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क्या द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समाज आरक्षित भी होगा और सुरक्षित भी

एनडीए की ओर से जैसे ही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की गई, वैसे ही देश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई. क्या द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से देश का आदिवासी समाज आरक्षित भी होगा और सुरक्षित भी?

Will tribal society be reserved and safe with Draupadi Murmu becoming President
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Published : Jun 25, 2022, 6:55 PM IST

Updated : Jun 26, 2022, 9:04 AM IST

रांची: देश के प्रथम व्यक्ति के लिए द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने के बाद आदिवासी समाज की चर्चा शुरू हो गई. कुछ बातें राजनीतिक लाभ के लिए दल विशेष का उठाया कदम बताया जा रहा तो कहीं सिर्फ जाति की राजनीति कही जा रही. द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने के बाद कुछ राजनीतिक दलों के लिए सियासत का संकट भी उत्पन्न हो गया है. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि समर्थन न करने के किस आधार को सामने रखा जाए. लेकिन यह सभी कहते हैं कि देश का विकास तब होगा जब समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास में मजबूत हिस्सेदारी होगी. जो शोषित, वंचित और दबे-कुचले हैं, जब उस वर्ग की आवाज देश की सर्वोच्च कुर्सी से उठेगी तब वास्तव में विकास की रफ्तार बढ़ेगी. इसके लिए जरूरी है समाज का संपन्न तबका उसके लिए कार्य करे और यह भारत के विकास की मूल आत्मा होगी.

ये भी पढ़ें- Presidential Election 2022: राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू ने दाखिल किया नामांकन

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन देने की बात नहीं कही है, लेकिन आदिवासी भाषा को झारखंड की मूलभाषा बनाने का ऐलान कर दिया. दरअसल, विकास की मूल भाषा ही यही है, जो अपना है उसे इतना बड़ा बना दिया जाय कि फिर उसके लिए सिर्फ विकास वाली बात सोची जाय और विकास की बात सोचने को कहा जाय.

Will tribal society be reserved and safe with Draupadi Murmu becoming President
पीएम मोदी के साथ राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू

ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) प्रमुख एवं ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने द्रौपदी मुर्मू को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राजग द्वारा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मंगलवार को कहा कि यह उनके राज्य के लोगों के लिए गर्व का क्षण है. पटनायक ने कहा कि “माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मेरे साथ इस पर चर्चा की तो मुझे खुशी हुई. यह वास्तव में ओडिशा के लोगों के लिए गर्व का क्षण है.” पटनायक ने कहा कि उन्हें यकीन है कि मुर्मू “देश में महिला सशक्तिकरण के लिए एक उदाहरण स्थापित करेंगी.”

ये भी पढ़ें- पीएम मोदी ने द्रौपदी मुर्मू से की मुलाकात, बोले- भारत के विकास को लेकर उनका विजन असाधारण

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी द्रौपदी मुर्मू को लेकर अपनी बधाई दी है और कहा है कि इससे देश में बदलाव की नई कहानी लिखी जाएगी. बसपा का पूरा समर्थन द्रौपदी मुर्मू जी को देने का ऐलान पार्टी ने किया है.

Will tribal society be reserved and safe with Draupadi Murmu becoming President
नॉमिनेशन के दौरान शीर्ष नेताओं साथ द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुने जाने के बाद आदिवासी समाज से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता झारखंड रत्न सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि देश में आदिवासी समाज की आबादी 20 करोड़ है. 781 वर्ग में यह समाज है, देश की आजादी से आज तक देश के सर्वोच्च पद पर इस समाज को जगह नहीं मिली थी इससे इस समाज का विकास होगा. देश की संसद में अनुसूचित जाति के लिए 47 पद आरक्षित हैं, राज्यों में सभी विधानसभा को जोड़ दें तो 400 से ज्यादा विधानसभा की सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन सवाल यह है वहां जाने वाला कौन है. कहने के लिए आदिवासी आरक्षित हैं, सुरक्षित नहीं है. आदिवासी समाज की ऐतिहासिक विरासत, सामाजिक विरासत, सांस्कृतिक विरासत की पूरी पहचान ही संकट में है. मैं ऐसा मानता हूं. दलगत भावना से ऊपर सभी को अंतरआत्मा की आवाज सुननी चाहिए और सही मायने में यही आजादी के अमृत महोत्सव का सही भारतीय सोपान है.

ये भी पढ़ें- राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने मंदिर में लगायी झाड़ू

आदिवासी समाज ने अपने हक के लिए लड़ने से अधिक देश के लिए जान न्योछावर करने का काम किया है. इतिहास गवाह है आदिवासी लड़ाई की, जो चाहे छोटा नागपुर क्षेत्र के आदिवासी विद्रोह-तामर विद्रोह (1789-1832), संथालों का खेखार (1858-95), संथाल विद्रोह (30 जून 1855), बिरसा मुंडा का आंदोलन (1895-1901), गुजरात का देवी आंदोलन (1922-23), मिदनापुर का आदिवासी आंदोलन (1918-24), मालदा में जीतू संथाल का आंदोलन (1924-32), ओडिशा का आदिवासी और राष्ट्रीय आंदोलन (1921-36) और असम के आदिवासी आंदोलन (19वीं शताब्दी के अंतिम वर्ष) रहा हो. यह आंदोलन गवाह है समाज और राजनीति में आदिवासी आंदोलन और देश सेवा की.

Will tribal society be reserved and safe with Draupadi Murmu becoming President
मंदिर में झाड़ू लगातीं द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से विकास के लिए कोई ऐसी राह नहीं निकलेगी जो सिर्फ लोगों के घर तक फायदा दे जाएगी, लेकिन द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद तक पहुंचने का कहानी एक प्रेरणा है कुछ कर गुजरने की, सीख है कठिनाइयों को झुका देने और जिंदगी को जिला देने की. द्रौपदी मुर्मू के देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने की कहानी जितनी कठिन है, उतनी है प्रेरणा और रोमांच पैदा करने वाली भी.

रांची: देश के प्रथम व्यक्ति के लिए द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने के बाद आदिवासी समाज की चर्चा शुरू हो गई. कुछ बातें राजनीतिक लाभ के लिए दल विशेष का उठाया कदम बताया जा रहा तो कहीं सिर्फ जाति की राजनीति कही जा रही. द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने के बाद कुछ राजनीतिक दलों के लिए सियासत का संकट भी उत्पन्न हो गया है. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि समर्थन न करने के किस आधार को सामने रखा जाए. लेकिन यह सभी कहते हैं कि देश का विकास तब होगा जब समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास में मजबूत हिस्सेदारी होगी. जो शोषित, वंचित और दबे-कुचले हैं, जब उस वर्ग की आवाज देश की सर्वोच्च कुर्सी से उठेगी तब वास्तव में विकास की रफ्तार बढ़ेगी. इसके लिए जरूरी है समाज का संपन्न तबका उसके लिए कार्य करे और यह भारत के विकास की मूल आत्मा होगी.

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन देने की बात नहीं कही है, लेकिन आदिवासी भाषा को झारखंड की मूलभाषा बनाने का ऐलान कर दिया. दरअसल, विकास की मूल भाषा ही यही है, जो अपना है उसे इतना बड़ा बना दिया जाय कि फिर उसके लिए सिर्फ विकास वाली बात सोची जाय और विकास की बात सोचने को कहा जाय.

Will tribal society be reserved and safe with Draupadi Murmu becoming President
पीएम मोदी के साथ राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू

ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) प्रमुख एवं ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने द्रौपदी मुर्मू को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राजग द्वारा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मंगलवार को कहा कि यह उनके राज्य के लोगों के लिए गर्व का क्षण है. पटनायक ने कहा कि “माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मेरे साथ इस पर चर्चा की तो मुझे खुशी हुई. यह वास्तव में ओडिशा के लोगों के लिए गर्व का क्षण है.” पटनायक ने कहा कि उन्हें यकीन है कि मुर्मू “देश में महिला सशक्तिकरण के लिए एक उदाहरण स्थापित करेंगी.”

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी द्रौपदी मुर्मू को लेकर अपनी बधाई दी है और कहा है कि इससे देश में बदलाव की नई कहानी लिखी जाएगी. बसपा का पूरा समर्थन द्रौपदी मुर्मू जी को देने का ऐलान पार्टी ने किया है.

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नॉमिनेशन के दौरान शीर्ष नेताओं साथ द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुने जाने के बाद आदिवासी समाज से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता झारखंड रत्न सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि देश में आदिवासी समाज की आबादी 20 करोड़ है. 781 वर्ग में यह समाज है, देश की आजादी से आज तक देश के सर्वोच्च पद पर इस समाज को जगह नहीं मिली थी इससे इस समाज का विकास होगा. देश की संसद में अनुसूचित जाति के लिए 47 पद आरक्षित हैं, राज्यों में सभी विधानसभा को जोड़ दें तो 400 से ज्यादा विधानसभा की सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन सवाल यह है वहां जाने वाला कौन है. कहने के लिए आदिवासी आरक्षित हैं, सुरक्षित नहीं है. आदिवासी समाज की ऐतिहासिक विरासत, सामाजिक विरासत, सांस्कृतिक विरासत की पूरी पहचान ही संकट में है. मैं ऐसा मानता हूं. दलगत भावना से ऊपर सभी को अंतरआत्मा की आवाज सुननी चाहिए और सही मायने में यही आजादी के अमृत महोत्सव का सही भारतीय सोपान है.

ये भी पढ़ें- राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने मंदिर में लगायी झाड़ू

आदिवासी समाज ने अपने हक के लिए लड़ने से अधिक देश के लिए जान न्योछावर करने का काम किया है. इतिहास गवाह है आदिवासी लड़ाई की, जो चाहे छोटा नागपुर क्षेत्र के आदिवासी विद्रोह-तामर विद्रोह (1789-1832), संथालों का खेखार (1858-95), संथाल विद्रोह (30 जून 1855), बिरसा मुंडा का आंदोलन (1895-1901), गुजरात का देवी आंदोलन (1922-23), मिदनापुर का आदिवासी आंदोलन (1918-24), मालदा में जीतू संथाल का आंदोलन (1924-32), ओडिशा का आदिवासी और राष्ट्रीय आंदोलन (1921-36) और असम के आदिवासी आंदोलन (19वीं शताब्दी के अंतिम वर्ष) रहा हो. यह आंदोलन गवाह है समाज और राजनीति में आदिवासी आंदोलन और देश सेवा की.

Will tribal society be reserved and safe with Draupadi Murmu becoming President
मंदिर में झाड़ू लगातीं द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से विकास के लिए कोई ऐसी राह नहीं निकलेगी जो सिर्फ लोगों के घर तक फायदा दे जाएगी, लेकिन द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद तक पहुंचने का कहानी एक प्रेरणा है कुछ कर गुजरने की, सीख है कठिनाइयों को झुका देने और जिंदगी को जिला देने की. द्रौपदी मुर्मू के देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने की कहानी जितनी कठिन है, उतनी है प्रेरणा और रोमांच पैदा करने वाली भी.

Last Updated : Jun 26, 2022, 9:04 AM IST
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