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सिमडेगा में धूमधाम से मनायी गई अग्रसेन जयंती, निकाली गई भव्य शोभायात्रा

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Published : Sep 29, 2019, 8:53 PM IST

सिमडेगा में महाराजा अग्रसेन जयंती के धूमधाम से मनाते हुए भव्य शोभायात्रा निकाली गई. उनके विधान के अनुसार राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले आगंतुक को राज्य के प्रत्येक नागरिक की ओर से मकान बनाने के लिए एक ईंट, व्यापार करने हेतू एक मुद्रा भेंट स्वरूप दिया जाता था, जिससे समानता पर सुदृढ़ समाज की स्थापना की जा सके.

सिमडेगा में धूमधाम से मनायी गई अग्रसेन जयंती

सिमडेगा: जिले में महाराजा अग्रसेन जयंती बड़े धूमधाम से मनायी गई. इस दौरान सैकड़ों अग्रवाल परिवारों की ओर से भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें झांकी के माध्यम से अग्रवाल समाज के प्रवर्तक महाराज अग्रसेन को नगर भ्रमण कराया गया. इस अवसर पर पिछले दो सप्ताह से विभिन्न प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा था, जिसमें सफल प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाएगा.

देखें पूरी खबर

सुदृढ़ समाज की स्थापना
महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पांच हजार साल पहले प्रतापनगर के क्षत्रिय राजा वल्लभ के घर हुआ था. युवावस्था में उनका विवाह नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के साथ हुआ था. अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा में थी जो वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में स्थित है. उनके विधान के अनुसार राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले आगंतुक को राज्य के प्रत्येक नागरिक की ओर से मकान बनाने के लिए एक ईंट, व्यापार करने हेतू एक मुद्रा भेंट स्वरूप दिया जाता था, जिससे समानता पर सुदृढ़ समाज की स्थापना की जा सके.

अग्रसेन ने किए थे18 यज्ञ
लोगों की मान्यता के अनुसार महाराजा अग्रसेन ने 18 यज्ञ किए थे. यज्ञों के दौरान पशुबलि दी जाती थी. 17 यज्ञों में पशुबलि के बाद हुए रक्तपात को देखकर 18वें यज्ञ में पशुबलि को उन्होंने रोक दिया था, साथ ही अपने राज्य में भविष्य में भी पशुबलि नहीं देने का आदेश दिया गया. इसके बाद उनके अनुयायियों ने वैश्य धर्म का पालन करते हुए जीवन यापन करने का प्रण लिया.

सिमडेगा: जिले में महाराजा अग्रसेन जयंती बड़े धूमधाम से मनायी गई. इस दौरान सैकड़ों अग्रवाल परिवारों की ओर से भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें झांकी के माध्यम से अग्रवाल समाज के प्रवर्तक महाराज अग्रसेन को नगर भ्रमण कराया गया. इस अवसर पर पिछले दो सप्ताह से विभिन्न प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा था, जिसमें सफल प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाएगा.

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सुदृढ़ समाज की स्थापना
महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पांच हजार साल पहले प्रतापनगर के क्षत्रिय राजा वल्लभ के घर हुआ था. युवावस्था में उनका विवाह नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के साथ हुआ था. अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा में थी जो वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में स्थित है. उनके विधान के अनुसार राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले आगंतुक को राज्य के प्रत्येक नागरिक की ओर से मकान बनाने के लिए एक ईंट, व्यापार करने हेतू एक मुद्रा भेंट स्वरूप दिया जाता था, जिससे समानता पर सुदृढ़ समाज की स्थापना की जा सके.

अग्रसेन ने किए थे18 यज्ञ
लोगों की मान्यता के अनुसार महाराजा अग्रसेन ने 18 यज्ञ किए थे. यज्ञों के दौरान पशुबलि दी जाती थी. 17 यज्ञों में पशुबलि के बाद हुए रक्तपात को देखकर 18वें यज्ञ में पशुबलि को उन्होंने रोक दिया था, साथ ही अपने राज्य में भविष्य में भी पशुबलि नहीं देने का आदेश दिया गया. इसके बाद उनके अनुयायियों ने वैश्य धर्म का पालन करते हुए जीवन यापन करने का प्रण लिया.

Intro:अग्रसेन जयंती सिमडेगा में धूमधाम से मनायी गयी

अग्रवाल समाज ने प्रवर्तक महाराज की निकाली शोभायात्रा

सिमडेगा: महाराजा अग्रसेन जयंती जिले में बड़े धूमधाम से मनायी गयी। इस दौरान सैकड़ों अग्रवाल परिवारों द्वारा इनकी पूजा के पश्चात भव्य शोभायात्रा निकाली गयी। जिसमें झांकी के माध्यम से अग्रवाल समाज के प्रवर्तक महाराज अग्रसेन को नगर भ्रमण कराया गया। युवा हो, बच्चे अथवा महिलाएं सभी में जयंती को लेकर खासा उत्साह देखने को मिला। अग्रसेन जयंती के उपलक्ष्य पर पिछले दो सप्ताह से विभिन्न प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा था। जिसमें सफल प्रतिभागियों को आयोजनकर्ता समिति द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा।

अग्रसेन के जन्म और राज्य की विशेषता:-

महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व प्रतापनगर के क्षत्रिय राजा वल्लभ के घर हुआ था। युवावस्था में उनका विवाह नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के साथ हुआ। महाराज अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा में थी। वर्तमान समय में यह जगह हरियाणा राज्य में स्थित है। उनके विधान के अनुसार राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले आगंतुक को, राज्य का प्रत्येक नागरिक द्वारा मकान बनाने के लिए एक ईंट, व्यापार करने हेतू एक मुद्रा भेंट स्वरूप दिया जाता था। जिससे समानता पर सुदृढ़ समाज की स्थापना की जा सके।
लोगों की मान्यता के अनुसार उन्होंने 18 यज्ञ किए थे। यज्ञों के दौरान पशुबलि दी जाती थी। 17 यज्ञों में पशुबलि के बाद हुए रक्तपात को देखकर 18वें यज्ञ में पशुबलि को उन्होंने रोक दिया। साथ ही अपने राज्य में भविष्य में भी पशुबलि नहीं देने का आदेश दिया। जिसके बाद उनके अनुयायियों ने वैश्य धर्म का पालन करते हुए जीवन यापन करने का प्रण लिया।Body:NoConclusion:N9
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