रांचीः प्रदेश की मौजूदा बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सरयू राय अब पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की राह पर चल पड़े हैं. पूर्व पीएम वीपी सिंह ने बोफोर्स घोटाले में आवाज उठाने को लेकर 80 के दशक में सुर्खियां बटोरी थीं. कांग्रेस सरकार के खिलाफ उनकी उठी आवाज का असर 1989 में देखने को मिला जब तत्कालीन पीएम राजीव गांधी को हार का सामना करना पड़ा था. जबकि केंद्र में वीपी सिंह कथित राजीव गांधी विरोधियों के साथ सरकार बनाने में सफल हुए. उस दौर में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने फिर प्रयागराज से उप चुनाव लड़ कर सुनील शास्त्री को हराया था.
सरयू राय भी भ्रष्टाचार को लेकर कर रहे हैं कैंपेनिंग
झारखंड की राजनीति में भी सरयू राय भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर फ्रंटफुट पर आकर बल्लेबाजी कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वह खुद अपनी विधानसभा सीट छोड़कर मुख्यमंत्री रघुवर दास की असेंबली सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. अपना चुनाव प्रचार उन्होंने पूरी तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ फोकस कर रखा है और केंद्र बिंदु में मौजूदा सरकार के मुखिया को हिट कर रहे हैं.
रक्षामंत्री के बाद फाइनेंस मिनिस्टर रहे वीपी सिंह
पुराने पन्नों को पलट कर देखा जाए तो वीपी सिंह ने रक्षा मंत्री रहते हुए बोफोर्स घोटाले के खिलाफ आवाज उठाई थी. जिसके बाद उन्हें फाइनेंस मिनिस्ट्री का जिम्मा दे दिया गया, लेकिन उसके बाद भी सरकार में रहकर उन्होंने सरकार की खिलाफत शुरू कर दी. फिर उन्होंने जनमोर्चा बनाया जिसमें कथित तौर पर राजीव गांधी से नाराज दलों को इकट्ठा किया गया. तत्कालीन केंद्र सरकार को पटखनी देकर वीपी सिंह प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठ गए. उनकी इस राजनीतिक घटनाक्रम का असर ऐसा हुआ कि आगे चलकर हिंदी बेल्ट के दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस अभी तक उस झटके से उबर नहीं पाई है.
वीपी सिंह की राह पर सरयू राय
ठीक इसी तरह झारखंड में मौजूदा रघुवर दास की सरकार में खाद्य और आपूर्ति मंत्री रहे सरयू राय ने भी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं. अपने कार्यकाल के दौरान सरकार के कई निर्णय को लेकर नेतृत्व को कटघरे में रखते रहे. इतना ही नहीं राय ने अपनी पूरी बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी पहुंचाई. हालांकि, सरयू राय चुनाव में निर्दलीय खड़े हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक चाल देखकर साफ दिखाई दे रहा है कि वह कहीं न कहीं पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की राह पर चल पड़े हैं.
क्या है अंतर वीपी सिंह और राय की स्ट्रेटजी में
दरअसल, वीपी सिंह ने उस वक्त विरोधियों को एक छत पर लाने के लिए जनमोर्चा बनाया था, जिसमें क्षेत्रीय दल इकट्ठे हुए. ठीक उसके विपरीत सरयू राय प्रत्यक्ष रूप से चुनावी समर में अकेले हैं. हालांकि, कथित तौर पर बीजेपी में नाराज खेमे के लोग और विपक्षी दल उनको अप्रत्यक्ष रूप से अपना समर्थन दे रहे हैं.
बचते फिर रहे हैं बीजेपी के नेता, विपक्षी सरयू के साथ
हैरत की बात यह है कि इस पूरे मामले को लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी न तो सरयू राय का नाम लेना चाह रही हैं और न ही उनके मुद्दों पर कुछ बोलना चाहती है. हालांकि, पार्टी का साफ मानना है कि पार्टी के खिलाफ लड़ने वालों को जनता नकार देगी. जिसे लेकर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने साफ कहा कि मुख्यमंत्री समेत पार्टी के अन्य उम्मीदवार दूसरे चरण में अच्छा परफॉर्म करेंगे. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन्हें लेकर सरयू राय निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी समर में उतरे हैं.
बता दें कि, पूर्वी जमशेदपुर समेत राज्य की 20 विधानसभा सीटों के लिए 7 दिसंबर को मतदान होना है. मतों की गिनती 23 दिसंबर को की जाएगी राय की स्ट्रेटजी कहां तक सफल हो पाएगी. यह तस्वीर 23 दिसंबर को साफ हो जाएगी.