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बाल श्रम निषेध दिवस: सरायकेला में बाल कल्याण समिति नौनिहालों के बचपन को संवार रही, बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान जारी

सरायकेला में बाल कल्याण समिति नौनिहालों के जीवन को बचाने के लिए युद्धस्तर पर कार्य कर रही है. अब तक 40 से अधिक बच्चों को मजदूरी के दलदल से बाहर निकालकर उनके बचपन को संवारा है.समिति के प्रयासों से बेसहारा बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौट रही है.

बाल कल्याण समिति
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Published : Jun 12, 2020, 12:40 PM IST

सरायकेला: पूरे विश्व में 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है, बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कामों से निकाल उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरुआत साल 2002 में की गई थी. देश दुनिया में बच्चों का बचपन बचाने की मुहिम जारी है. इस कार्य में अनेक संगठन कार्य कर रहे हैं. सरायकेला जिले में भी बाल कल्याण समिति इस दिशा में बेहतर कार्य कर रही है.

बाल कल्याण समिति नौनिहालों के बचपन को संवार रही.

समिति ने अब तक बड़ी संख्या में बच्चों का रेस्क्यू किया है. उगता भारत सहयोग समिति की अध्यक्ष ज्ञानवी देवी ने कहा कि उनकी संस्था लगातार इस दिशा में कार्य कर रही है. 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी न कराने के लिए उनके परिजनों को जागरुक किया जा रहा है.

सामाजिक कार्यकर्ता सुबोध शरण ने कहा कि इस क्षेत्र में अनेक एनजीओ कार्य कर रहे हैं. वे भी चाइल्ड लाइन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. ऐसे बच्चों को खोजकर उनके परिजनों तक पहुंचा रहे हैं, लेकिन आज भी सैकड़ों बच्चों को सड़को पर भटकता देखा जा सकता है.

बाल संरक्षण के अध्यक्ष महावीर महतो ने बताया कि जिले में उनकी समिति लगातार कार्य कर रही है. 2014 से अब तक अनेक बच्चों को रेस्क्यू किया है. प्रशासन, चाइल्ड लाइन और श्रम विभाग के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं.

मासूम बच्चों के बेहतर भविष्य की परिकल्पना एक बेहतर वर्तमान से ही की जा सकती है, आज भी ये मासूम अपने सुनहरे भविष्य को वर्तमान के इस अंधेरे में भरसक टटोलने का प्रयास करते हैं, लेकिन राज्य के कई जिलों में मासूम बच्चों से बाल मजदूरी का मामला थमने का मानो नाम नहीं ले रहा है.

केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ कई सामाजिक संगठन भी बाल मजदूरी रोकने जुड़े हैं लेकिन यदा-कदा बच्चों से मजदूरी कराया जाना मानो आम बात है.

सरायकेला-खरसावां जिले में भी बाल कल्याण और संरक्षण के उद्देश्य से साल 2014 में बाल कल्याण समिति गठित की गई. सामाजिक कार्यकर्ता और बाल संरक्षण के क्षेत्र में वर्षो से कार्य कर रहे महावीर महतो विगत 6 सालों से दर्जनों मासूम बच्चों को प्रशासन की मदद से रेस्क्यू कर उनका बचपन लौटाया है.

बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष महावीर महतो ने दर्जनों एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ बाल संरक्षण के क्षेत्र में कई बेहतरीन प्रयास किया है. इनकी टीम हाईवे किनारे ढाबे में काम कर रहे मासूम बच्चों, लोगों के घरों में नौकर के रूप में काम कर रहे नौनिहलो को सुरक्षित तरीके से रेस्क्यू करते हुए मासूमों को शिक्षा,स्वास्थ्य और पोषण योजना से भलीभांति जोड़ने का काम करते आ रही है.

6 साल में 40 से भी अधिक नाबालिक बच्चों को किया रेस्क्यू

वर्ष 2014 में सरायकेला खरसावां जिले में चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की विधिवत घोषणा की गई. शुरुआती दिनों से चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष महावीर महतो ने इन 6 सालों में 40 से भी अधिक नाबालिक बच्चों को सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम किया है.

6 साल के आंकड़े

  • वर्ष 2014 से लेकर 2015 तक चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने 2 मासूम बच्चों को खतरनाक काम करने से रेस्क्यू किया.
  • वर्ष 2015- 2016 में 4 बच्चों को सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर उनके हक और अधिकार दिलाए गए.
  • वर्ष 2016 - 2017 में कुल 6 बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने राहत पहुंचाने का काम किया.
  • वर्ष 2017 -18 में महावीर महतो और उनकी टीम ने 15 बच्चों को रेस्क्यू किया.
  • वर्ष 2018- 19 में टीम ने 5 बच्चों को रेस्क्यू किया गया
  • वर्ष 2019- 2020 में कुल 11 नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू किया गया जिनमें सभी 14 साल के कम उम्र के लड़के और लड़कियां थी.

संयुक्त प्रयास से चलते हैं रेस्क्यू ऑपरेशन

जिले में कार्यरत चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, श्रम विभाग और चाइल्ड हेल्पलाइन के सहयोग से लगातार मासूम बच्चों को ऑपरेशन चलाकर रेस्क्यू किए जाने का काम करती है.

सर्वप्रथम टीम को प्राप्त बाल श्रम या बाल अधिकार हनन संबंधित सूचनाएं प्राप्त होने के बाद संयुक्त रूप से टीम गठित की जाती है, जिसमें कई सामाजिक संगठन और एनजीओ भी शामिल होते हैं.

इसके बाद संस्था या जिस स्थान पर बच्चों से बाल श्रम कराया जा रहा है वहां पहुंचकर कार्यरत बच्चों को सकुशल रेस्क्यू किया जाता है और आगे उनके स्वास्थ्य ,शिक्षा और पोषण की व्यवस्था की जाती है.

चाइल्ड लेबर एक्ट के तहत कार्रवाई

केंद्रीय श्रम मंत्रालय की ओर से बाल मजदूरी को रोकने के उद्देश्य से चाइल्ड लेबर एक्ट 1986 बना. इस एक्ट के प्रावधानों के तहत बच्चों से मजदूरी कराए जाने के मामले सामने आने पर जबरन मजदूरी कराए जाने के आरोपी को 20 से 50 हजार तक का जुर्माना, कम से कम 6 माह और अधिक से अधिक 2 साल की सजा का प्रावधान तय किया गया है.

बाल कल्याण समिति बच्चों को लेकर लगातार प्रयासरत है. बावजूद इसके बाल अधिकार हनन और बाल श्रम के मामले लगातार सामने आते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर बाल मजदूर होटल, गैरेज, चाय की दुकान या बड़े लोगों के बंगलों में साफ सफाई का काम करते नजर आते हैं.

2015 में अधिनियम हुआ संशोधित

श्रम चाइल्ड लेबर एक्ट 1986 को वर्ष 2015 में संशोधित किया गया. संशोधित किए गए प्रावधान के तहत 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे अपना और अपने आश्रितों का भरण पोषण करने के उद्देश्य से मजदूरी कर सकते हैं ,लेकिन ऐसे बच्चों को स्कूल अवधि को छोड़ खाली बचे समय में ही मजदूरी करना होगा.

बाल संरक्षण आयोग ने बनाए हैं ये नियम

बाल संरक्षण आयोग में बाल श्रम और बाल अधिकार हनन रोकने के तहत ऐसे बच्चे जो विद्यालय नहीं जा सके और श्रम कार्य में लग गए उन्हें चिन्हित कर शिक्षित करना प्रमुखता में शुमार है.

आयोग द्वारा बनाए गए 57 ऐसे कार्य की सूची है, जिसे खतरनाक श्रेणी में लाया गया है, जहां बच्चे काम नहीं कर सकते जिनमें मुख्य रुप से कबाड़ चुनने, तेल पेराई, चमड़ा ,रेशम के कार्य , आरा मशीन, मशीन के जरिए कार्य ,प्लास्टिक और तंबाकू, साबुन ,बीड़ी निर्माण कार्य प्रमुख रूप से चिन्हित हैं.

स्पॉन्सरशिप कार्यक्रम है मददगार

बाल कल्याण विभाग ड्रॉपआउट और बाल मजदूरी में संलिप्त बच्चों को चिन्हित कर उन्हें स्पॉन्सरशिप कार्यक्रम के तहत 2 हजार रुपए प्रतिमाह उपलब्ध कराता है. इससे बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य शिक्षा और पोषण मिले इस कार्यक्रम के तहत प्रतिवर्ष 45 बच्चों का चयन किया जाना है, जिन्हें योजना का लाभ दिया जा सके.

सरायकेला बाल कल्याण समिति ने इस वर्ष 9 बच्चों को चिन्हित कर उन्हें स्पॉन्सरशिप कार्यक्रम का लाभ दिया है. एनजीओ और सामाजिक संगठन भी करते हैं प्रयास

बाल अधिकार हनन और बाल श्रम रोकने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी गैर सरकारी संस्था एनजीओ और कई स्वयं सेवी संस्थाओं का भी सहारा लेती है. इन संस्थाओं के माध्यम से क्षेत्र में हो रहे बाल श्रम और बाल अधिकार हनन मामला संज्ञान में आने के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन किया जाता है.

सरायकेला जिले में आधा दर्जन से भी अधिक ऐसी संस्था और संगठन चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. इनके जरिए कई बच्चों को रेस्क्यू किया गया है. इधर जिले में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और बाल संरक्षण समिति से जुड़े लोग यह मानते हैं, कि महज एक चाइल्ड हेल्पलाइन या बाल संरक्षण कमेटी के भरोसे बचपन से भटके मासूमों को मुख्यधारा से नहीं जोड़ा जा सकता है. सभी को कार्य करना होगा.

सामाजिक कार्यकर्ता सुबोध शरण ने कहा कि इस क्षेत्र में अनेक एनजीओ कार्य कर रहे हैं. वे भी चाइल्ड लाइन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. ऐसे बच्चों को खोजकर उनके परिजनों तक पहुंचा रहे हैं, लेकिन आज भी सैकड़ों बच्चों को सड़को पर भटकता देखा जा सकता है.

कहते हैं बच्चे कल का भविष्य है लेकिन यह भविष्य सुनहरा तभी होगा जब वर्तमान बेहतर होगा. असंगठित क्षेत्र में ऐसे बाल श्रमिकों की एक बड़ी तादाद है, जिन्हें सरकार के विशेष मुहिम के जरिए ही बेहतर तरीके से लाभ पहुंचाया जा सकता है. मासूमों का बचपन बचाने के लिए देश भर में बड़ा अभियान चलाने की जरूरत है.

सरायकेला: पूरे विश्व में 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है, बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कामों से निकाल उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरुआत साल 2002 में की गई थी. देश दुनिया में बच्चों का बचपन बचाने की मुहिम जारी है. इस कार्य में अनेक संगठन कार्य कर रहे हैं. सरायकेला जिले में भी बाल कल्याण समिति इस दिशा में बेहतर कार्य कर रही है.

बाल कल्याण समिति नौनिहालों के बचपन को संवार रही.

समिति ने अब तक बड़ी संख्या में बच्चों का रेस्क्यू किया है. उगता भारत सहयोग समिति की अध्यक्ष ज्ञानवी देवी ने कहा कि उनकी संस्था लगातार इस दिशा में कार्य कर रही है. 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी न कराने के लिए उनके परिजनों को जागरुक किया जा रहा है.

सामाजिक कार्यकर्ता सुबोध शरण ने कहा कि इस क्षेत्र में अनेक एनजीओ कार्य कर रहे हैं. वे भी चाइल्ड लाइन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. ऐसे बच्चों को खोजकर उनके परिजनों तक पहुंचा रहे हैं, लेकिन आज भी सैकड़ों बच्चों को सड़को पर भटकता देखा जा सकता है.

बाल संरक्षण के अध्यक्ष महावीर महतो ने बताया कि जिले में उनकी समिति लगातार कार्य कर रही है. 2014 से अब तक अनेक बच्चों को रेस्क्यू किया है. प्रशासन, चाइल्ड लाइन और श्रम विभाग के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं.

मासूम बच्चों के बेहतर भविष्य की परिकल्पना एक बेहतर वर्तमान से ही की जा सकती है, आज भी ये मासूम अपने सुनहरे भविष्य को वर्तमान के इस अंधेरे में भरसक टटोलने का प्रयास करते हैं, लेकिन राज्य के कई जिलों में मासूम बच्चों से बाल मजदूरी का मामला थमने का मानो नाम नहीं ले रहा है.

केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ कई सामाजिक संगठन भी बाल मजदूरी रोकने जुड़े हैं लेकिन यदा-कदा बच्चों से मजदूरी कराया जाना मानो आम बात है.

सरायकेला-खरसावां जिले में भी बाल कल्याण और संरक्षण के उद्देश्य से साल 2014 में बाल कल्याण समिति गठित की गई. सामाजिक कार्यकर्ता और बाल संरक्षण के क्षेत्र में वर्षो से कार्य कर रहे महावीर महतो विगत 6 सालों से दर्जनों मासूम बच्चों को प्रशासन की मदद से रेस्क्यू कर उनका बचपन लौटाया है.

बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष महावीर महतो ने दर्जनों एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ बाल संरक्षण के क्षेत्र में कई बेहतरीन प्रयास किया है. इनकी टीम हाईवे किनारे ढाबे में काम कर रहे मासूम बच्चों, लोगों के घरों में नौकर के रूप में काम कर रहे नौनिहलो को सुरक्षित तरीके से रेस्क्यू करते हुए मासूमों को शिक्षा,स्वास्थ्य और पोषण योजना से भलीभांति जोड़ने का काम करते आ रही है.

6 साल में 40 से भी अधिक नाबालिक बच्चों को किया रेस्क्यू

वर्ष 2014 में सरायकेला खरसावां जिले में चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की विधिवत घोषणा की गई. शुरुआती दिनों से चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष महावीर महतो ने इन 6 सालों में 40 से भी अधिक नाबालिक बच्चों को सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम किया है.

6 साल के आंकड़े

  • वर्ष 2014 से लेकर 2015 तक चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने 2 मासूम बच्चों को खतरनाक काम करने से रेस्क्यू किया.
  • वर्ष 2015- 2016 में 4 बच्चों को सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर उनके हक और अधिकार दिलाए गए.
  • वर्ष 2016 - 2017 में कुल 6 बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने राहत पहुंचाने का काम किया.
  • वर्ष 2017 -18 में महावीर महतो और उनकी टीम ने 15 बच्चों को रेस्क्यू किया.
  • वर्ष 2018- 19 में टीम ने 5 बच्चों को रेस्क्यू किया गया
  • वर्ष 2019- 2020 में कुल 11 नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू किया गया जिनमें सभी 14 साल के कम उम्र के लड़के और लड़कियां थी.

संयुक्त प्रयास से चलते हैं रेस्क्यू ऑपरेशन

जिले में कार्यरत चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, श्रम विभाग और चाइल्ड हेल्पलाइन के सहयोग से लगातार मासूम बच्चों को ऑपरेशन चलाकर रेस्क्यू किए जाने का काम करती है.

सर्वप्रथम टीम को प्राप्त बाल श्रम या बाल अधिकार हनन संबंधित सूचनाएं प्राप्त होने के बाद संयुक्त रूप से टीम गठित की जाती है, जिसमें कई सामाजिक संगठन और एनजीओ भी शामिल होते हैं.

इसके बाद संस्था या जिस स्थान पर बच्चों से बाल श्रम कराया जा रहा है वहां पहुंचकर कार्यरत बच्चों को सकुशल रेस्क्यू किया जाता है और आगे उनके स्वास्थ्य ,शिक्षा और पोषण की व्यवस्था की जाती है.

चाइल्ड लेबर एक्ट के तहत कार्रवाई

केंद्रीय श्रम मंत्रालय की ओर से बाल मजदूरी को रोकने के उद्देश्य से चाइल्ड लेबर एक्ट 1986 बना. इस एक्ट के प्रावधानों के तहत बच्चों से मजदूरी कराए जाने के मामले सामने आने पर जबरन मजदूरी कराए जाने के आरोपी को 20 से 50 हजार तक का जुर्माना, कम से कम 6 माह और अधिक से अधिक 2 साल की सजा का प्रावधान तय किया गया है.

बाल कल्याण समिति बच्चों को लेकर लगातार प्रयासरत है. बावजूद इसके बाल अधिकार हनन और बाल श्रम के मामले लगातार सामने आते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर बाल मजदूर होटल, गैरेज, चाय की दुकान या बड़े लोगों के बंगलों में साफ सफाई का काम करते नजर आते हैं.

2015 में अधिनियम हुआ संशोधित

श्रम चाइल्ड लेबर एक्ट 1986 को वर्ष 2015 में संशोधित किया गया. संशोधित किए गए प्रावधान के तहत 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे अपना और अपने आश्रितों का भरण पोषण करने के उद्देश्य से मजदूरी कर सकते हैं ,लेकिन ऐसे बच्चों को स्कूल अवधि को छोड़ खाली बचे समय में ही मजदूरी करना होगा.

बाल संरक्षण आयोग ने बनाए हैं ये नियम

बाल संरक्षण आयोग में बाल श्रम और बाल अधिकार हनन रोकने के तहत ऐसे बच्चे जो विद्यालय नहीं जा सके और श्रम कार्य में लग गए उन्हें चिन्हित कर शिक्षित करना प्रमुखता में शुमार है.

आयोग द्वारा बनाए गए 57 ऐसे कार्य की सूची है, जिसे खतरनाक श्रेणी में लाया गया है, जहां बच्चे काम नहीं कर सकते जिनमें मुख्य रुप से कबाड़ चुनने, तेल पेराई, चमड़ा ,रेशम के कार्य , आरा मशीन, मशीन के जरिए कार्य ,प्लास्टिक और तंबाकू, साबुन ,बीड़ी निर्माण कार्य प्रमुख रूप से चिन्हित हैं.

स्पॉन्सरशिप कार्यक्रम है मददगार

बाल कल्याण विभाग ड्रॉपआउट और बाल मजदूरी में संलिप्त बच्चों को चिन्हित कर उन्हें स्पॉन्सरशिप कार्यक्रम के तहत 2 हजार रुपए प्रतिमाह उपलब्ध कराता है. इससे बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य शिक्षा और पोषण मिले इस कार्यक्रम के तहत प्रतिवर्ष 45 बच्चों का चयन किया जाना है, जिन्हें योजना का लाभ दिया जा सके.

सरायकेला बाल कल्याण समिति ने इस वर्ष 9 बच्चों को चिन्हित कर उन्हें स्पॉन्सरशिप कार्यक्रम का लाभ दिया है. एनजीओ और सामाजिक संगठन भी करते हैं प्रयास

बाल अधिकार हनन और बाल श्रम रोकने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी गैर सरकारी संस्था एनजीओ और कई स्वयं सेवी संस्थाओं का भी सहारा लेती है. इन संस्थाओं के माध्यम से क्षेत्र में हो रहे बाल श्रम और बाल अधिकार हनन मामला संज्ञान में आने के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन किया जाता है.

सरायकेला जिले में आधा दर्जन से भी अधिक ऐसी संस्था और संगठन चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. इनके जरिए कई बच्चों को रेस्क्यू किया गया है. इधर जिले में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और बाल संरक्षण समिति से जुड़े लोग यह मानते हैं, कि महज एक चाइल्ड हेल्पलाइन या बाल संरक्षण कमेटी के भरोसे बचपन से भटके मासूमों को मुख्यधारा से नहीं जोड़ा जा सकता है. सभी को कार्य करना होगा.

सामाजिक कार्यकर्ता सुबोध शरण ने कहा कि इस क्षेत्र में अनेक एनजीओ कार्य कर रहे हैं. वे भी चाइल्ड लाइन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. ऐसे बच्चों को खोजकर उनके परिजनों तक पहुंचा रहे हैं, लेकिन आज भी सैकड़ों बच्चों को सड़को पर भटकता देखा जा सकता है.

कहते हैं बच्चे कल का भविष्य है लेकिन यह भविष्य सुनहरा तभी होगा जब वर्तमान बेहतर होगा. असंगठित क्षेत्र में ऐसे बाल श्रमिकों की एक बड़ी तादाद है, जिन्हें सरकार के विशेष मुहिम के जरिए ही बेहतर तरीके से लाभ पहुंचाया जा सकता है. मासूमों का बचपन बचाने के लिए देश भर में बड़ा अभियान चलाने की जरूरत है.

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