रांचीः 14 सालों के वनवास के बाद बीजेपी में 'घर वापसी' करने वाले बाबूलाल मरांडी के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी. मरांडी को एक तरफ अपने पुराने सिपहसलारों को बीजेपी में एकोमोडेट करने का दबाव झेलना होगा. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के कैडर के साथ संतुलन बनाना पड़ेगा. पिछले 14 साल में बीजेपी में भी काफी परिवर्तन हुआ है.
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ऐसे में मरांडी को भी पार्टी की जरूरतों और अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती झेलनी होगी. दूसरी बार मरांडी पर बीजेपी ने किया है यकीन बाबूलाल मरांडी को बीजेपी ने दूसरी बार विधानसभा में अपना चेहरा बनाया है. इससे पहले राज्य गठन के समय नवंबर, 2000 में उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. वहीं 2020 में वह दुबारा झारखंड विधानसभा में बीजेपी के विधायक दल के नेता के रूप में चुने गए हैं. मरांडी तब भी बीजेपी के प्रॉमिनेंट ट्राईबल फेस थे और अब भी उन्हें पार्टी इसी रूप में उपयोग करने जा रही है.
2019 के विधानसभा नतीजों का होगा डैमेज कंट्रोल
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का यकीन करें तो 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 28 में से 26 ट्राइबल सीटों पर बीजेपी के परफॉर्मेंस को लेकर पार्टी सकते में है. एक तरफ जहां बीजेपी को महज 25 सीटें विधानसभा में हासिल हुई. वहीं दूसरी तरफ एसटी सीटों पर असंतोषजनक प्रदर्शन को लेकर पार्टी मंथन में लगी है. इसी डैमेज कंट्रोल के तहत बीजेपी ने मरांडी को सदन में चेहरा बनाया गया है.
इन चुनौतियों से होकर गुजरना होगा मरांडी को
दरअसल पिछले 14 वर्षों में बीजेपी में भी काफी परिवर्तन आया है. एक तरफ जहां नए चेहरे झारखंड विधानसभा पहुंचे हैं वहीं दूसरी तरफ पुराने चेहरे और वरिष्ठ हुए हैं. ऐसे में मरांडी को एक तरफ जहां उन वरिष्ठ नेताओं को 'मैनेज' करके चलना होगा. वहीं दूसरी तरफ नए चेहरों को भी साथ लेकर चलना होगा. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती उनकी अपने सिपहसालारों को बीजेपी में एकोमोडेट करने को लेकर होगी. दरअसल मरांडी के साथ झाविमो के तत्कालीन वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी बीजेपी का दामन थामा है. ऐसे में मरांडी को उन्हें संगठन में 'एडजस्ट' करने के लिए भी कवायद करनी होगी. एक पूर्व झाविमो नेता और मरांडी के करीबी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि नई प्रदेश कार्यकारिणी में उन्हें भी जगह दी जाएगी, इसके लिए कवायद चल रही है.
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घरवापसी के 'इम्पैक्ट' को समझना होगा मरांडी को
साथ ही मरांडी को पूरे राज्य का एक बार फिर से भ्रमण करना होगा. अभी तक वह बीजेपी के विरोध में राज्य भर में प्रचार करते चले आ रहे थे. अब बीजेपी में फिर से वापसी के बाद उन्हें लोगों के बीच यह बताना होगा कि उनकी 'कंघी का विलय कमल' में हो गया है. ऐसे में उन्हें जगह जगह परेशानी भी फेस करनी पड़ सकती है. साथ ही उन्हें बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच समन्वय बनाकर काम करना होगा. मरांडी के समक्ष केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास सरीखे नेताओं को बीज को-आर्डिनेशन बनाकर काम करना भी एक चुनौती होगी.