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मशरूम की खेती से असमीला खातून बनीं गरीबी उन्मूलन की प्रेरणा स्रोत, गांव की महिलाओं को कर रहीं प्रशिक्षित

साहिबगंज में मशरूम की खेती जीवन का आधार बनता जा रहा हैं. महिलाएं इससे जुड़कर आमदनी के साथ-साथ अपना जीवन भी संवार रहीं हैं. ऐसी हीं प्रेरणा स्रोत बनकर उभरी हैं साहिबगंज की असमीला खातून. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए, असमीला की पूरी कहानी.

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मशरूम की खेती
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Published : Jan 2, 2022, 5:22 PM IST

Updated : Jan 2, 2022, 10:01 PM IST

साहिबगंजः महिलाएं भी अब पुरूषों की तुलना में पीछे नहीं हैं. महिलाएं कदम से कदम मिलाकर हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं. एक ऐसा ही मुस्लिम समुदाय की एक महिला जेएलपीएस और केवीके से जुड़कर मशरूम की खेती कर लाखों रुपया की आमदनी हर साल कर रही हैं. साहिबगंज में मशरूम की खेती से इस परिवार का जीवन भी सुधर रहा है.

इसे भी पढ़ें- उच्च शिक्षा की ललक ने दिखाई खेती की राह, छात्राएं मशरूम उत्पादन से दे रहीं अपने सपनों को उड़ान


साहिबगंज जिला में बोरियो प्रखंड अंतर्गत पंचायत बड़ा मदनशाही और छोटा पांगड़ो गांव की रहने वाली असमीला खातून. जो आज क्षेत्र की महिलाओं के लिए मिसाल कायम कर रही हैं. अपनी कला, नयी सोच और सामाजिक बंधनों से ऊपर उठकर अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दे रही हैं. असमीला खातून राजमहल की रहने वाली हैं, साल 2000 में शादी के बाद ससुराल वालों ने दहलीज से बाहर जाने पर पांबदी लगी दी थी. लेकिन कुछ नया करने की चाह थी और खुद के पैरों पर खड़ा होने की ललक थी. असमीला ने शादी के बाद बीए की पढ़ाई पूरी की और 2006 में ससुराल आयी. शुरुआती दौर आंगनबाड़ी सेविका में चयन हुआ, घर के बाहर जाकर काम करने में उनके पति का भरपूर साथ मिला.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

असमीला खातून सबसे पहले जेएलपीएस से जुड़कर सखी मंडल ग्रुप बनाईं और केवीके से जुड़कर मशरुम की खेती करने का तरीका सीखा. खेती करने के लिए सखी मंडल से कम ब्याज पर कर्ज ली और खेती करना शुरु किया. इसका फायदा असमीला की समझ में आने लगा. इससे प्रभावित होकर मदनशाही में तीस से पैतीस सखी मंडल ग्रुप यानी 150 महिलाओं को जोड़कर मशरुम की खेती करने का प्रशिक्षण उन्हें दिया. इस गांव में आज असमीला खातून गरीबी उन्मूलन की प्रेरणा स्रोत बनी हैं.

Asmila Khatun became inspiration for poverty alleviation due to mushroom cultivation in Sahibganj
मशरूम की खेती करतीं असमीला खातून

असमीला खातून ने बताया कि मशरूम की खेती आमदनी का आधार बन रहा है. वर्तमान में 40 महिलाएं मशरुम की खेती कर रही हैं और हर महीना हजारों रुपया का फायदा हो रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से मशरुम की खेती कर रही हैं, अभी मशरुम के 60 पैकेट लगाई गयी है. यह फसल 22 दिनों में तैयार हो जाता है एक पैकेट पर लगभग 30 रुपया खर्च आता है और एक पैकेट से लगभग 5 किलो ग्राम मशरुम उत्पादन होता है. 200 रुपया प्रतिकिलो मशरुम बिक्री होती है. इस तरह तरह कम लागत में हजारों रुपया का फायदा हर महीने होता है.

असमीला ने बताया कि साहिबगंज में स्थायी रुप से बाजार नहीं है. इस वजह से दिक्कत होती है लेकिन केवीके में मशरूम पहुंचा देते हैं. इससे अलावा उनके जानने वाले लोग उनके घर से आकर मशरूम ले जाते हैं. खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि मशरूम से होने वाली आमदनी से उनकी गरीबी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है. आज हाथ में दो पैसा है बच्चों को अच्छी तरह शिक्षा दे रही हैं. उन्होंने बताया कि पहले बहुत दिक्कत होता था लेकिन अब इस खेती करके खुश हैं. आगे बटन मशरुम और किचेन गार्डेन का प्रशिक्षण ले रही हैं और सभी महिलाओं को जागरूक भी कर रही हैं. जिससे उनके जीवन में भी बदलाव आए.

इसे भी पढ़ें- मशरूम की खेती कर सशक्त बनीं साहिबगंज की मीरा, दूसरी महिलाओं के लिए भी बनीं प्रेरणा

मशरूम की खेती कैसे होती है

असमीला की सहयोगी अपरोजी खातून ने कहा कि मशरुम की खेती करना बहुत आसान है, हर महिला को मशरुम की खेती करना चाहिए. उन्होंने बताया कि गेहूं का भूसा या पुआल का कुट्टी में यह किया जाता है. सर्वप्रथम फारमुलीन दवा और वेवस्टीन पाउडर और चुना को पानी में घोल लेगें और उसमें भूसा या कुट्टी को डूबो देंगे. लगभग बारह घंटा के बाद पानी से बाहर निकाल लेंगे. यह ध्यान रहे की उनमें 70 प्रतिशत नमी होनी चाहिए. उसके बाद पॉलिथीन में अच्छी तरह घर में रखकर मजबूत रस्सी के सहारे टांग देंगे. बीच-बीच में पानी देते रहना पड़ता है. इस तरह 22 दिन के अंदर मशरूम काटने लायक हो जाता है. उन्होंने बताया कि इस सखी मंडल के माध्यम से जानकारी मिली और केवीके से जुड़कर प्रशिक्षण लेकर काम करने की शुरूआत की.

Asmila Khatun became inspiration for poverty alleviation due to mushroom cultivation in Sahibganj
मशरूम की खेती की प्रक्रिया


उन्होंने बताया कि किसी वजह से मशरुम की बिक्री नहीं सकी तो उसे सूखा देते है. बाद में उसका आचार बना लेते हैं या सूखाकर पाउडर बना लेते है. उन्होंने बताया कि यह कई मायनों में मशरूम फायदाेमंद होता है, यह रोग प्रतिरोधक सब्जी है. इसी तरह हिना खातून, रोशन खातून, रधिया देवी, सुनिता देवी, अंगूरी खातून जैसी कई महिलाएं आज मशरुम की खेती कर अपनी जीवन संवार रही हैं और अन्य महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. असमीला खातून के पति मोहम्मद आजाद अंसारी बताते हैं कि यह सही बात है कि मुस्लिम समुदाय में महिलाओं को घर से बाहर कम निकलने दिया जाता है. लेकिन आज हम लोग भी जागरूक हो चुके हैं. इस महंगाई के दौर में हमने समझा कि बच्चों को अच्छी शिक्षा देना हो तो मिलकर काम करना होगा. आज हम सभी लोग घर की महिला को आगे बढ़कर काम करने का सहयोग करते है.

कृषि वैज्ञानिक माया कुमारी ने इस बाबत कहा कि केवीके के माध्यम से प्रगतीशील किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है. जिससे वो वैज्ञानिक तरीके से खेती कर अपनी आमदनी को दोगुना कर सके. इसी कड़ी में छोटा-सा गांव मदनशाही की कई महिलाएं मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लेकर आज सुखी और संपन्न हो रही हैं. उन सभी को अब बटन मशरूम और किचन गार्डेन का प्रशिक्षण देने की तैयारी चल रही है.

साहिबगंजः महिलाएं भी अब पुरूषों की तुलना में पीछे नहीं हैं. महिलाएं कदम से कदम मिलाकर हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं. एक ऐसा ही मुस्लिम समुदाय की एक महिला जेएलपीएस और केवीके से जुड़कर मशरूम की खेती कर लाखों रुपया की आमदनी हर साल कर रही हैं. साहिबगंज में मशरूम की खेती से इस परिवार का जीवन भी सुधर रहा है.

इसे भी पढ़ें- उच्च शिक्षा की ललक ने दिखाई खेती की राह, छात्राएं मशरूम उत्पादन से दे रहीं अपने सपनों को उड़ान


साहिबगंज जिला में बोरियो प्रखंड अंतर्गत पंचायत बड़ा मदनशाही और छोटा पांगड़ो गांव की रहने वाली असमीला खातून. जो आज क्षेत्र की महिलाओं के लिए मिसाल कायम कर रही हैं. अपनी कला, नयी सोच और सामाजिक बंधनों से ऊपर उठकर अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दे रही हैं. असमीला खातून राजमहल की रहने वाली हैं, साल 2000 में शादी के बाद ससुराल वालों ने दहलीज से बाहर जाने पर पांबदी लगी दी थी. लेकिन कुछ नया करने की चाह थी और खुद के पैरों पर खड़ा होने की ललक थी. असमीला ने शादी के बाद बीए की पढ़ाई पूरी की और 2006 में ससुराल आयी. शुरुआती दौर आंगनबाड़ी सेविका में चयन हुआ, घर के बाहर जाकर काम करने में उनके पति का भरपूर साथ मिला.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

असमीला खातून सबसे पहले जेएलपीएस से जुड़कर सखी मंडल ग्रुप बनाईं और केवीके से जुड़कर मशरुम की खेती करने का तरीका सीखा. खेती करने के लिए सखी मंडल से कम ब्याज पर कर्ज ली और खेती करना शुरु किया. इसका फायदा असमीला की समझ में आने लगा. इससे प्रभावित होकर मदनशाही में तीस से पैतीस सखी मंडल ग्रुप यानी 150 महिलाओं को जोड़कर मशरुम की खेती करने का प्रशिक्षण उन्हें दिया. इस गांव में आज असमीला खातून गरीबी उन्मूलन की प्रेरणा स्रोत बनी हैं.

Asmila Khatun became inspiration for poverty alleviation due to mushroom cultivation in Sahibganj
मशरूम की खेती करतीं असमीला खातून

असमीला खातून ने बताया कि मशरूम की खेती आमदनी का आधार बन रहा है. वर्तमान में 40 महिलाएं मशरुम की खेती कर रही हैं और हर महीना हजारों रुपया का फायदा हो रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से मशरुम की खेती कर रही हैं, अभी मशरुम के 60 पैकेट लगाई गयी है. यह फसल 22 दिनों में तैयार हो जाता है एक पैकेट पर लगभग 30 रुपया खर्च आता है और एक पैकेट से लगभग 5 किलो ग्राम मशरुम उत्पादन होता है. 200 रुपया प्रतिकिलो मशरुम बिक्री होती है. इस तरह तरह कम लागत में हजारों रुपया का फायदा हर महीने होता है.

असमीला ने बताया कि साहिबगंज में स्थायी रुप से बाजार नहीं है. इस वजह से दिक्कत होती है लेकिन केवीके में मशरूम पहुंचा देते हैं. इससे अलावा उनके जानने वाले लोग उनके घर से आकर मशरूम ले जाते हैं. खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि मशरूम से होने वाली आमदनी से उनकी गरीबी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है. आज हाथ में दो पैसा है बच्चों को अच्छी तरह शिक्षा दे रही हैं. उन्होंने बताया कि पहले बहुत दिक्कत होता था लेकिन अब इस खेती करके खुश हैं. आगे बटन मशरुम और किचेन गार्डेन का प्रशिक्षण ले रही हैं और सभी महिलाओं को जागरूक भी कर रही हैं. जिससे उनके जीवन में भी बदलाव आए.

इसे भी पढ़ें- मशरूम की खेती कर सशक्त बनीं साहिबगंज की मीरा, दूसरी महिलाओं के लिए भी बनीं प्रेरणा

मशरूम की खेती कैसे होती है

असमीला की सहयोगी अपरोजी खातून ने कहा कि मशरुम की खेती करना बहुत आसान है, हर महिला को मशरुम की खेती करना चाहिए. उन्होंने बताया कि गेहूं का भूसा या पुआल का कुट्टी में यह किया जाता है. सर्वप्रथम फारमुलीन दवा और वेवस्टीन पाउडर और चुना को पानी में घोल लेगें और उसमें भूसा या कुट्टी को डूबो देंगे. लगभग बारह घंटा के बाद पानी से बाहर निकाल लेंगे. यह ध्यान रहे की उनमें 70 प्रतिशत नमी होनी चाहिए. उसके बाद पॉलिथीन में अच्छी तरह घर में रखकर मजबूत रस्सी के सहारे टांग देंगे. बीच-बीच में पानी देते रहना पड़ता है. इस तरह 22 दिन के अंदर मशरूम काटने लायक हो जाता है. उन्होंने बताया कि इस सखी मंडल के माध्यम से जानकारी मिली और केवीके से जुड़कर प्रशिक्षण लेकर काम करने की शुरूआत की.

Asmila Khatun became inspiration for poverty alleviation due to mushroom cultivation in Sahibganj
मशरूम की खेती की प्रक्रिया


उन्होंने बताया कि किसी वजह से मशरुम की बिक्री नहीं सकी तो उसे सूखा देते है. बाद में उसका आचार बना लेते हैं या सूखाकर पाउडर बना लेते है. उन्होंने बताया कि यह कई मायनों में मशरूम फायदाेमंद होता है, यह रोग प्रतिरोधक सब्जी है. इसी तरह हिना खातून, रोशन खातून, रधिया देवी, सुनिता देवी, अंगूरी खातून जैसी कई महिलाएं आज मशरुम की खेती कर अपनी जीवन संवार रही हैं और अन्य महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. असमीला खातून के पति मोहम्मद आजाद अंसारी बताते हैं कि यह सही बात है कि मुस्लिम समुदाय में महिलाओं को घर से बाहर कम निकलने दिया जाता है. लेकिन आज हम लोग भी जागरूक हो चुके हैं. इस महंगाई के दौर में हमने समझा कि बच्चों को अच्छी शिक्षा देना हो तो मिलकर काम करना होगा. आज हम सभी लोग घर की महिला को आगे बढ़कर काम करने का सहयोग करते है.

कृषि वैज्ञानिक माया कुमारी ने इस बाबत कहा कि केवीके के माध्यम से प्रगतीशील किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है. जिससे वो वैज्ञानिक तरीके से खेती कर अपनी आमदनी को दोगुना कर सके. इसी कड़ी में छोटा-सा गांव मदनशाही की कई महिलाएं मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लेकर आज सुखी और संपन्न हो रही हैं. उन सभी को अब बटन मशरूम और किचन गार्डेन का प्रशिक्षण देने की तैयारी चल रही है.

Last Updated : Jan 2, 2022, 10:01 PM IST
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