रांची: झारखंड गठन के बाद मछली उत्पादन में राज्य ने खूब तरक्की की है. यहां के केज सिस्टम से मछली पालन की ख्याति पूरे देश में है. अब इससे आगे बढ़ कर सरकार और मत्स्य निदेशालय 'बायो फ्लॉक' तकनीक से मछली पालन को बढ़ावा दे रही है, ताकि कम जमीन और कम पानी भी मछली पालन में बाधक ना बन सके.
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आम भाषा में कहें तो टंकी में मछली पालन की यह तकनीक इसलिए भी खास है कि इसमें ना सिर्फ पानी कम लगता है. बल्कि मछलियों के अपशिष्ट पदार्थ को ही मशीन के माध्यम से फिर भोजन में तब्दील कर दिया जाता है. इसका लाभ यह होता है कि मछलियों के भोजन में कम राशि खर्च होती है.
घर के चहारदीवारी के अंदर भी हो सकता है मछली पालन: रांची के युवाओं को मछली पालन की नई तकनीक 'बायो फ्लॉक' से मछली पालन का प्रशिक्षण दे रहे जिला मत्स्य पदाधिकारी अरूप कुमार चौधरी ने बताया कि घर के बैकयार्ड में भी इस तकनीक से मछली पालन किया जा सकता है. इसका घनत्व काफी ज्यादा होता है. यानी कम जगह में अधिक मछली पालन से यह फायदे का सौदा हो जाता है. उन्होंने बताया कि जिन लोगों के पास बहुत बड़ा जमीन का टुकड़ा नहीं है, जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां अपने घर के अहाते में भी इस तकनीक से 10 डिसमिल जमीन में 07 टैंक लगाकर आराम से 2 टन मछली का उत्पादन किया जा सकता है. किसानों और पशुपालकों के लिए यह आय बढ़ाने का अतिरिक्त स्रोत हो सकता है.
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मिलेगी सब्सिडी: अरूप कुमार चौधरी बताते हैं कि 10 डिसमिल जमीन पर बायो फ्लॉक के साथ यूनिट वाला एक स्ट्रक्चर बनाने में 07 लाख 50 हजार रुपये खर्च होते हैं. इसके लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत महिला, एससी और एसटी वर्ग से आने वाले लोगों को साढ़े चार लाख रुपए तक की सब्सिडी दी जाती है. वहीं अन्य लोगों के लिए साढ़े तीन लाख रुपये सब्सिडी का प्रावधान है.
जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि निदेशालय की ओर से इसके लिए निशुल्क प्रशिक्षण भी दिया जाता है. समय-समय पर मत्स्य पालकों को विशेषज्ञों की सलाह भी दी जाती है ताकि उनका कोई नुकसान ना हो.
योजना और सब्सिडी के लिए इनसे मिलें: जिला मत्स्य पदाधिकारी अरूप चौधरी ने बताया कि बायो फ्लॉक तकनीक से मछली पालन काफी फायदेमंद होता है. इसके लिए युवाओं और खासकर महिलाओं को आगे आना चाहिए. क्योंकि, इसे घर के आंगन, दालान, छत के ऊपर से भी शुरू किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पूरी योजना की जानकारी और सब्सिडी के लिए अपने प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी या प्रखंड मत्स्य पदाधिकारी से मिलें. अगर कोई परेशानी आए, तब डोरंडा स्थित जिला मत्स्य पदाधिकारी कार्यालय में आकर भी पूरी जानकारी और योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन जमा कर सकते हैं.
उन्होंने बताया कि राज्य में वर्ष 2023-24 के लिए 3 लाख 30 हजार मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. वर्ष 2022-23 में राज्य में हुए मछली के 02 लाख 80 हजार मीट्रिक टन से यह 50 हजार मीट्रिक टन ज्यादा है. ऐसे में 'बायो फ्लॉक' तकनीक से मत्स्य उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है.