राजनीतिक षड्यंत्र, मुख्य साजिशकर्ता को बचाने में लगी है सरकारः दीपक प्रकाश

दस्तावेजों के माध्यम से इतिहास को समझना नई पीढ़ी के लिए चुनौतीः आदिवासी हो समाज महासभा के पूर्व महासचिव मुकेश बिरुवा ने कोल विद्रोह के नायकों (Heros Of Kol Rebellion) को श्रदांजलि देने के बाद उपस्थित सभा को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि अपने इतिहास को दस्तावेजों के आलोक में समझना नई पीढ़ी के लिए चुनौती है. अन्यथा, गलत सूचनाओं के साथ दुनिया में हंसी के पात्र बनना पड़ेगा. अभी काफी दस्तावेज हमलोगों के पास हैं और इन्हें अपने दस्तूरों के साथ मिलाएं तो हमारा गौरवशाली इतिहास हमारा इंतजार कर रहा है.

अपने इतिहास पर गर्व करें हो समाज के लोगः मौके पर आदिवासी हो समाज युवा महासभा के महासचिव गब्बर सिंह हेंब्रम ने कहा कि समाज को सही जानकारी देना हमारा दायित्व है. युवा महासभा की ओर से पिछले दो वर्षों से हम दो जनवरी को सेरेंग्सिया शहीदों को श्रद्धांजलि देने आते (Tribute Meeting Organized In Serengsia Valley)हैं, ताकि इस दिन को हो समाज भव्य तरीके से मनाएं और अपने इतिहास पर गर्व करें. स्थानीय समिति से हमारा आग्रह है कि इस पर गम्भीरता से चर्चा हो और आने वाले समय में दो जनवरी को व्यापक कार्यक्रम फांसी देने वाले जगहों पर हो. हम भी संगठनिक तौर पर आयोजन के लिए आगे आएंगे. हो समाज में दुल सुनुम (मृत्यु उपरांत अनुष्ठान) एक बार ही मनाया जाता है, और दूसरे तरीके से मना कर समाज को हमें दिग्भ्रमित नहीं करना चाहिए. वहीं मौके पर सेरेंग्सिया शहीद स्मारक समिति के अध्यक्ष महेंद्र नाथ लागुरी ने समाज के सुझावों को गम्भीरता से लेने का आश्वासन दिया और युवाओं को अपने समृद्ध इतिहास के मद्देनजर जागरूक करने की बात कही.

अंग्रेजों ने हो समाज के पांच नेताओं को मौत की सजा सुनाई थीः ज्ञात हो कोल विद्रोह (Kol Rebellion) के बाद पोटो हो और उसके साथियों के बारे में जो लगभग 2000 की संख्या में थे उनकी खोज चल रही थी. अंग्रेजों ने उत्तर दिशा में दलाल लोगों को स्काउट के रूप में लगाया था, लेकिन ऐसा लगता है कि उनका सहयोग पूरी तरह दिल से नहीं था. एक मौके पर एक बड़ा हमला गलत हो गया. क्योंकि स्काउट सेना को गलत दिशा में ले गए थे. फिर भी 8 दिसंबर को सेरेंगसिया में अपनी हार के तीन सप्ताह बाद, दलाल स्काउट्स ने जंगल में पोटो हो का पता लगाया. उसे आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें पकड़ लिया गया. विल्किन्सन 18 दिसंबर की शाम को जगन्नाथपुर में टिकेल के शिविर में पहुंचे. विल्किंसन के हाथी से गिरने के कारण, कोर्ट की सुनवाई स्थागित हुई, पर मुकदमा 25 दिसंबर को शुरू हुआ और 31 दिसंबर को समाप्त हुआ. पांच नेताओं को मौत की सजा सुनाई गई थी और 79 अन्य हो लोगों को कारावास की विभिन्न सजा दी गई थी.

मौके पर ये थे मौजूदः श्रद्धांजलि देने वालों में मुख्य रूप से इपिल समड, बबलू सुंडी, प्रमिला बिरुवा, कमला सिंकु, हीरा मनी पड़ेया, पार्वती हेंब्रम, शेरसिंह बिरुवा, रोया राम लागुरी, राहुल पुरती, सत्येंद्र लागुरी, राजेश हेस्सा, मनोहर लागुरी, ओएवोन हेंब्रम, प्रकाश पुरती, उपेन्द्र सिंकु, सुमन्त ज्योति सिंकु, कोलंबस हांसदा आदि उपस्थित थे.

चाईबासा : कोल विद्रोह के नायकों की याद में सेरेंगसिया घाटी के पास सोमवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया (Tribute Meeting Organized In Serengsia Valley) गया. जिसमें सैकड़ों लोगों ने पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी. बताते चलें कि दो जनवरी 1838 को कोल विद्रोह के दो नायक बोड़ो हो और पांडुआ हो को सेरेंगसिया घाटी के पास फांसी दी गई थी. यहां उत्तरी कोल्हान के लोग सार्वजनिक फांसी को देखने के लिए इकट्ठा हुए थे. लोगों में आतंक का माहौल बनाने के लिए 1 जनवरी 1838 को पोटो हो, नारा हो और बुड़ाई हो को जगन्नाथपुर के पास सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई थी.

ये भी पढे़ं-कमलदेव गिरी की हत्या राजनीतिक षड्यंत्र, मुख्य साजिशकर्ता को बचाने में लगी है सरकारः दीपक प्रकाश

दस्तावेजों के माध्यम से इतिहास को समझना नई पीढ़ी के लिए चुनौतीः आदिवासी हो समाज महासभा के पूर्व महासचिव मुकेश बिरुवा ने कोल विद्रोह के नायकों (Heros Of Kol Rebellion) को श्रदांजलि देने के बाद उपस्थित सभा को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि अपने इतिहास को दस्तावेजों के आलोक में समझना नई पीढ़ी के लिए चुनौती है. अन्यथा, गलत सूचनाओं के साथ दुनिया में हंसी के पात्र बनना पड़ेगा. अभी काफी दस्तावेज हमलोगों के पास हैं और इन्हें अपने दस्तूरों के साथ मिलाएं तो हमारा गौरवशाली इतिहास हमारा इंतजार कर रहा है.

अपने इतिहास पर गर्व करें हो समाज के लोगः मौके पर आदिवासी हो समाज युवा महासभा के महासचिव गब्बर सिंह हेंब्रम ने कहा कि समाज को सही जानकारी देना हमारा दायित्व है. युवा महासभा की ओर से पिछले दो वर्षों से हम दो जनवरी को सेरेंग्सिया शहीदों को श्रद्धांजलि देने आते (Tribute Meeting Organized In Serengsia Valley)हैं, ताकि इस दिन को हो समाज भव्य तरीके से मनाएं और अपने इतिहास पर गर्व करें. स्थानीय समिति से हमारा आग्रह है कि इस पर गम्भीरता से चर्चा हो और आने वाले समय में दो जनवरी को व्यापक कार्यक्रम फांसी देने वाले जगहों पर हो. हम भी संगठनिक तौर पर आयोजन के लिए आगे आएंगे. हो समाज में दुल सुनुम (मृत्यु उपरांत अनुष्ठान) एक बार ही मनाया जाता है, और दूसरे तरीके से मना कर समाज को हमें दिग्भ्रमित नहीं करना चाहिए. वहीं मौके पर सेरेंग्सिया शहीद स्मारक समिति के अध्यक्ष महेंद्र नाथ लागुरी ने समाज के सुझावों को गम्भीरता से लेने का आश्वासन दिया और युवाओं को अपने समृद्ध इतिहास के मद्देनजर जागरूक करने की बात कही.

अंग्रेजों ने हो समाज के पांच नेताओं को मौत की सजा सुनाई थीः ज्ञात हो कोल विद्रोह (Kol Rebellion) के बाद पोटो हो और उसके साथियों के बारे में जो लगभग 2000 की संख्या में थे उनकी खोज चल रही थी. अंग्रेजों ने उत्तर दिशा में दलाल लोगों को स्काउट के रूप में लगाया था, लेकिन ऐसा लगता है कि उनका सहयोग पूरी तरह दिल से नहीं था. एक मौके पर एक बड़ा हमला गलत हो गया. क्योंकि स्काउट सेना को गलत दिशा में ले गए थे. फिर भी 8 दिसंबर को सेरेंगसिया में अपनी हार के तीन सप्ताह बाद, दलाल स्काउट्स ने जंगल में पोटो हो का पता लगाया. उसे आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें पकड़ लिया गया. विल्किन्सन 18 दिसंबर की शाम को जगन्नाथपुर में टिकेल के शिविर में पहुंचे. विल्किंसन के हाथी से गिरने के कारण, कोर्ट की सुनवाई स्थागित हुई, पर मुकदमा 25 दिसंबर को शुरू हुआ और 31 दिसंबर को समाप्त हुआ. पांच नेताओं को मौत की सजा सुनाई गई थी और 79 अन्य हो लोगों को कारावास की विभिन्न सजा दी गई थी.

मौके पर ये थे मौजूदः श्रद्धांजलि देने वालों में मुख्य रूप से इपिल समड, बबलू सुंडी, प्रमिला बिरुवा, कमला सिंकु, हीरा मनी पड़ेया, पार्वती हेंब्रम, शेरसिंह बिरुवा, रोया राम लागुरी, राहुल पुरती, सत्येंद्र लागुरी, राजेश हेस्सा, मनोहर लागुरी, ओएवोन हेंब्रम, प्रकाश पुरती, उपेन्द्र सिंकु, सुमन्त ज्योति सिंकु, कोलंबस हांसदा आदि उपस्थित थे.

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