साहिबगंजः किसान को आर्थिक रूप से मजबूत करने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, ताकि किसानों की आय दोगुनी हो सके. इसमें एक योजना है फसल बीमा. वर्ष 2016 में जिले के किसानों ने 250 रुपये देकर प्रति एकड़ फसल बीमा कराया. उस वर्ष बाढ़ की वजह से फसल बर्बाद हो गया. फसल क्षतिपूर्ति की राशि बैंक एकाउंट में रखा है, लेकिन जिला प्रशासन की लापरवाही की वजह से किसानों को नहीं मिल पा रही है.
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बाढ़ प्रभावित जिला होने के कारण प्रत्येक किसान प्रतिवर्ष फसल बीमा कराते हैं, ताकि फसल बर्बाद होने पर क्षतिपूर्ति मिल जाए. वर्ष 2016 में 2850 किसानों ने फसल बीमा कराया. जब फसल बर्बाद हुआ, तो इन बीमाधारक किसानों के लिए 6.90 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति मद में आया और क्षतिपूर्ति राशि का वितरण भी किया गया. हालांकि, अब भी 490 किसान क्षतिपूर्ति राशि से वंचित हैं. जबकि, बैंक में 1.69 करोड़ रुपये वर्षों से रखा हुआ है. स्थिति यह है कि किसान जिला प्रशासन के दफ्तर के चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
रकम पर 3 % वार्षिक की दर से होगा इतना ब्याज
बता दें साहिबगंज जिला प्रशासन ने 490 किसानों के 1.69 करोड़ रुपये किसानों को करीब पांच साल से नहीं बांटे हैं. यदि यह पैसा सेविंग खाते में भी जमा है, जिस पर यदि न्यूनतम तीन प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की भी गणना करें तो पांच साल में 25 लाख 35 हजार रुपये ब्याज होंगे, जबकि खातों में जमा पैसे पर मिला ब्याज अगले साल के लिए मूलधन हो जाता है. इस तरह पांच साल में किसानों के हक के पैसे से जिला प्रशासन की लाखों रुपये कमाई हो रही है. जबकि जिले के किसान आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं.
490 किसानों को नहीं मिली क्षतिपूर्ति राशि
किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष लक्ष्मण यादव कहते हैं 2016 के फसल बीमा की क्षतिपूर्ति देने के लिए 6 करोड़ 90 लाख 60 हजार 486 रुपया आया. इसमें 490 किसानों को चार साल बाद भी क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिली है. जबकि, बैंक में एक करोड़ 69 लाख पड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि आरटीआई से सूचना की मांग की, तो बैंक से किसानों के नाम सहित रखे पैसे की पूरी जानकारी दे दी. उन्होंने कहा कि बैंक में पर्याप्त राशि होने के बावजूद किसानों को पैसा नहीं मिल रहा है. इसको लेकर कोई भी पदाधिकारी सुनने को तैयार नहीं है.
नहीं सुन रहा कोई पदाधिकारी
लक्ष्मण यादव ने बताया कि जिला आपूर्ति पदाधिकारी और बैंक कर्मी तरह-तरह का बहाना बनाकर टाल रहे हैं. किसान हर दिन ऑफिस का चक्कर लगाता है और निराश होकर घर लौट जाते हैं. फसल क्षति को 5 साल हो रहे हैं. इसके बावजूद किसान दर-दर भटक रहे हैं.