रांची: कई दशक तक मानवीय गरिमा को ताख पर रखकर शहर की गंदगी ढोने वालों के मन पर हम आज भी मरहम नहीं लगा पाएं. सिर पर मैला ढोने की प्रथा तो खत्म कर दी गई, लेकिन राजस्थान से बुलाए गए इन लोगों का पुनर्वास नहीं किया जा सका.
कलेजा फाड़ देने वाली इस प्रथा को निभाने वाले सफाईकर्मियों के प्रति कृतज्ञता सिर्फ शब्दों से नहीं जाहिर की जा सकती. लेकिन उनको यथोचित सम्मान देने में नगर निगम पीछे हट गया, जिसके घाव रांची के वाल्मीकिनगर में रहनेवालों के दिल पर अब भी हैं. हाल यह है कि रांची के वाल्मीकिनगर में रहनेवाले नगर पालिका के इन पूर्व कर्मचारियों की बस्ती में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. उनको पर्याप्त पेयजल तक नहीं मिल रहा है. कुछ लोगों को तो यहां से भी उजाड़ा जा रहा है.
ये भी पढ़ें-बांस से प्रतिमा में जान फूंकने वाले गिरिडीह के संतोष को मिला रोजगार, JSLEPS ने बनाया प्रशिक्षक
सिर पर ढोना पड़ता था बड़े लोगों के घरों का मैला
राजधानी के वाल्मीकिनगर का राजस्थान से पुराना नाता है. मोहल्ले में रहने वाले लोग राजस्थान के मारवाड़ इलाके से हैं, जिन्हें तकरीबन पचास साल पहले यहां बसाया गया था. इन परिवारों को एकीकृत बिहार में मैला ढोने के लिए बुलाया गया था. इन परिवारों को यहां बसाकर नगर पालिका में सफाईकर्मी की नौकरी दी गई थी. लेकिन नगरपालिका के लिए इन्हें बड़े घरों का मैला सिर पर ढोना पड़ता था.
...और मुंह तक आ जाता था मैले से गिरने वाला पानी
वाल्मिकिनगर की बुजुर्ग बताती हैं कि जिस वक्त उन लोगों को राजस्थान से बिहार लाया गया था, उस वक्त उनका काम घरों का मैला साफ करना होता था. बड़े लोगों के घरों का मैला साफ करने की जिम्मेदारी वाल्मीकि नगर में रहने वाले लोगों को दी गई थी. कई बार मैला का गंदा पानी मुंह तक आ जाता था. अक्सर यह शरीर पर गिर जाता था, अच्छा तो नहीं लगता था पर पेट के लिए हमें यह काम करना पड़ता था. उन्होंने बताया कि उस वक्त हम लोगों को नगर निगम में नौकरी दी गई थी लेकिन बाद में वहां से निकाल दिया गया.
सफाईकर्मियों के वंशजों का कोई मददगार नहीं
बुजुर्ग ने बताया कि जिस मोहल्ले में उन्हें रहने के लिए बसाया गया था, अब उन्हें यहां से भी उजाड़ा जा रहा है. मोहल्ले में रहने वाले कई लोग को हटा दिया गया है. वे इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं. वाल्मीकि नगर में रहने वाले स्थानीय लोग बताते हैं कि जब छुआ-छूत चरम पर थी उस वक्त हमारे पूर्वज कई कठिनायों का सामना करते हुए समाज में साफ सफाई का काम करते रहे. लेकिन आज उनके वंशजों का कोई मददगार नहीं है.
वाल्मीकि समाज के सम्मान की जरूरतः उप महापौर
वाल्मीकि नगर में रहने वाले लोगों के बारे में नगर निगम के उप महापौर संजीव विजयवर्गीय का कहना है कि निश्चित रूप से वाल्मीकि नगर में रहने वाले लोगों ने समाज के बड़े लोगों का मैला साफ करने का काम किया. उन्होंने बताया कि आज समाज धीरे-धीरे आधुनिकरण की ओर बढ़ रहा है ऐसे में अब सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा तो खत्म हो गई है. लेकिन पूर्व में जैसे वाल्मीकि समाज के लोगों ने समाज का मैला ढोने का काम किया है उस त्याग को देखते हुए उनके सम्मान करने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें-कांग्रेस की सरकार बनी तो अनुच्छेद 370 हटाने पर पुनर्विचार किया जाएगा : मुकुल वासनिक
कागजी प्रक्रिया के कारण योजना लटकी
उप महापौर संजीव विजयवर्गीय का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल के दौरान वाल्मीकि समाज के लोगों के विकास के लिए कई योजनाएं लाईं गईं थीं ताकि उस समाज में रहने वाले लोगों को उसी जगह पर मकान बना कर दिया जाए और उनके विकास के लिए कदम उठाया जाए. लेकिन तकनीकी समस्या और कागजी प्रक्रिया की वजह से उस क्षेत्र को विकसित नहीं किया जा सका.
बसाने के लिए जल्द करेंगे पहल
डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने बताया कि जल्द ही निगम की तरफ से वाल्मीकि नगर में रहने वाले लोगों को बसाने के लिए अधिकारियों को उचित दिशा निर्देश दिए जाएंगे. ताकि उस समाज में रहने वाले लोगों का संपूर्ण विकास हो सके. बता दें कि वाल्मीकि नगर में रहने वाले लोग आज बुनियादी सुविधा के लिए भटकने को मजबूर हैं जबकि के पूर्वजों ने समाज के लिए कई योगदान दिए हैं.
जम्मू-कश्मीर गए बिहार के लोगों का भी हो रहा था अनादर
ज्यादती की ऐसी कहानियां पूरे देश में ही सुनने को मिल जाएंगी. पचासों साल पहले बिहार और दूसरी जगहों से जम्मू-कश्मीर गए दलित समुदाय के लोग जिन्हें सफाई के लिए ले जाया गया था. 2019 से पहले उन्हें शरणार्थी ही समझा जाता था. हालांकि सरकार ने अब इसके लिए पहल की है. पांच अगस्त 2019 को राष्ट्रपति ने जम्मू कश्मीर राज्य से अस्थायी धारा 370 हटा दी थी. धारा 35 ए भी निरस्त कर दी गई थी और नई डोमिसाइल नीति में निवास की जगह अधिवास शब्द कर दिया गया था. जिससे ऐसे लोगों को भी यहां नौकरी करने, जमीन खरीदने समेत अन्य मानवीय अधिकार मिल गए जो पहले इन्हें प्राप्त नहीं थे.
पहले ये अधिकार सिर्फ उन लोगों को प्राप्त थे जो पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य की विधान सभा द्वारा निर्धारित परिभाषा के तहत स्थानीय निवासी माने जाते थे. यह प्रावधान जम्मू और कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 35 ए के तहत प्राप्त था.
झारखंड ही नहीं पंजाब से भी बसाए लोगों को भी इंतजार
वर्ष 1957 में पंजाब से जम्मू और कश्मीर बुलाए गए सफाईकर्मियों को भी अरसे तक उनका वाजिब हक नहीं मिला. तत्कालीन सरकार द्वारा यहां के सफाईकर्मियों की लंबे समय से जारी हड़ताल को तुड़वाने के लिए ऐसा किया गया था. लेकिन सन 1957 से मार्च 31, 2020 तक किसी ने अपना घर–द्वार छोड़कर आए दलित समुदाय के इन लोगों की सुधि नहीं ली. जबकि इन्हें कैबिनेट के एक फैसले के तहत सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त किया गया था. सालों से वो लोग कश्मीर में सुविधा से वंचित थे. वे लोकसभा में अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते थे लेकिन जम्मू कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपना वोट नहीं डाल सकते थे. ‘बाहरी’ लोग यहां के सरकारी संस्थानों में नौकरी नहीं पा सकते थे. इसके अलावा वे सरकारी सहायाता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में प्रवेश भी नहीं ले सकते थे. जम्मू कश्मीर में ऐसे लोगों की उल्लेखनीय संख्या थी.