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चाईबासाः दिव्यांग शिक्षक गुलशन के जज्बे को सलाम, संघर्ष कर पहुंचा कामयाबी के शिखर पर - चाईबासा का गुलशन लोहार बना मिसाल

चाईबासा के दिव्यांग गुलशन का बचपन से हाथ नहीं था. उसने पैरों से लिखकर अपनी पढ़ाई पूरी की और आज एक शिक्षक हैं. उनके जज्बे के लिए राष्ट्रपति ने भी उन्हें सम्मानित किया था. लॉकडाउन के दौरान भी वो बच्चों को घरों पर बुलाकर पढ़ा रहे हैं.

handicap Gulshan become a teacher after studying with feet in Chaibasa
परिश्रम कर गुलशन बना शिक्षक
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Published : May 27, 2020, 1:52 PM IST

चाईबासा: दुनिया में विकलांगता सिर्फ नकारात्मक सोच है. इस बात को सच कर दिखाया है गुलशन लोहार ने. गुलशन पश्चिमी सिंहभूम के मनोहरपुर प्रखंड के बरंगा गांव का रहने वाला है और वो उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं.

गुलशन को जन्म से ही विकलांगता का अभिशाप मिला है, लेकिन उन्होंने अभिशाप को अपनी ताकत बना ली. उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए पैरों को ही अपने हाथ का विकल्प बना लिया. गुलशन लोहार ने कड़ी मेहनत कर एमए और बीएड की परीक्षा पास की, जिसके बाद वे उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्त हुए और अब बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं.

अटल इरादों से छुआ ऊंचाई

गुलशन लोहार जन्म से ही निशक्त होने के बावजूद भी अपने अटल इरादों की बदौलत ऊंचाइयों को छुआ. अपने शारीरिक कमजोरी और आने वाली चुनौतियों को उन्होंने समझते हुए जिंदगी के हर इम्तिहान में पास होने का संकल्प लिया. उसके बाद संघर्ष करते रहा और कामयाबी उनके कदम चूमती रही.

देखें स्पेशल स्टोरी

गुलशन ने बताया कि उन्हें बचपन से ही आभास हो गया था कि वे अकेला कुछ नहीं कर सकते. न ही वे कपड़ा पहन सकते और न ही शौच करने जा सकते. उसे हर काम के लिए दूसरे का मदद लेना पड़ेगी, बावजूद इसके उसने आत्मनिर्भर बनने का ठान लिया.

गुलशन ने मन में सोच लिया कि पढ़ाई के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है, लेकिन उनके भाई ने उन्हें पैर से लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वे निरंतर प्रयास करते रहे और लिखने में कामयाब हो गए. गुलशन ने पढ़ाई को ही अपना हथियार बनाया और अपने पैरों को दोस्त बना लिया.

उसके बाद पैरों के सहारे ही उन्होंने अपने शैक्षणिक जीवन के पहला पड़ाव स्कूल में जब एडमिशन लिया तो स्कूल में पढ़ने वाले सहपाठी उसे देखकर हंसते थे, लेकिन सभी की बातों को नजरअंदाज करते हुए उसने पढ़ाई में पुरजोर मेहनत की और 2003 में मनोहरपुर से मैट्रिक की परीक्षा दी और पास की.

यह भी पढ़ेंः रांची: 87 लोगों ने रद्द कराया अपना राशन कार्ड, 28 मई तक कार्ड जमा करने का है आदेश

उत्तीर्ण होने के बाद भी वे थोड़ा दुखी थे, क्योंकि उसके मार्क्स कम आए थे, लेकिन संकल्प के साथ वह आगे बढ़ते गया. मैट्रिक के परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद गुलशन ने इंटरमीडिएट और स्नातक की डिग्री ली उसके बाद उसने एमए और बीएड भी किया.

निःशक्तों के लिए गुलशन बने प्रेरणा

गुलशन लोहार ने एमए और बीएड उतीर्ण करने के बाद सेल चिड़िया लौह अयस्क खदान के जरिये सीएसआर के तहत उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्त किए गए. उसके बाद से वे स्कूल के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. गुलशन लोहार आज निःशक्तों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मानित

दोनों हाथ न होने के बावजूद भी सारंडा में शिक्षा का अलख जगाने वाले गुलशन लोहार को रांची में 15 नवंबर 2017 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मानित किया. गुलशन बताते हैं कि उन्होंने पैरों से केवल लिखते ही नहीं बल्कि कंप्यूटर, लैपटॉप भी आसानी से चलाते हैं.

उन्होंने अपने क्षेत्र के बच्चों को पैर के जरिए ही कंप्यूटर चलाना भी सिखाया, जिसे लेकर उन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित गया. इसके साथ ही गुलशन को प्रधानमंत्री दिशा योजना के तहत पुरस्कार के लिए भी चयनित किया गया था और रांची में उन्हें सम्मानित भी किया गया.

लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद हैं उसके बावजूद भी गुलशन शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. वे अपने गांव के ही बच्चों को घर में बुलाकर ही शिक्षा दे रहे हैं. गुलशन के इस कार्य के लिए उनकी हर जगह सराहना हो रही है.

चाईबासा: दुनिया में विकलांगता सिर्फ नकारात्मक सोच है. इस बात को सच कर दिखाया है गुलशन लोहार ने. गुलशन पश्चिमी सिंहभूम के मनोहरपुर प्रखंड के बरंगा गांव का रहने वाला है और वो उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं.

गुलशन को जन्म से ही विकलांगता का अभिशाप मिला है, लेकिन उन्होंने अभिशाप को अपनी ताकत बना ली. उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए पैरों को ही अपने हाथ का विकल्प बना लिया. गुलशन लोहार ने कड़ी मेहनत कर एमए और बीएड की परीक्षा पास की, जिसके बाद वे उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्त हुए और अब बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं.

अटल इरादों से छुआ ऊंचाई

गुलशन लोहार जन्म से ही निशक्त होने के बावजूद भी अपने अटल इरादों की बदौलत ऊंचाइयों को छुआ. अपने शारीरिक कमजोरी और आने वाली चुनौतियों को उन्होंने समझते हुए जिंदगी के हर इम्तिहान में पास होने का संकल्प लिया. उसके बाद संघर्ष करते रहा और कामयाबी उनके कदम चूमती रही.

देखें स्पेशल स्टोरी

गुलशन ने बताया कि उन्हें बचपन से ही आभास हो गया था कि वे अकेला कुछ नहीं कर सकते. न ही वे कपड़ा पहन सकते और न ही शौच करने जा सकते. उसे हर काम के लिए दूसरे का मदद लेना पड़ेगी, बावजूद इसके उसने आत्मनिर्भर बनने का ठान लिया.

गुलशन ने मन में सोच लिया कि पढ़ाई के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है, लेकिन उनके भाई ने उन्हें पैर से लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वे निरंतर प्रयास करते रहे और लिखने में कामयाब हो गए. गुलशन ने पढ़ाई को ही अपना हथियार बनाया और अपने पैरों को दोस्त बना लिया.

उसके बाद पैरों के सहारे ही उन्होंने अपने शैक्षणिक जीवन के पहला पड़ाव स्कूल में जब एडमिशन लिया तो स्कूल में पढ़ने वाले सहपाठी उसे देखकर हंसते थे, लेकिन सभी की बातों को नजरअंदाज करते हुए उसने पढ़ाई में पुरजोर मेहनत की और 2003 में मनोहरपुर से मैट्रिक की परीक्षा दी और पास की.

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उत्तीर्ण होने के बाद भी वे थोड़ा दुखी थे, क्योंकि उसके मार्क्स कम आए थे, लेकिन संकल्प के साथ वह आगे बढ़ते गया. मैट्रिक के परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद गुलशन ने इंटरमीडिएट और स्नातक की डिग्री ली उसके बाद उसने एमए और बीएड भी किया.

निःशक्तों के लिए गुलशन बने प्रेरणा

गुलशन लोहार ने एमए और बीएड उतीर्ण करने के बाद सेल चिड़िया लौह अयस्क खदान के जरिये सीएसआर के तहत उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्त किए गए. उसके बाद से वे स्कूल के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. गुलशन लोहार आज निःशक्तों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मानित

दोनों हाथ न होने के बावजूद भी सारंडा में शिक्षा का अलख जगाने वाले गुलशन लोहार को रांची में 15 नवंबर 2017 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मानित किया. गुलशन बताते हैं कि उन्होंने पैरों से केवल लिखते ही नहीं बल्कि कंप्यूटर, लैपटॉप भी आसानी से चलाते हैं.

उन्होंने अपने क्षेत्र के बच्चों को पैर के जरिए ही कंप्यूटर चलाना भी सिखाया, जिसे लेकर उन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित गया. इसके साथ ही गुलशन को प्रधानमंत्री दिशा योजना के तहत पुरस्कार के लिए भी चयनित किया गया था और रांची में उन्हें सम्मानित भी किया गया.

लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद हैं उसके बावजूद भी गुलशन शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. वे अपने गांव के ही बच्चों को घर में बुलाकर ही शिक्षा दे रहे हैं. गुलशन के इस कार्य के लिए उनकी हर जगह सराहना हो रही है.

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