रांची: श्रम कानून को प्रभावी बनाने के लिए सरकार के द्वारा भले ही कई योजनाएं चलाई जा रही हों, मगर हकीकत यह है कि आज भी मजदूर गांव से शहर तक काम की तलाश में भटकते रहते हैं, जहां उन्हें शोषण का शिकार होना पड़ता है. झारखंड के श्रमिक अपनी श्रमशक्ति का लोहा देश दुनिया में मनवा चुके हैं. यही वजह है कि झारखंड के मजदूरों की मांग काफी है. मगर, इसकी आड़ में इन मजदूरों के साथ शोषण भी होता रहा है. कभी मजदूरी कम मिलने की शिकायत तो कभी घरेलू काम में लगे महिला मजदूरों की प्रताड़ना की कहानी सामने आती है. इसके बावजूद अपने और अपने परिवार को चलाने के लिए हर दिन मजबूरी में ही सही, ये मजदूर घर से निकलकर शहर की ओर इस उम्मीद के साथ निकलते हैं कि उन्हें काम मिलेगा जिससे उनके घर के खर्चे चलेंगे.
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रांची में लगता है दो दर्जन से अधिक मजदूरों का बाजार: राजधानी की सड़कों पर ऐसे दो दर्जन से अधिक जगह पर मजदूरों का बाजार हर दिन सजता है, जहां आपको बड़ी संख्या में महिला-पुरुष काम की तलाश में खड़े दिखाई दे देंगे. लोहरदगा, गुमला, खूंटी, चतरा जैसे जिलों से अहले सुबह काम की तलाश में निकलकर रांची के इन बाजारों तक पहुंचने वाले मजदूरों का शोषण यहीं से शुरू होता है. काम दिलाने के नाम पर तथाकथित दलाल इन्हें निर्धारित सरकारी दर से कम पर काम करने को मजबूर करते हैं. इनकार करने पर इन्हें खाली हाथ घर लौटने की मजबूरी बन जाती है. भाग्य से यदि काम मिल गया तो इनके लिए आज का दिन अच्छा है. रांची के हरमू चौक, किशोरगंज, हरमू पावर ग्रीड, कडरू, चांदनी चौक, तुपुदाना, डोरंडा बाजार, हिनू, बिरसा चौक, धुर्वा, मेट्रो गली रातू रोड, पिस्का मोड़, कांके, बरियातू, बूटी मोड़ में रोज मजदूरों का बाजार लगा रहता है.
मजदूरों की आपबीती: कडरू महावीर मंदिर के पास लोहरदगा से आए मजदूर राजू अपनी आपबीती बताते हुए कहते हैं कि महीने में 15 दिन खाली हाथ बगैर काम किए लौटना पड़ता है. सरकार ने मजदूरों के लिए कोई ऐसा सिस्टम नहीं बनाया है, जिससे उन्हें प्रताड़ना ना झेलना पड़े. ना तो हमारे जैसे लोहरदगा से रांची आने वाले चार हजार मजदूरों का लेबर कार्ड बना है और ना ही कोई ऐसी व्यवस्था जहां हमारी पीड़ा सुनी जाए. ऐसे में भगवान भरोसे काम मिल गया तो अच्छा नहीं तो ट्रेन और टेपों का भी 50 रुपया खर्च कर खाली हाथ लौटना मजबूरी हो जाती है. कहानी यहीं खत्म नहीं होती है. खूंटी के तौसीफ बताते हैं कि काम करने के बाद भी हर दिन काम के पैसे मिल जाए, ये कोई जरूरी नहीं. अभी भी अपनी मजदूरी के 15 हजार रुपए लेने के लिए हमें मालिक के पास दौड़ना पड़ रहा है.
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झारखंड में मजदूरों के लिए चल रही हैं कई योजनाएं: झारखंड में बड़ी संख्या में असंगठित क्षेत्र में मजदूर हैं, जिसमें सबसे अधिक श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, असंगठित क्षेत्र में करीब एक करोड़ 30 लाख मजदूर हैं. इनमें से 95 लाख निबंधित हैं. इन मजदूरों का निबंधन इ-श्रम पोर्टल के माध्यम से लगातार किया जा रहा है. राज्य सरकार का मानना है कि श्रमिकों के निबंधन से इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा और सरकार के पास आकड़े भी उपलब्ध रहेंगे. राज्य सरकार ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए मृत्यु या दुर्घटना सहायता योजना चला रखी है, जिसके तहत एक से 4 लाख तक का मुआवजा दिया जाता है.
बच्चों की पढ़ाई के लिए भी सरकार करती है सहायता: इसके अलावा हाल ही में कैबिनेट ने प्रवासी मजदूरों के मृत्यु होने पर उनके शव को लाने के लिए 25 हजार से बढाकर 50 हजार रुपए की राशि करने का निर्णय लिया है. बच्चों की पढ़ाई के लिए भी ऐसे मजदूरों को 250 रुपए से लेकर 8,000 रुपए तक की वार्षिक छात्रवृत्ति का प्रावधान सरकार के द्वारा दी गई है. इसके अलावा विवाह सहायता योजना के तहत मजदूरों के दो बच्चों को 30 हजार तक की सहायता देने का भी प्रावधान है. झारखंड भवन और अन्य कल्याण बोर्ड द्वारा निबंधित मजदूरों को शर्ट पैंट और साड़ी देने का भी प्रावधान है. इसके अलावा श्रमिक औजार सहायता योजना, साइकिल सहायता योजना चिकित्सक सहायता योजना आदि शामिल है. बहरहाल, सरकार के इन योजनाओं की जानकारी मजदूरों तक कैसे पहुंचे, इसके प्रति जागरूकता अभियान चलाना होगा, नहीं तो भोले भाले ये मजदूर हर दिन ऐसे ही प्रताड़ित होते रहेंगे.