साहिबगंज: जिले में सरकारी उदासीनता के कारण ऐतिहासिक धरोहर खत्म होने की कगार पर पहुंचने लगा है. जुरासिक काल के फॉसिल पार्क का अस्तित्व धीरे-धीरे मिटने लगा है. इस पार्क के संरक्षण का काम कछुए की गति से चल रहा है. पत्थर व्यवसायी इस धरोहर से पत्थर निकालकर धड़ल्ले से सड़क निर्माण कार्य में लगा रहे हैं.
फॉसिल पार्क के ये पत्थर देखने में आम पत्थरों के तरह लगते हैं. बताया जाता है कि करोड़ों वर्ष पहले पेड़ों के जमीन में दबने के कारण पेड़ ने पत्थर का रुप ले लिया है, जिसे पादप जीवाश्म या फॉसिल के रूप में जाना जाता है. राजमहल की पहाड़ी पर फॉसिल अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसमें सबसे ज्यादा फॉसिल मिर्जाचौकी थानांतर्गत मंडरो प्रखंड के तारा पहाड़ पर पाया जाता है. यहां कई एकड़ जमीन पर फॉसिल्स बिखरा पड़ा है. इस अनमोल पत्थरों के संरक्षण के लिए सरकार ने कोई खास पहल नहीं की है, जबकि इस पत्थर को देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं.
दूर-दूर से आते हैं भूगर्भशास्त्री
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह एक सौभाग्य है कि राजमहल की पहाड़ी पर ऐतिहासिक धरोहर फॉसिल्स देखने को मिलते हैं. झारखंड और विश्व के इतिहास में साहिबगंज के फॉसिल का नाम विख्यात है. फॉसिल्स के शोध के लिए लिए यहां लगातार भूगर्भशास्त्री पहुंचते हैं, लेकिन बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद भी आज तक इसके संरक्षण के बारे में नहीं सोचा गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार की लापरवाही के कारण आज फॉसिल का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.
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स्थानीय के मदद से होती है फॉसिल की रक्षा
मंडरो प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी बताते हैं जिला प्रशासन और स्थानीय मिलकर फॉसिल की सुरक्षा करते हैं, उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन फॉसिल के संरक्षण का काम करवा रही है, बहुत जल्द नए रूप में फॉसिल का इतिहास जानने का मौका लोगों को मिलेगा. उन्होंने बताया कि पर्यटकों को बढ़ावा देने के लिए भी जिला प्रशासन लगातार पहल कर रही है.
फॉसिल का संरक्षण जरुरी
वहीं भूगर्भशास्त्री रंजीत सिंह ने बताया कि सबसे पहले फॉसिल का संरक्षण जरूरी है, तभी इसके इतिहास को लोग जान पाएंगे. उन्होंने कहा कि तारा पहाड़ पर जितना फॉसिल पहले देखने को मिलता था उस रुप में अब नहीं दिखता है. रंजीत सिंह ने बताया कि घूमने आए सैलानी भी इसे फोड़ कर अपने घर लेकर जा रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन की सुस्ती के कारण आज फॉसिल्स का अस्तित्व खतरे में है, जबकि केंद्र सरकार इस फॉसिल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में घोषित कर चुकी है.
पर्यटन को दिया जाएगा बढ़ावा
केंद्र सरकार ने फॉसिल के संरक्षण को लेकर 10 करोड़ रुपया मुहैया कराए हैं, जिसमें एक फॉसिल पार्क बनाया जा रहा है, ताकि एक जगह इस फॉसिल को देखा जा सकता है और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी काम किया जा रहा है, लेकिन काम की गति धीमी होने की वजह से यहां फॉसिल का अस्तित्व खत्म होते जा रहा है.
संरक्षण का कार्य जारी
इसे लेकर जिला उपायुक्त वरुण रंजन ने कहा कि फॉसिल काफी पुराना है, एशिया में सबसे अधिक पादप जीवाश्म इस तारा पहाड़ पर बिखरा हुआ देखने को मिलता है, इसके संरक्षण का काम चल रहा है. उन्होंने बताया कि फॉसिल पार्क बनाने का काम तेजी से चल रहा है, बहुत जल्द जिले वासियों को और भूगर्भ शास्त्रियों को यहां अलग तरह का पार्क देखने को मिलेगा, साथ ही आने वाले समय में इस फॉसिल पार्क को फॉसिल म्यूजियम बनाने पर भी विचार किया जाएगा, जिससे युवाओं को भी रोजगार मिलेगा.
अफ्रीका के अलावा साहिबगंज में पाया जाता है फॉसिल
अफ्रीका के बाद झारखंड के तारा पहाड़ पर ही फॉसिल पाया जाता है. देश विदेश से भूगर्भशास्त्री यहां शोध करने के पहुंचते हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण इसका अस्तित्व खतरे में आ गया है. अगर सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है तो एक ऐतिहासिक धरोहर का अंत हो जाएगा.