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प्राथमिकी दर्ज करवाकर गायब हुए थाना प्रभारी, साक्ष्य के अभाव में आरोपी बरी - साक्ष्य के अभाव में बरी करने का फैसला

रांची में 6 साल पहले कांड संख्या 73/09 के तहत काशीनाथ शाहदेव के खिलाफ थाना प्रभारी ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी. अदालत में केस की सुनवाई के दौरान थाना प्रभारी गवाही देने नहीं पहुंचे. जिसके बाद अदालत ने आरोपी को साक्ष्य के अभाव में बरी करने का फैसला सुनाया.

6 साल तक गवाही का इंतजार करती रही अदालत
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Published : Sep 28, 2019, 10:39 AM IST

रांचीः सरकारी कार्य में बाधा डालने और मारपीट मामले में अपराधी काशीनाथ शाहदेव के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. जिसका मुकदमा अदालत में चल रहा था, लेकिन जिसने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी वह खुद ही गवाही देने अदालत नहीं पहुंचा.

क्या है पूरा मामला
दरअसल, सरकारी कार्य में बाधा डालने और मारपीट करने के मामले में तुपुदाना के तत्कालीन थाना प्रभारी रतन कुमार सिंह ने 10 अप्रैल 2009 को लाल काशीनाथ शाहदेव के खिलाफ खुद प्राथमिकी दर्ज कराई थी, लेकिन सुनवाई के दौरान काशीनाथ शाहदेव और जांच अधिकारी एसआई योगेंद्र मिश्रा बार-बार अदालत द्वारा समन जारी करने के बाद भी गवाही देने नहीं पहुंचे. अदालत 6 साल तक गवाह का इंतजार करती रही. इसका लाभ आरोपित को मिला. शुक्रवार को न्यायिक दंडाधिकारी दिव्या मिश्रा की अदालत ने आरोपित को साक्ष्य के अभाव में बरी करने का फैसला सुनाया.

ये भी पढ़ें- UNGA में इमरान खान के भाषण पर भारत देगा जवाब, 'राइट टू रिप्लाई' का है अधिकार

बता दें कि, 10 अप्रैल 2009 को तुपुदाना चौक को ग्रामीणों ने जाम किया था. जाम हटाने के लिए पुलिस बल जब पहुंची तो ग्रामीणों के साथ उनकी झड़प हो गई. इसके खिलाफ थाना प्रभारी ने कांड संख्या 73/09 दर्ज कराया था. 4 साल बाद आरोपित के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल किया गया. 29 नवंबर 2013 को अरोप गठन किया गया था.

रांचीः सरकारी कार्य में बाधा डालने और मारपीट मामले में अपराधी काशीनाथ शाहदेव के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. जिसका मुकदमा अदालत में चल रहा था, लेकिन जिसने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी वह खुद ही गवाही देने अदालत नहीं पहुंचा.

क्या है पूरा मामला
दरअसल, सरकारी कार्य में बाधा डालने और मारपीट करने के मामले में तुपुदाना के तत्कालीन थाना प्रभारी रतन कुमार सिंह ने 10 अप्रैल 2009 को लाल काशीनाथ शाहदेव के खिलाफ खुद प्राथमिकी दर्ज कराई थी, लेकिन सुनवाई के दौरान काशीनाथ शाहदेव और जांच अधिकारी एसआई योगेंद्र मिश्रा बार-बार अदालत द्वारा समन जारी करने के बाद भी गवाही देने नहीं पहुंचे. अदालत 6 साल तक गवाह का इंतजार करती रही. इसका लाभ आरोपित को मिला. शुक्रवार को न्यायिक दंडाधिकारी दिव्या मिश्रा की अदालत ने आरोपित को साक्ष्य के अभाव में बरी करने का फैसला सुनाया.

ये भी पढ़ें- UNGA में इमरान खान के भाषण पर भारत देगा जवाब, 'राइट टू रिप्लाई' का है अधिकार

बता दें कि, 10 अप्रैल 2009 को तुपुदाना चौक को ग्रामीणों ने जाम किया था. जाम हटाने के लिए पुलिस बल जब पहुंची तो ग्रामीणों के साथ उनकी झड़प हो गई. इसके खिलाफ थाना प्रभारी ने कांड संख्या 73/09 दर्ज कराया था. 4 साल बाद आरोपित के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल किया गया. 29 नवंबर 2013 को अरोप गठन किया गया था.

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रांची

सरकारी कार्य में बाधा डालने एवं मारपीट मामले में तुपुदाना के तत्कालीन थाना प्रभारी रतन कुमार सिंह ने 10 अप्रैल 2009 को लाल काशीनाथ शाहदेव के खिलाफ खुद प्राथमिकी दर्ज करायी थी। लेकिन सुनवाई के दौरान काशीनाथ शाहदेव और जांच अधिकारी एसआई योगेंद्र मिश्रा बार-बार अदालत द्वारा समन जारी करने के बाद भी गवाही देने नहीं पहुंचे। अदालत छह साल तक गवाह का इंतजार करते रहे। इसका लाभ आरोपित को मिला। शुक्रवार को न्यायिक दंडाधिकारी दिव्या मिश्रा की अदालत ने आरोपित को साक्ष्य के अभाव में बरी करने का फैसला सुनाया।





Body:मालूम हो कि 10 अप्रैल 2009 को तुपुदाना चौक को ग्रामीणों ने जाम किया था। उसको हटाने के लिए पुलिस बल जब पहुंची तो ग्रामीणों के साथ पुलिस की हल्की झड़प तक हो गई। इसके खिलाफ थाना प्रभारी ने कांड संख्या 73/09 दर्ज कराया था। चार साल बाद आरोपित के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल किया गया। 29 नवंबर 2013 को अरोप गठन किया गया था। Conclusion:
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