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जल संकट से निजात के लिए बचाना होगा 'सर्फेस वाटर',  भूगर्भ जल पर निर्भरता पैदा करेगी गंभीर संकट - रांची न्यूज

रांची में जल संकट गहराता जा रहा है. इन सब के बीच भूतल जल को बचाना ही समस्या का समाधान हो सकता है. पर्यावरणविदों का कहना है कि जल संकट से बचने के लिए जल का सही तरीके से प्रबंधन करना होगा. विकास के साथ-साथ जल बचाव पर भी ध्यान देना जरूरी होगा.

जनता के लिए सरकारी जल व्यवस्था
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Published : Jun 28, 2019, 5:24 PM IST

रांचीः जल संकट से जूझ रहे प्रदेश के लोगों को भूतल जल को बचाना होगा. तभी जाकर इस समस्या का समाधान निकल कर सामने आएगा. दरअसल पिछले कुछ सालों से भूगर्भ जल पर निर्भरता लोगों के लिए संकट का कारण बन रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में भूगर्भ जल पर निर्भरता कभी भी धोखा दे सकती है. यहां पानी पत्थरों के 'क्रैक और फिशर्स' में मौजूद हैं. अन्य राज्यों की तरह यहां मिट्टी की लेयर चौड़ी नहीं है. हर हाल में तालाबों, नदियों और डैम को बचा कर रखना होगा.

देखें स्पेशल स्टोरी

इस बाबत पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि तालाब और छोटी नदियां लाइफ लाइन हैं. इन्हें बचाए बिना भविष्य में पानी बचाना संभव नहीं होगा. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि राजधानी के आसपास बने डैम में सिल्ट की सफाई अभी तक नहीं हुई है. वहीं, केचमेंट एरिया भी नहीं बढ़ाया गया है. इसे बढ़ाकर पानी संग्रहण और बढ़ाई जा सकती थी. उन्होंने कहा कि दरअसल नई-नई इमारतों के निर्माण के साथ जमीन का कच्चा हिस्सा पक्का होता जा रहा है. इस वजह से भी पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है. उन्होंने कहा कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग कितना सफल होगा ये तो आने वाला समय बताएगा. सबसे जरूरी है सर्फेस वाटर को बचा कर रखना.

हालांकि जल संकट से निपटने के लिए राजधानी में नगर निगम की तरफ से पानी के टैंकर शहर के अलग-अलग इलाकों में लोगों को पानी पहुंचा रहे हैं. वहीं, पानी भी राजधानी के अलग-अलग डीप बोरिंग से निकालकर लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मंत्री रामचंद्र सहिस मानते हैं कि लोगों को शुद्ध और साफ पेयजल पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है.
ये भी पढ़ें- जमशेदपुरः अजीबो-गरीब बीमारी की चपेट में बहरागोड़ा के ग्रामीण, जांच के लिए पहुंची डॉक्टरों की टीम

क्यों हो रही है समस्या

दरअसल पानी को लेकर इतना हाहाकार इसलिए मचा है, क्योंकि उसके मैनेजमेंट सही दिशा में काम नहीं कर रहे हैं. मौजूदा पर्यावरण चक्र में पानी के 'रिसाईकल' पर ध्यान देना जरूरी है. विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में वर्षा जल संग्रहण को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है. इस वजह से लगभग 80 फीसदी वर्षा जल यहां से बहकर निकल जाता है. पक्की सड़कें और पक्की नालियों की वजह से भी पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता. इस वजह से जल समस्या बढ़ती जा रही है.

समेकित जल योजना के लिए बनी है कमिटी

हाल ही में राज्य सरकार ने समेकित जल योजना को लागू करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. जिसके अध्यक्ष राज्य के विकास आयुक्त बनाए गए हैं. इस अंतर विभागीय कमिटी में जल संचयन, जल सिंचन और जल संसाधन के सुदृढ़ीकरण को लेकर काम किया जाएगा. इस कमिटी में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग, वन, पर्यावरण जलवायु परिवर्तन विभाग जैसे विभागों की समेकित योजनाएं लागू की जाएंगी. इससे योजनाओं के दोहरीकरण से बचा जा सकेगा. इन विभागों के सचिव इस समिति के सदस्य होंगे.

रांचीः जल संकट से जूझ रहे प्रदेश के लोगों को भूतल जल को बचाना होगा. तभी जाकर इस समस्या का समाधान निकल कर सामने आएगा. दरअसल पिछले कुछ सालों से भूगर्भ जल पर निर्भरता लोगों के लिए संकट का कारण बन रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में भूगर्भ जल पर निर्भरता कभी भी धोखा दे सकती है. यहां पानी पत्थरों के 'क्रैक और फिशर्स' में मौजूद हैं. अन्य राज्यों की तरह यहां मिट्टी की लेयर चौड़ी नहीं है. हर हाल में तालाबों, नदियों और डैम को बचा कर रखना होगा.

देखें स्पेशल स्टोरी

इस बाबत पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि तालाब और छोटी नदियां लाइफ लाइन हैं. इन्हें बचाए बिना भविष्य में पानी बचाना संभव नहीं होगा. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि राजधानी के आसपास बने डैम में सिल्ट की सफाई अभी तक नहीं हुई है. वहीं, केचमेंट एरिया भी नहीं बढ़ाया गया है. इसे बढ़ाकर पानी संग्रहण और बढ़ाई जा सकती थी. उन्होंने कहा कि दरअसल नई-नई इमारतों के निर्माण के साथ जमीन का कच्चा हिस्सा पक्का होता जा रहा है. इस वजह से भी पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है. उन्होंने कहा कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग कितना सफल होगा ये तो आने वाला समय बताएगा. सबसे जरूरी है सर्फेस वाटर को बचा कर रखना.

हालांकि जल संकट से निपटने के लिए राजधानी में नगर निगम की तरफ से पानी के टैंकर शहर के अलग-अलग इलाकों में लोगों को पानी पहुंचा रहे हैं. वहीं, पानी भी राजधानी के अलग-अलग डीप बोरिंग से निकालकर लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मंत्री रामचंद्र सहिस मानते हैं कि लोगों को शुद्ध और साफ पेयजल पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है.
ये भी पढ़ें- जमशेदपुरः अजीबो-गरीब बीमारी की चपेट में बहरागोड़ा के ग्रामीण, जांच के लिए पहुंची डॉक्टरों की टीम

क्यों हो रही है समस्या

दरअसल पानी को लेकर इतना हाहाकार इसलिए मचा है, क्योंकि उसके मैनेजमेंट सही दिशा में काम नहीं कर रहे हैं. मौजूदा पर्यावरण चक्र में पानी के 'रिसाईकल' पर ध्यान देना जरूरी है. विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में वर्षा जल संग्रहण को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है. इस वजह से लगभग 80 फीसदी वर्षा जल यहां से बहकर निकल जाता है. पक्की सड़कें और पक्की नालियों की वजह से भी पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता. इस वजह से जल समस्या बढ़ती जा रही है.

समेकित जल योजना के लिए बनी है कमिटी

हाल ही में राज्य सरकार ने समेकित जल योजना को लागू करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. जिसके अध्यक्ष राज्य के विकास आयुक्त बनाए गए हैं. इस अंतर विभागीय कमिटी में जल संचयन, जल सिंचन और जल संसाधन के सुदृढ़ीकरण को लेकर काम किया जाएगा. इस कमिटी में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग, वन, पर्यावरण जलवायु परिवर्तन विभाग जैसे विभागों की समेकित योजनाएं लागू की जाएंगी. इससे योजनाओं के दोहरीकरण से बचा जा सकेगा. इन विभागों के सचिव इस समिति के सदस्य होंगे.

Intro:रांची। जल संकट से जूझ रहे प्रदेश के लोगों को भूतल जल पर निर्भरता बढ़ानी होगी तभी जाकर इस समस्या का समाधान निकल कर सामने आएगा। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से भूगर्भ जल पर निर्भरता लोगों के लिए संकट का कारण बन रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में भूगर्भ जल पर निर्भरता कभी भी धोखा दे सकती है क्योंकि यहां पानी पत्थरों के 'क्रैक और फिशर्स' में मौजूद है। अन्य राज्यों की तरह यहां मिट्टी की लेयर चौड़ी नहीं है जिस वजह से भूगर्भ जल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो। इसलिए हर हाल में तालाबों,नदियों और डैम को बचा कर रखना होगा।


Body:इस बाबत पर्यावरणविद नितीश प्रियदर्शी कहते हैं कि तालाब और छोटी नदियां लाइफ लाइन है और इन्हें बचाए बिना भविष्य में पानी बचाना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि राजधानी रांची के आसपास बने डैम में सिल्ट की सफाई अभी तक नहीं हुई है। साथ ही केचमेंट एरिया भी नहीं बढ़ाया गया है। इसे बढ़ाकर पानी संग्रहण और बढ़ाई जा सकती था। उन्होंने कहा कि दरअसल नई नई इमारतों के निर्माण के साथ-साथ जमीन का कच्चा हिस्सा पक्का होता जा रहा है। इस वजह से भी पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है। उन्होंने कहा कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग कितना सफल होगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन सबसे जरूरी है सर्फेस वाटर को बचा कर रखना।


Conclusion:हालांकि जल संकट से निपटने के लिए राजधानी रांची में म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के तरफ से पानी के टैंकर शहर के अलग-अलग इलाकों में लोगों को पानी पहुंचा रहे हैं, लेकिन वह पानी भी राजधानी के अलग-अलग डीप बोरिंग से निकालकर लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मंत्री रामचंद्र सहिस मानते हैं कि लोगों को शुद्ध और साफ पेयजल पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है।

क्यों हो रही है समस्या
दरअसल पानी को लेकर इतना हाहाकार इसलिए मचा है क्योंकि उसके मैनेजमेंट पर सही दिशा में काम नहीं हो रहा है। दरअसल मौजूदा पर्यावरण चक्र में पानी के 'रिसाईकल'पर ध्यान देना जरूरी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में वर्षा जल संग्रहण को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है। इस वजह से लगभग 80% वर्षा जल यहां से बहकर निकल जाता है। साथ ही पक्की सड़कें और पक्की नालियों की वजह से भी पानी जमीन के अंदर बहुत नहीं जा पाता। इस वजह से जल समस्या बढ़ती जा रही है।

समेकित जल योजना के लिए बनी है कमिटी
हाल ही में राज्य सरकार ने समेकित जल योजना को लागू करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है। जिसके अध्यक्ष राज्य के विकास आयुक्त बनाए गए हैं। साथ ही इस अंतर विभागीय कमिटी में जल संचयन, जल सिंचन और जल संसाधन के सुदृढ़ीकरण को लेकर काम किया जाएगा। इस कमिटी में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग, वन, पर्यावरण जलवायु परिवर्तन विभाग जैसे विभागों की समेकित योजनाएं लागू की जाएंगी। इससे योजनाओं के दोहरीकरण से बचा जा सकेगा। इन विभागों के सचिव इस समिति के सदस्य होंगे।
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