रांची: विश्व आदिवासी दिवस पूरे देश भर में मनाया जा रहा है. कोरोना महामारी के कारण बड़े आयोजन नहीं किए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद भी गांव से लेकर शहरों तक विश्व आदिवासी दिवस अपने अपने तरीके से आदिवासी समाज के लोग मना रहे हैं. आदिवासी दिवस आदिवासियों के अस्तित्व के पहचान के रूप में मनाया जा रहा है और गांव में आदिवासी दिवस का एक छटा देखने को मिली, जहां गांव के अखड़ा में आदिवासी वेशभूषा में आदिवासी समुदाय के लोग अखड़ा में गीत-संगीत और नृत्य कर प्राकृतिक को बचाने का संदेश देते नजर आए.
शिक्षा की अलख जगाना बेहद जरूरी
विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर समाजसेवी नीरज भोक्ता ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को पूरे देश भर में आदिवासी दिवस मनाया जाता है, लेकिन आज भी आदिवासियों को उनका अधिकार नहीं मिल पाया है. वह कई क्षेत्र में अब भी पीछे हैं. आज के समय में प्राकृतिक को बचाना और शिक्षा की अलख जगाना बेहद जरूरी है. इसी उद्देश्य से आदिवासी दिवस के मौके पर सैकड़ों पौधे लगाए गए हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि आज जिस तरीके से आदिवासियों की पहचान विलुप्त होते जा रही है. यह बहुत ही सोचनीय विषय है. इस पर सरकार को कार्य करने की जरूरत है.
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अलग से होगा सरना धर्म कॉलम
क्षेत्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फ्रांसिस लिंडा ने कहा कि लंबे समय से आदिवासी सरना धर्म कोड की मांग कर रही है. ताकि उन्हें एक अलग पहचान मिल सके, लेकिन केंद्र की सरकार हो या फिर राज्य की सरकार आदिवासियों को सिर्फ ठगने का कार्य किया है. केंद्र में कांग्रेस का भी शासन रहा है, लेकिन उन्होंने भी आदिवासियों को सरना धर्म कोड देने पर कभी विचार नहीं किया, लेकिन इस बार उम्मीद है की इस होने वाले जनगणना में आदिवासी के लिए अलग से धर्म कॉलम रहेगा. ताकि आदिवासियों को भी उनका हक और अधिकार मिल सके.