रांची: कहते हैं इंसान में अगर सच्ची श्रद्धा के साथ कुछ करने का जुनून और जज्बा हो तो वह कुछ भी कर सकता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया रिम्स के हुनरबंद चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने. जनवरी के आखिरी सप्ताह में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से आई एक बच्ची के दिल में सुराख था. जिस वजह से बच्ची को बचाना डॉक्टरों के लिए बहुत ही मुश्किल था. दूसरी भाषा में कहा जाए तो इस ऑपरेशन में बहुत ही हाई रिस्क था. क्योंकि बच्ची की उम्र मात्र चार महीने थी और उसका वजन भी केवल ढाई किलो का था.
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रांची में रिम्स के चिकित्सकों ने बच्ची का इलाज कर जान बचाई. लगभग एक महीने के चिकित्सकों की संघर्ष के बाद नन्ही बच्ची स्वस्थ होकर अस्पताल से डिस्चार्ज हुई है. डॉक्टर्स ने बताया कि बच्ची को बचाना चुनौती था. इसके बावजूद रिम्स के सीटीवीएस (कार्डियोलोजी) के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राकेश चौधरी ने बच्ची का ऑपरेशन करने का निर्णय लिया. इसके बाद बच्ची आज स्वस्थ होकर अस्पताल से डिस्चार्ज हो गयी. इसके लिए परिजनों ने रिम्स का धन्यवाद जताया और चिकित्सकों के प्रति आभार प्रकट किया.
रिम्स में बच्ची का ऑपरेशन करने वाले सर्जन डॉक्टर राकेश चौधरी बताते हैं कि एक वक्त था जब बच्ची को देख कर लग रहा था कि शायद वह नहीं बचेगी. इसलिए चिकित्सकों ने बच्ची के अभिभावकों को यह बता दिया था कि ऑपरेशन के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा की बच्ची के जिंदा रहने के कितने चांस हैं. शुक्रवार को बच्ची ठीक होकर अस्पताल से छुट्टी ले रही है. जिसको लेकर डॉ. राकेश चौधरी ने बताया कि बच्ची जब एडमिट हुई थी तो उसका ब्लड प्रेशर भी बहुत ही ज्यादा था साथ ही उसे ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही थी, ऐसे में ऑपरेशन करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. लेकिन बच्चे के ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए बड़ी मुश्किल से कोलकाता से एक दवाई मंगाई गयी क्योंकि वह दवाई रांची और पटना में भी उपलब्ध नहीं थी. उस दवाई को देने के बाद बच्ची की स्थिति थोड़ी सामान्य हुई जिसके बाद रिम्स के एनिस्थेसिया विभाग के डॉक्टरों ने निर्णय लिया कि अब बच्ची का ऑपरेशन किया जा सकता है. वहीं बच्ची के शरीर में खून की भी काफी कमी थी और उसे प्रति घंटे 2 लीटर से ज्यादा ऑक्सीजन के जरूरत पड़ रही थी. ऐसे में ऑपरेशन करना बहुत ही मुश्किल था लेकिन डॉक्टरों ने अपनी सूझबूझ के साथ बच्ची के दिल में हुए सुराख को बंद कर सफल ऑपरेशन किया.
इसको लेकर बच्ची के परिजन ने बताया कि बच्ची की हालत को देखने के बाद उन्हें लग रहा था कि शायद उनकी बच्ची नहीं बच पाएगी. लेकिन काफी मशक्कत से रिम्स के डॉक्टरों ने बच्ची को बचाया. डॉक्टर्स की लगन और मेहनत को देख बच्ची को नया जीवनदान मिला है. परिजनों ने बताया कि किसी ने धरती पर सच में भगवान को नहीं देखा है. लेकिन जिस तरह से उनकी अधमरी बच्ची को डॉक्टर ने बचाया, इससे यही लगता है कि धरती पर अगर कोई भगवान के रूप में है तो वह चिकित्सक ही हैं.
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ऑपरेशन के दौरान डॉ. राकेश चौधरी को मदद कर रही सिस्टर सुधा बताती हैं कि इस बच्ची को बचाना निश्चित रूप से सभी स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सकों के लिए एक गर्व की बात है. क्योंकि एक वक्त में ऐसा लग रहा था कि शायद इस बच्ची को नया जीवन नहीं मिल पाएगा लेकिन हम लोगों के प्रयास ने बच्ची को नया जीवन दिया है. जिसने सभी स्वास्थ्यकर्मी एवं चिकित्सकों हौसला बढ़ा है. बच्ची के सफल ऑपरेशन पर रिम्स प्रबंधन की ओर से ने खुशी जाहिर करते हुए डॉ. डीके सिन्हा ने कहा कि निश्चित रूप से यह रिम्स के लिए बड़ी उपलब्धि है और उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में ऐसे बड़े और गंभीर ऑपरेशन आगे भी किए जाएंगे. उन्होंने बताया कि कम संसाधनों के बीच इस तरह का ऑपरेशन वाकई में एक मिसाल है. साथ ही उन्होंने आश्वस्त किया कि आने वाले समय में ऐसे गंभीर ऑपरेशन के लिए मैन पावर और संसाधनों को भी बढ़ाया जाएगा.
क्या थी बीमारी? बच्ची के दिल में जन्म से ही एक सुराख था, जिस वजह से बच्ची को सांस लेने के अलावा कई तरह की परेशानी हो रही थी. डॉक्टर्स के अनुसार इस बीमारी को पेटेंट डक्टस आर्टिरियस (Patent Ductus Arteriosus) कहा जाता है. जिसमें ज्यादातर मरीज के जान जाने की संभावना होती है. लेकिन रिम्स के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी काबिलियत का परिचय देते हुए इस नन्ही मासूम बच्ची की जान बचाकर एक मिसाल कायम किया है. साथ ही राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के प्रति राज्य के गरीब एवं लाचार लोगों का भरोसा बढ़ाने का काम किया है.