रांची: झारखंड में नगर निकाय का चुनाव अधर में है. इसको लेकर रांची नगर निगम के पार्षदों ने जल्द चुनाव की मांग को लेकर हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की है. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अदालत में सुनवाई के दौरान पूर्व पार्षद रौशनी खलखो, अरुण कुमार झा समेत अन्य की याचिका पर अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा.
ये भी पढ़ें- नक्शा स्वीकृति पर नगर निगम और आरआरडीए रेस, आंकड़ा सुनकर हाईकोर्ट हैरान, जवाब दाखिल करने का निर्देश
प्रार्थी के अधिवक्ता ने कहा कि जानबूझकर चुनाव नहीं कराया जा रहा है. लिहाजा, चुनाव होने तक पूर्व पार्षदों को ही काम करने का मौका दिया जाना चाहिए. जैसा पंचायत चुनाव के दौरान हुआ था. इसपर कोर्ट ने सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि कबतक नगर निकाय के चुनाव कराए जाएंगे. हालांकि इसपर कोई ठोस सकारात्मक जवाब नहीं मिला. सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि ओबीसी आरक्षण को लेकर अलग से कमीशन का गठन कर दिया गया है. जवाब में प्रार्थी के अधिवक्ता ने कहा कि कमीशन का गठन तो कर दिया गया है लेकिन अभी तक कमीशन में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है.
इसको गंभीर मामला बताते हुए कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार बताए कि ओबीसी को आरक्षण देने के लिए गठित कमीशन के अध्यक्ष की नियुक्ति कबतक होगी. कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा कि अगर इसका जवाब नहीं मिलता है तो विभागीय सचिव को अदालत में सशरीर उपस्थित होकर जवाब देना होगा. मामले की अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी.
दरअसल, रांची नगर निगम का चुनाव लंबित है. कार्यकाल पूरा होने के बाद से वार्ड पार्षदों का अधिकार निगम के अधिकारियों के पास चला गया है. जबकि पंचायत चुनाव के वक्त मुखिया और अन्य जनप्रतिनिधियों को अधिकार दिया गया था. इस उपेक्षा पर सवाल उठाते हुए कई पूर्व पार्षदों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. आरोप लगाया गया है कि सरकार जानबूझकर चुनाव को टाल रही है. संविधान के तहत पांच साल में चुनाव होना चाहिए. नगर निगम के नियम 20 भी कहता है कि कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनावी प्रक्रिया पूरी लेनी है.
पूर्व वार्ड पार्षदों का कहना है कि जब तक सरकार चुनाव नहीं कराती है, तब तक उन्हें काम करने के लिए अवधि विस्तार दिया जाना चाहिए. क्योंकि की समस्याओं का समाधान सबसे सरल रूप से पार्षद ही कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर बताया गया कि घर में बच्चे का जन्म होने पर जन्म प्रमाण पत्र बनाने के लिए भी लोगों को पार्षदों से लिखवाना होता है. उसमें पार्षद सर्टिफाई करते हैं कि वह परिवार को जानते हैं. अब यह काम भी बंद हो गया है.