रांची: झारखंड में वर्ष 2022 में खसरा (मिजल्स) का आउटब्रेक हुआ था, जिसके बाद अब जाकर खसरा को काबू में करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने बड़ा फैसला किया है. स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित नौ जिलों में विशेष टीकाकरण अभियान की घोषणा की है. राज्य के नौ जिलों कोडरमा, धनबाद, गिरिडीह, पाकुड़, गोड्डा, जामताड़ा, देवघर, दुमका, साहिबगंज में 12 अप्रैल से विशेष टीकाकरण अभियान चलेगा.
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15 दिनों तक चलने वाले इस विशेष मिजल्स रूबेला वैक्सीनेशन अभियान में 09 महीने से लेकर 15 वर्ष तक के 45.5 लाख से अधिक बच्चों को खसरा का टीका लगाया जाएगा. यह वैक्सीन उन बच्चों को भी लगाया जाएगा, जो पहले वैक्सीन का डोज पूरा कर चुके हैं. इस अभियान को सफल बनाने के लिए सभी विद्यालयों में भी कैम्प लगाए जायेंगे. इस अभियान के तहत खसरा के टीके के साथ-साथ रूबेला का वैक्सीन भी दिया जाएगा ताकि जन्म के साथ होने वाले विकारों से नवजात को बचाया जा सके. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खसरा (मिजल्स) काफी तेजी से फैलने वाला वायरल संक्रामक बीमारी है. WHO के अनुसार विश्व मे खसरा की वजह से हर साल एक लाख से अधिक बच्चों की मौत हो जाती है.
झारखंड में खसरा टीकाकरण के विशेष ड्राइव की क्यों पड़ी जरूरत: कोरोना के बाद झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में खसरा का आउट ब्रेक 2022 में हुआ था. विशेषज्ञों की मानें तो खसरा का आउट ब्रेक एक इंडिकेटर होता है कि रूटीन टीकाकरण में कहीं कोई खामी रह गयी. ऐसे में झारखंड के उन 09 जिले,जहां खसरा का आउट ब्रेक हुआ, वहां विशेष टीकाकरण अभियान चलाकर 09 माह से लेकर 15 वर्ष तक उम्र समूह वाले बच्चों को वैक्सीन दिया जाएगा. इससे खसरा से बचाव होगा.
कितना खतरनाक है खसरा: विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार, संक्रामक बीमारी खसरा के बाद न्यूमोनिया होने पर सीवियर एक्यूट रेस्पाइरेट्री समस्या खतरनाक रूप ले लेता है. एक बार खसरा हो जाने के बाद बच्चा अपने पूरे जीवन में कई तरह की स्वास्थ्य समस्या से भी जूझता है. ऐसे में इससे बचाव के लिए सबसे ज्यादा जरूरी बच्चों का टीकाकरण है.
खसरा के लक्षण: शरीर पर चकत्ते, बुखार, खांसी खसरा के लक्षण हैं. इस तरह के लक्षण होने पर पीड़ित बच्चे को तुरंत डॉक्टर से दिखाया जाना चाहिए और उनकी सलाह अनुसार इलाज शुरू कर देना चाहिए.
क्यों बढ़ने लगे खसरा के मामले: यूनिसेफ, इंडिया के अनुसार कोरोना काल में रूटीन इम्यूनाइजेशन करीब 36% कम हुई. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए देश में लगे लॉक डाउन की वजह से आवाजाही प्रभावित हुई थी और उस दौरान बड़ी संख्या में प्रवासियों का एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में माइग्रेशन हुआ था. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग का पूरा ध्यान कोरोना को रोकने पर था, जिसका असर रूटीन प्रतिरक्षण पर पड़ा. मीजल्स-रुबेला (MR) वैक्सीन के पहले डोज से ही 85% तक सुरक्षा और दो डोज से 95% तक सुरक्षा हो जाती है. इसके बावजूद रूटीन टीकाकरण में कमी की वजह से खसरा के मामले बढ़े हैं. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो वर्ष 2020 में जहां खसरा के 5503 कंफर्म केस थे. वहीं वर्ष 2021 में यह बढ़कर 5819 हो गया. वर्ष 2022 में तो यह आंकड़ा और बढ़कर 20 हजार के करीब पहुंच गया. इस चिंताजनक स्थिति से निपटने के लिए ही खसरा टीकाकरण के स्पेशल ड्राइव प्रभावित जिलों में चलाने का फैसला लिया गया है.
गर्भवती माताओं को रूबेला का टीका लेना जरूरी: गर्भवती महिलाओं को रुबेला का वैक्सीन देने से नवजात की जीवन रक्षा होती है. रुबेला के वैक्सीन नहीं लेने से स्टील बर्थ (मरे हुए बच्चे जन्म लेना) का खतरा बढ़ जाता है तो वहीं कंजेनाइटल रुबेला सिंड्रोम, जिसमें दिल की समस्या, अंधापन जैसी समस्या होती है, इसका खतरा भी बढ़ जाता है.