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लॉकडाउन बना था एक्सीडेंटल डेथ ब्रेकर, अनलॉक में बढ़ी सड़क हादसों की रफ्तार

लॉकडाउन के दौरान सड़क हादसे में काफी कमी आई थी, लेकिन अनलॉक शुरू होते ही सड़क हादसे में बढ़ोतरी हुई है. झारखंड के 24 जिले में सबसे अधिक रांची के लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है. हादसे में लगाम लगाने के लिए जिला प्रसासन लगातार पहल कर रहा है.

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सड़क हादसे में बढ़ोतरी
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Published : Nov 3, 2020, 8:36 PM IST

रांची: अनलॉक के शुरुआत के साथ ही राजधानी में सड़क हादसों में लगातार बढ़ोतरी होते जा रही है. हर दिन 3-4 सड़क हादसों की घटना रिकॉर्ड की जा रही है, जिसमें लगभग 50 प्रतिशत लोगों की जान भी जा रही है. लॉकडाउन ने एक्सीडेंटल डेथ पर ब्रेकर का काम कर रहा था, लेकिन अनलॉक के बाद सड़क हादसों में एक बार फिर वृद्धि देखी जा रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी
अनलॉक में बढ़े हादसे लॉकडाउन के दौरान 25 मार्च से लेकर 25 अप्रैल तक राजधानी रांची में महज 6 एक्सीडेंट हुए थे, जिनमें 3 लोगों की मौत हुई है. यह आंकड़े अन्य महीनों के आंकड़ों की तुलना में काफी कम है. राजधानी में हर महीने लगभग 50 से अधिक दुर्घटनाए होती हैं, जिनमें 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन मई महीने के बाद दुर्घटनाओं में एक बार फिर से तेजी देखी गई है. आंकड़ों के अनुसार मई 2020 से लेकर अक्टूबर 2020 तक राजधानी रांची में सड़क हादसों की वजह से 25 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 11 शारीरिक रूप से विकलांग हो चुके हैं. रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र झा के मुताबिक लॉकडाउन के बाद आंकड़े ये बता रहे है कि सड़क हादसे बढ़े हैं.
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लॉकडाउन में कम घटना
एनसीआरबी के आंकड़े क्या कहते हैंसड़क हादसे को लेकर एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट जारी की है. उसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार झारखंड की राजधानी रांची में यातायात नियमों की अनदेखी के वजह से ज्यादातर सड़क हादसे हुए हैं और केवल 2019 में सड़क हादसों में रांची के 354 लोगों ने अपनी जान गवां दी. यानी औसतन हर महीने 30 लोगों की मौत सड़क हादसों में हुई. आंकड़े यह बताते हैं कि राजधानी रांची में लगभग हर दिन एक व्यक्ति सड़क हादसे की वजह से मौत के गाल में समा जाता है. एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार राजधानी रांची में घर जाने की हड़बड़ी, शराब पीकर वाहन चलाना और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी यह तीन ऐसे कारण हैं, जिसकी वजह से सड़क हादसे होते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी रांची में सबसे ज्यादा सड़क हादसे सुबह और शाम में होते हैं.
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मौत के आंकड़ों में बढ़ोतरी
पूरे झारखंड में 4279 लोगो की हुई मौत नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में झारखंड में 5702 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिसमें 4279 लोगों की मौत हो गई. इनमें से 3819 लोग घायल भी हुए. झारखंड के 24 जिलों के आंकड़े बताते हैं कि मृतकों में सबसे अधिक राजधानी रांची के ही रहने वाले लोग हैं, जबकि 2019 का जुलाई महीना सबसे भयावह रहा. इस महीने में सबसे अधिक 38 लोगों की जान गई. एनसीआरबी आकड़ों के मुताबिक इन हादसों में 3071 पुरुष और 748 महिलाएं जख्मी हुए, जबकि 3385 पुरुष और 504 महिलाओं की जान चली गई.
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मई में बढ़ी दुर्घटना
ऑफिस आते और जाते समय ज्यादा हादसेराजधानी रांची में ट्रैफिक सबसे ज्यादा सुबह 9 से लेकर 11 बजे तक और शाम के 6 बजे से लेकर 9 बजे तक के बीच होता है और इसी दौरान राजधानी रांची में सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक घर जाने की हड़बड़ी, बड़े वाहनों की तेज लाइट और छोटे वाहनों की तेज स्पीड इन हादसों की प्रमुख वजह हैं. सुबह की तुलना में शाम में हादसे ज्यादा होते हैं. इसके पीछे एक प्रमुख वजह ड्रंकन ड्राइव भी होता है. कई लोग अपने काम से लौटने के दौरान रास्ते में शराब का सेवन कर घर लौटते हैं, जिसके वजह से वे हादसों का शिकार होते हैं.
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एक साल में बेतहाशा बढ़ोतरी
केवल खराब सड़कें ही हादसों की वजह नहीं
हादसे की वजह महज जर्जर सड़कें ही नहीं, कई ऐसी अनदेखी जगह भी है जहां हर कदम पर आपका सामना मौत से हो सकता है. पिछले साल राज्य सरकार ने राज्यभर में बेहद खतरनाक 142 जगहों की पहचान की है, जहां सर्वाधिक मौतें कागजों में दर्ज होती हैं. विभाग की मानें, तो इन ब्लैक स्पॉट पर तीन साल के दौरान पांच से ज्यादा बड़े सड़क हादसे या फिर करीब 10 मौतें दर्ज हुई हैं. अब इन ब्लैक स्पॉट पर सुरक्षा के बंदोबस्त बढ़ाने के ठोस उपाय पर किए जा रहे है. ट्रैफिक पुलिस के साथ-साथ परिवहन विभाग ऐसे जगहों की पहचान कर रोड इंजीनियरिंग और इसके मूल डिजाइन में परिवर्तन के लिए संबंधित एजेंसियों को कार्रवाई के लिए कह चुकी है. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि आधे से अधिक सड़क हादसों की वजह रोड के ब्लैक स्पॉट होते हैं. रांची पुलिस के अनुसार अगर व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त हो और परिजन साथ दे, तो बहुत हद तक ये हादसे टाले जा सकते हैं. इस प्रकार होनेवाली सड़क दुर्घटना पर रोक लगाने के लिए विभागीय स्तर पर काम किए जा रहे हैं. थोड़ा सा पब्लिक को भी साथ देना होगा.
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महिलाओं की भी हुई मौत
हेलमेट हो बेहतर इसका भी रखा जाय ख्याल एनसीआरबी के आंकड़े बताते है कि सड़क हादसे में सबसे ज्यादा मृत्यु सर में चोट लगने की वजह से होती है. इसके पीछे कई वजह हैं एक तो कई लोग बिना हेलमेट वाले दोपहिया वाहन चलाते हैं तो कई लोग हेलमेट तो पहनते हैं, लेकिन हेलमेट की तकनीक सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं होती है. ऐसे हेलमेट का पहनना या ना पहनना कोई मायने नहीं रखता, जबकि आंकड़े यह भी बताते हैं कि कई लोगों की हादसों में इसलिए मौत हो जाती है, क्योंकि वह उच्च तकनीक का हेलमेट पहनने में लापरवाही बरतते हैं.
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राजधानी में सबसे अधिक मौत
कुछ शहर हादसे रोकने में कर रहे बेहतर काममिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवे की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिहाज से दिल्ली, पूणे, धनबाद, भोपाल और झारखंड का जमशेदपुर उन जिलों शहरों में शामिल हैं, जहां साल 2018 की तुलना में सड़क हादसों में प्रतिशत के लिहाज से सर्वाधिक कमी आयी है. धनबाद में साल 2018 में 252 हादसे हुए थे, वहां 125 प्रतिशत सड़क हादसों के वारदातों में कमी आई है. धनबाद में साल 2019 में 127 सड़क दुर्घटनाएं हुई. वहीं जमशेदपुर में सड़क हादसों में 65 प्रतिशत की गिरावट आई है. जमशेदपुर में साल 2018 में 157 घटनाएं हुईं थी, जबकि 2018 में महज 92 घटनाएं जिले में रजिस्टर हुई. भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय ने सड़क हादसों को लेकर गुरुवार को रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के मुताबिक, पड़ोसी राज्य बिहार सड़क हादसों के मामलों में पंद्रहवें स्थान पर है.
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लॉकडाउन में कम हादसे
बगैर हेलमेट व सीट बेल्ट के कारण गई अधिकांश जानेंसड़क हादसे में बगैर हेलमेट और सीट बेल्ट नहीं बांधने के कारण सर्वाधिक जानें गई है. बगैर हेमलेट वाहन चलाने के कारण 712 बाइक सवारों की मौत हुई, वहीं बाइक में पीछे बैठे 396 लोगों को भी अपनी जान गवानी पड़ी. बगैर हेलमेट बाइक चलाने के कारण 412 लोग गंभीर हुए, जबकि 88 लोग मामुली रूप से जख्मी हुए. वहीं कार में बगैर सीट बेल्ट बांधे ड्राइविंग के कारण 318 चार पहिया वाहन चालकों की मौत हुई, जबकि 145 पैसेंजरों को भी अपनी जान गवानी पड़ी. सड़क हादसों के वारदात में 1428 वाहन चालकों के पास वैलिड लाइसेंस था, जबकि 501 लर्निंग लाइसेंसधारी और 534 बगैर लाइसेंस ड्राइविंग करने वाले सड़क हादसे के शिकार हुए. सड़क हादसों में 198 नाबालिग मारे गए, वहीं 18 से 25 की उम्र के 357 युवक और 16 लड़कियां भी दुर्घटना में मारी गई.
इसे भी पढे़ं:- झारखंड उपचुनाव में बंपर वोटिंग, 63 प्रतिशत मतदाताओं ने डाले वोट
पैदल चलने वाले 386 भी मारे गए
सड़क हादसे में पैदल चलने वाले 386 लोग भी मारे गए हैं. सड़क हादसों में 2081 घटनाएं नेशनल हाइवे पर, जबकि 1458 स्टेट हाइवे पर हुई है. नेशनल हाइवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड 18वें स्थान पर है. वहीं स्टेट हाइवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड 14वें स्थान पर है. हादसों में 3414 वारदातों में किसी न किसी की मौत हुई है, जबकि 1481 घटनाओं में लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए. 215 घटनाओं में लोगों को मामुली चोट आई है.
राजधानी में हादसों के स्पॉट, यहां बच कर चलें
1. रांची-टाटा राष्ट्रीय राजमार्ग: यहां पहले तीखे मोड़ थे, लेकिन वर्तमान में सड़क निर्माणाधीन है, जिससे उबड़-खाबड़ रास्ते तो हैं हीं, जहां-तहां स्पीड पर नियंत्रण खोने से अचानक हादसे हो जाते हैं. सर्वाधिक हादसे तैमारा घाटी के पास होती है.
2. रांची रिंग रोड: राजधानी से सटे रिंग रोड पर गति अवरोधक के बावजूद सड़क अच्छी होने के कारण वाहनों की स्पीड अत्याधिक होती है, जो दुर्घटना का कारण बनती है.
3. रांची-खूंटी मार्ग: यह सड़क संकरी है. वन लेन सड़क है. वाहनों के अत्यधिक स्पीड के कारण पहाड़ी क्षेत्र के इस सड़क पर वाहन के सामने नियंत्रण खो जाता है, जिससे दुर्घटनाएं होती है.
4. रांची-गुमला मार्ग और रांची डालटनगंज: रांची से गुमला और रांची से डालटनगंज मार्ग भी वन लेन है. बीच में डिवाइडर भी नहीं है और सड़क भी संकरी है. ऐसे में वाहनों के लिए स्पीड लिमिट संकेतक का नहीं होना दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण है.
5. कांटाटोली से ओरमांझी: वन लेन, पतली सड़क और जहां-तहां गडढे यहां दुर्घटनाओं के सबसे बड़े कारण है. इरबा से लेकर ब्लॉक चौक पर अनावश्यक कट और पर्याप्त जेब्रा क्रॉसिंग के नहीं रहने से लगातार हादसे हो रहे हैं.
6. रांची-लोहरदगा रोड: इस रोड में रातू के बाद मांडर, चान्हो और बिजूपाड़ा तक कई ब्लैक स्पॉट हैं, जहां सड़क हादसे हो रहे हैं.
7. रांची-रामगढ़ रोड: ओरमांझी से आगे बढ़ने पर चुटूपालू घाटी में तीखे मोड़ की वजह से लगातार हादसे होते हैं.
8. रांची-पतरातू रोड: कांके चौक के बाद असुरक्षित कट और टर्निंग है. नया फ्लाइओवर के पास बेतरतीब टर्निंग से हादसे हो रहे हैं. इसके बाद पिठोरिया से नीचे उतरने पर भयंकर घाटी मिलती है, जो हादसों की वजह है.

रांची: अनलॉक के शुरुआत के साथ ही राजधानी में सड़क हादसों में लगातार बढ़ोतरी होते जा रही है. हर दिन 3-4 सड़क हादसों की घटना रिकॉर्ड की जा रही है, जिसमें लगभग 50 प्रतिशत लोगों की जान भी जा रही है. लॉकडाउन ने एक्सीडेंटल डेथ पर ब्रेकर का काम कर रहा था, लेकिन अनलॉक के बाद सड़क हादसों में एक बार फिर वृद्धि देखी जा रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी
अनलॉक में बढ़े हादसे लॉकडाउन के दौरान 25 मार्च से लेकर 25 अप्रैल तक राजधानी रांची में महज 6 एक्सीडेंट हुए थे, जिनमें 3 लोगों की मौत हुई है. यह आंकड़े अन्य महीनों के आंकड़ों की तुलना में काफी कम है. राजधानी में हर महीने लगभग 50 से अधिक दुर्घटनाए होती हैं, जिनमें 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन मई महीने के बाद दुर्घटनाओं में एक बार फिर से तेजी देखी गई है. आंकड़ों के अनुसार मई 2020 से लेकर अक्टूबर 2020 तक राजधानी रांची में सड़क हादसों की वजह से 25 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 11 शारीरिक रूप से विकलांग हो चुके हैं. रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र झा के मुताबिक लॉकडाउन के बाद आंकड़े ये बता रहे है कि सड़क हादसे बढ़े हैं.
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लॉकडाउन में कम घटना
एनसीआरबी के आंकड़े क्या कहते हैंसड़क हादसे को लेकर एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट जारी की है. उसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार झारखंड की राजधानी रांची में यातायात नियमों की अनदेखी के वजह से ज्यादातर सड़क हादसे हुए हैं और केवल 2019 में सड़क हादसों में रांची के 354 लोगों ने अपनी जान गवां दी. यानी औसतन हर महीने 30 लोगों की मौत सड़क हादसों में हुई. आंकड़े यह बताते हैं कि राजधानी रांची में लगभग हर दिन एक व्यक्ति सड़क हादसे की वजह से मौत के गाल में समा जाता है. एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार राजधानी रांची में घर जाने की हड़बड़ी, शराब पीकर वाहन चलाना और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी यह तीन ऐसे कारण हैं, जिसकी वजह से सड़क हादसे होते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी रांची में सबसे ज्यादा सड़क हादसे सुबह और शाम में होते हैं.
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मौत के आंकड़ों में बढ़ोतरी
पूरे झारखंड में 4279 लोगो की हुई मौत नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में झारखंड में 5702 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिसमें 4279 लोगों की मौत हो गई. इनमें से 3819 लोग घायल भी हुए. झारखंड के 24 जिलों के आंकड़े बताते हैं कि मृतकों में सबसे अधिक राजधानी रांची के ही रहने वाले लोग हैं, जबकि 2019 का जुलाई महीना सबसे भयावह रहा. इस महीने में सबसे अधिक 38 लोगों की जान गई. एनसीआरबी आकड़ों के मुताबिक इन हादसों में 3071 पुरुष और 748 महिलाएं जख्मी हुए, जबकि 3385 पुरुष और 504 महिलाओं की जान चली गई.
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मई में बढ़ी दुर्घटना
ऑफिस आते और जाते समय ज्यादा हादसेराजधानी रांची में ट्रैफिक सबसे ज्यादा सुबह 9 से लेकर 11 बजे तक और शाम के 6 बजे से लेकर 9 बजे तक के बीच होता है और इसी दौरान राजधानी रांची में सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक घर जाने की हड़बड़ी, बड़े वाहनों की तेज लाइट और छोटे वाहनों की तेज स्पीड इन हादसों की प्रमुख वजह हैं. सुबह की तुलना में शाम में हादसे ज्यादा होते हैं. इसके पीछे एक प्रमुख वजह ड्रंकन ड्राइव भी होता है. कई लोग अपने काम से लौटने के दौरान रास्ते में शराब का सेवन कर घर लौटते हैं, जिसके वजह से वे हादसों का शिकार होते हैं.
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एक साल में बेतहाशा बढ़ोतरी
केवल खराब सड़कें ही हादसों की वजह नहीं
हादसे की वजह महज जर्जर सड़कें ही नहीं, कई ऐसी अनदेखी जगह भी है जहां हर कदम पर आपका सामना मौत से हो सकता है. पिछले साल राज्य सरकार ने राज्यभर में बेहद खतरनाक 142 जगहों की पहचान की है, जहां सर्वाधिक मौतें कागजों में दर्ज होती हैं. विभाग की मानें, तो इन ब्लैक स्पॉट पर तीन साल के दौरान पांच से ज्यादा बड़े सड़क हादसे या फिर करीब 10 मौतें दर्ज हुई हैं. अब इन ब्लैक स्पॉट पर सुरक्षा के बंदोबस्त बढ़ाने के ठोस उपाय पर किए जा रहे है. ट्रैफिक पुलिस के साथ-साथ परिवहन विभाग ऐसे जगहों की पहचान कर रोड इंजीनियरिंग और इसके मूल डिजाइन में परिवर्तन के लिए संबंधित एजेंसियों को कार्रवाई के लिए कह चुकी है. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि आधे से अधिक सड़क हादसों की वजह रोड के ब्लैक स्पॉट होते हैं. रांची पुलिस के अनुसार अगर व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त हो और परिजन साथ दे, तो बहुत हद तक ये हादसे टाले जा सकते हैं. इस प्रकार होनेवाली सड़क दुर्घटना पर रोक लगाने के लिए विभागीय स्तर पर काम किए जा रहे हैं. थोड़ा सा पब्लिक को भी साथ देना होगा.
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महिलाओं की भी हुई मौत
हेलमेट हो बेहतर इसका भी रखा जाय ख्याल एनसीआरबी के आंकड़े बताते है कि सड़क हादसे में सबसे ज्यादा मृत्यु सर में चोट लगने की वजह से होती है. इसके पीछे कई वजह हैं एक तो कई लोग बिना हेलमेट वाले दोपहिया वाहन चलाते हैं तो कई लोग हेलमेट तो पहनते हैं, लेकिन हेलमेट की तकनीक सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं होती है. ऐसे हेलमेट का पहनना या ना पहनना कोई मायने नहीं रखता, जबकि आंकड़े यह भी बताते हैं कि कई लोगों की हादसों में इसलिए मौत हो जाती है, क्योंकि वह उच्च तकनीक का हेलमेट पहनने में लापरवाही बरतते हैं.
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राजधानी में सबसे अधिक मौत
कुछ शहर हादसे रोकने में कर रहे बेहतर काममिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवे की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिहाज से दिल्ली, पूणे, धनबाद, भोपाल और झारखंड का जमशेदपुर उन जिलों शहरों में शामिल हैं, जहां साल 2018 की तुलना में सड़क हादसों में प्रतिशत के लिहाज से सर्वाधिक कमी आयी है. धनबाद में साल 2018 में 252 हादसे हुए थे, वहां 125 प्रतिशत सड़क हादसों के वारदातों में कमी आई है. धनबाद में साल 2019 में 127 सड़क दुर्घटनाएं हुई. वहीं जमशेदपुर में सड़क हादसों में 65 प्रतिशत की गिरावट आई है. जमशेदपुर में साल 2018 में 157 घटनाएं हुईं थी, जबकि 2018 में महज 92 घटनाएं जिले में रजिस्टर हुई. भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय ने सड़क हादसों को लेकर गुरुवार को रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के मुताबिक, पड़ोसी राज्य बिहार सड़क हादसों के मामलों में पंद्रहवें स्थान पर है.
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लॉकडाउन में कम हादसे
बगैर हेलमेट व सीट बेल्ट के कारण गई अधिकांश जानेंसड़क हादसे में बगैर हेलमेट और सीट बेल्ट नहीं बांधने के कारण सर्वाधिक जानें गई है. बगैर हेमलेट वाहन चलाने के कारण 712 बाइक सवारों की मौत हुई, वहीं बाइक में पीछे बैठे 396 लोगों को भी अपनी जान गवानी पड़ी. बगैर हेलमेट बाइक चलाने के कारण 412 लोग गंभीर हुए, जबकि 88 लोग मामुली रूप से जख्मी हुए. वहीं कार में बगैर सीट बेल्ट बांधे ड्राइविंग के कारण 318 चार पहिया वाहन चालकों की मौत हुई, जबकि 145 पैसेंजरों को भी अपनी जान गवानी पड़ी. सड़क हादसों के वारदात में 1428 वाहन चालकों के पास वैलिड लाइसेंस था, जबकि 501 लर्निंग लाइसेंसधारी और 534 बगैर लाइसेंस ड्राइविंग करने वाले सड़क हादसे के शिकार हुए. सड़क हादसों में 198 नाबालिग मारे गए, वहीं 18 से 25 की उम्र के 357 युवक और 16 लड़कियां भी दुर्घटना में मारी गई.
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पैदल चलने वाले 386 भी मारे गए
सड़क हादसे में पैदल चलने वाले 386 लोग भी मारे गए हैं. सड़क हादसों में 2081 घटनाएं नेशनल हाइवे पर, जबकि 1458 स्टेट हाइवे पर हुई है. नेशनल हाइवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड 18वें स्थान पर है. वहीं स्टेट हाइवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड 14वें स्थान पर है. हादसों में 3414 वारदातों में किसी न किसी की मौत हुई है, जबकि 1481 घटनाओं में लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए. 215 घटनाओं में लोगों को मामुली चोट आई है.
राजधानी में हादसों के स्पॉट, यहां बच कर चलें
1. रांची-टाटा राष्ट्रीय राजमार्ग: यहां पहले तीखे मोड़ थे, लेकिन वर्तमान में सड़क निर्माणाधीन है, जिससे उबड़-खाबड़ रास्ते तो हैं हीं, जहां-तहां स्पीड पर नियंत्रण खोने से अचानक हादसे हो जाते हैं. सर्वाधिक हादसे तैमारा घाटी के पास होती है.
2. रांची रिंग रोड: राजधानी से सटे रिंग रोड पर गति अवरोधक के बावजूद सड़क अच्छी होने के कारण वाहनों की स्पीड अत्याधिक होती है, जो दुर्घटना का कारण बनती है.
3. रांची-खूंटी मार्ग: यह सड़क संकरी है. वन लेन सड़क है. वाहनों के अत्यधिक स्पीड के कारण पहाड़ी क्षेत्र के इस सड़क पर वाहन के सामने नियंत्रण खो जाता है, जिससे दुर्घटनाएं होती है.
4. रांची-गुमला मार्ग और रांची डालटनगंज: रांची से गुमला और रांची से डालटनगंज मार्ग भी वन लेन है. बीच में डिवाइडर भी नहीं है और सड़क भी संकरी है. ऐसे में वाहनों के लिए स्पीड लिमिट संकेतक का नहीं होना दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण है.
5. कांटाटोली से ओरमांझी: वन लेन, पतली सड़क और जहां-तहां गडढे यहां दुर्घटनाओं के सबसे बड़े कारण है. इरबा से लेकर ब्लॉक चौक पर अनावश्यक कट और पर्याप्त जेब्रा क्रॉसिंग के नहीं रहने से लगातार हादसे हो रहे हैं.
6. रांची-लोहरदगा रोड: इस रोड में रातू के बाद मांडर, चान्हो और बिजूपाड़ा तक कई ब्लैक स्पॉट हैं, जहां सड़क हादसे हो रहे हैं.
7. रांची-रामगढ़ रोड: ओरमांझी से आगे बढ़ने पर चुटूपालू घाटी में तीखे मोड़ की वजह से लगातार हादसे होते हैं.
8. रांची-पतरातू रोड: कांके चौक के बाद असुरक्षित कट और टर्निंग है. नया फ्लाइओवर के पास बेतरतीब टर्निंग से हादसे हो रहे हैं. इसके बाद पिठोरिया से नीचे उतरने पर भयंकर घाटी मिलती है, जो हादसों की वजह है.
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