रांची: आज विश्व पर्यावरण दिवस है. पर्यावरण के महत्व को बताने, समझाने और लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. देश में वन क्षेत्र को लेकर झारखंड विशेष स्थान रखता है. झारखंड में 33.81% वन क्षेत्र है. साल 2000 में जब झारखंड बिहार से अलग हुआ था तब इस राज्य में करीब 35% वन क्षेत्र थे. इसके बाद तीन सालों में विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई. साल 2003 से लेकर 2019 तक के सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल वन क्षेत्र बढ़ता गया. औसतन हर साल 4.5 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ता गया. सिर्फ 2005 में वन आवरण 125 वर्ग किलोमीटर घट गया था.
70 सालों में 32% घट गया रांची का वन क्षेत्र
पर्यावरणविद् नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ था तब रांची का वन क्षेत्र 52 प्रतिशत से अधिक था. लेकिन पिछले 70 सालों में शहरीकरण के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई और अब राजधानी का वन क्षेत्र घटकर करीब 20% रह गया है. पिछले 70 सालों में सिर्फ रांची का वन क्षेत्र 32% घट गया है.
नालों में तब्दील हो रही नदियां
नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि विकास के नाम पर पेड़ और पहाड़ काटे जा रहे हैं. पेड़ नहीं होगा तो बारिश कैसे होगी? वायु के साथ-साथ पेड़ काटने का सीधा असर जल-चक्र पर भी पड़ा है. नदियां नालों में तब्दील होती जा रही है. दामोदर, स्वर्णरेखा हरमू और नलकारी नदी पहले कल कल बहती थी और इन नदियों का पानी पीने लायक होता था. लेकिन, अब ये नदियां नालों में तब्दील होती जा रही है. इन नदियों से अब बीमारी का खतरा पैदा हो गया है. कई जगह नदियां सूख गई है और कई जगह नदियों पर अतिक्रमण किया जा रहा है. पहले मई में पानी की दिक्कत होती थी लेकिन अब तो फरवरी का महीना खत्म होते ही जलसंकट शुरू हो जाता है. पर्यावरण का संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है.
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) खतरनाक स्तर पर
जब बिहार और झारखंड एक था तब रांची में ग्रीष्णकालीन राजधानी होती थी. तापमान ज्यादा ऊपर नहीं जाता था और हवा की गुणवत्ता भी ठीक रहती थी. पर्यावरणविद् बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में लोगों का रुख शहर की तरफ हुआ है. इससे शहर की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. गाड़ियों से निकलने वाली जहरीली हवा पर्यावरण को दूषित कर रही हैं. यही वजह है कि अब रांची में मौसम पहले जैसा नहीं रहा. रांची में भी भीषण गर्मी पड़ने लगी है. एयर क्वालिटी इंडेक्स भी खतरनाक(150) स्तर के पार कर गया है.
नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि पिछले साल कोरोना की वजह से जब लॉकडाउन लगा था तब रांची का एक्यूआई 40 से नीचे आ गया था. दमा मरीजों को इनहेलर की जरूरत नहीं पड़ रही थी. लेकिन, जैसे ही लॉकडाउन हटा हालात पहले जैसे हो गए. इस बार भी दूसरी लहर में कुछ दिनों तक रांची समेत प्रदेश के दूसरे जिलों में एक्यूआई का स्तर काफी अच्छा रहा है. आधुनिकता के इस दौर में गाड़ियों के परिचालन को कम करना आसान नहीं है लेकिन, इसकी जगह अगर ज्यादा पेड़ लगाए जाएं तो स्थिति थोड़ी ठीक हो सकती है. शहर में बड़े-बड़े फ्लैट बन रहे हैं लेकिन इसमें हरियाली का ध्यान नहीं रखा जा रहा है. मकानों के बीच दूरी और खाली जगह पर हरियाली होनी चाहिए. रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर भी प्लान तैयार करने की जरूरत है.
अल्ट्रावॉयलेट रे इंडेक्स भी खतरनाक स्तर पर
अल्ट्रावॉयलेट रे इंडेक्स यानि यूवी इंडेक्स की बात करें तो अब रांची में यह 10 से ऊपर रहता जो खतरनाक स्तर के पार है. यह 6 से नीचे होनी चाहिए. नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि पहले भी यूवी रे इंडेक्स ऊपर जाता था लेकिन हरियाली की वजह से लोग बच जाते थे. अब काफी पेड़ कट चुके हैं और हरियाली भी कम हो रही है, ऐसे में स्किन से जुड़ी बीमारियां लोगों को ज्यादा हो रही है. पेड़ काटे जा रहे हैं लेकिन नए पेड़ नहीं लगाए जा रहे हैं, यह आने वाली पीढ़ी के लिए चिंता का विषय है.
बच्चों को कैसे करें मोटिवेट?
बच्चों का रूझान पेड़ लगाने की तरफ कैसे हो, इसको लेकर पर्यावरणविद् नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि स्कूल के सिलेबस में इसे लागू करना चाहिए. बच्चों को सिर्फ थ्योरी पढ़ाने से काम नहीं चलेगा, इसके लिए प्रैक्टिकल भी जरूरी है. कुछ बच्चों को पेड़ लगाने की जिम्मेदारी देनी चाहिए जबकि कुछ बच्चों की जिम्मेदारी हो कि उसे कैसे बचाए रखें. स्कूल में आने वाले नए बच्चों की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि जो पेड़ लगे हैं उन्हें किस तरह से बचाया जाए. इसके लिए दूसरे विषयों की तरह मार्क्स दिए जाने चाहिए या ग्रेडिंग होनी चाहिए. ऐसा होने से बच्चे इसे गंभीरतापूर्वक लेंगे. बीच-बीच में बच्चों को जंगल का सैर भी करानी चाहिए.