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सूचना का अधिकार कानून को ठेंगा! शिथिल अवस्था में झारखंड राज्य सूचना आयोग - Right to Information Act in Jharkhand

झारखंड में सूचना का अधिकार कानून ठीक से काम नहीं कर रहा है. झारखंड राज्य सूचना आयोग शिथिल अवस्था में काम करने को विवश है. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए राज्य में क्यों दम तोड़ रहा है ये कानून?

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झारखंड में सूचना का अधिकार कानून
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Published : Feb 11, 2022, 10:01 PM IST

Updated : Feb 11, 2022, 10:28 PM IST

रांची: आम लोगों का सबसे बड़ा हथियार कहा जाने वाला राइट टू इनफार्मेशन एक्ट झारखंड राज्य में एक तरह से पूरी तरह फेल हो चुका है. लोगों को न्याय और हक दिलाने के उद्देश्य से झारखंड राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया जो कि आज खुद दम तोड़ता नजर आ रहा है. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत केंद्र सूचना आयोग का गठन किया गया. आयोग का अधिकार सभी केंद्रीय लोक पदाधिकारियों पर दी गयी. इसी के साथ सभी राज्यों में भी सूचना आयोग का गठन किया गया ताकि कोई भी आम आदमी सूचना के अधिकार कल आप उठाते हुए किसी भी मामले पर सरकार से सवाल पूछ सके.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में RTI के तहत सूचना देने से कतराते हैं अधिकारी! 7669 अपील मामले लंबित


आम लोगों की आवाज को मजबूत करने के लिए झारखंड में सूचना आयोग का गठन तो कर दिया गया. लेकिन यहां पर सूचना के अधिकार के तहत कार्यवाही पूरी तरह से ठप है. 8 मई 2020 को एक मात्र सूचना आयुक्त प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी के रिटायर होने के बाद से ही सारा कामकाज ठप हो गया. सूचना आयुक्त की नियुक्ति कब हो पाएगी यह कह पाना भी काफी मुश्किल है. वजह साफ है क्योंकि सूचना आयुक्त की बहाली राज्य सरकार करती है. लेकिन नियमावली के अनुसार नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अहम है उनके बिना सूचना आयुक्तों की बहाली प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती. इसलिए प्रतिपक्ष के नेता की मान्यता के लिए बाबूलाल मरांडी के मामले में कोर्ट का फैसला आना बहुत जरूरी है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

आयोग के सही तरीके से काम नहीं करने के कारण आरटीआई कार्यकर्ता बिजय शंकर बताते हैं कि वर्तमान में सूचना आयोग की स्थिति बहुत ही दयनीय है. किसी भी व्यक्ति को सूचना के अधिकार का लाभ नहीं मिल पा रहा है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 के बाद अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ दिनों तक सूचना आयोग आठ आयुक्तों के साथ संचालित हुआ. लेकिन धीरे-धीरे स्थिति खराब होती गयी. जब रघुवर दास मुख्यमंत्री बने तो राज्य सूचना आयोग केवल दो आयुक्तों के भरोसे चल रहा था. लेकिन पिछ्ले वर्ष 2020 के बाद से सूचना आयोग में एक भी आयुक्त मौजूद नहीं है. जिस वजह से आम लोगों सूचना के अधिकार का लाभ नहीं मिल रहा है, वहीं भ्रष्टाचार भी चरम पर जा रही भी है. सूचना आयोग की लचर व्यवस्था की वजह से लोगों के मानवाधिकार का भी हनन हो रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता रमेश सिंह बताते हैं कि कई बार आम व्यक्ति भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकता है. लेकिन सूचना के अधिकार का लाभ उसे नहीं मिलेगा तो वैसी परिस्थिति में आम लोगों की आवाज को निश्चित रूप से दवा दिया जाएगा जो कि कहीं ना कहीं आम आदमी के अधिकार का भी हनन होता है.

झारखंड राज्य सूचना आयोग के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु चौधरी बताते हैं कि जब से वो आयोग से सेवामुक्त हुए हैं तबसे आयोग में ना तो सूचना आयुक्त है ना ही कोई मुख्य सूचना आयुक्त हैं. पुर्व सूचना आयुक्त बताते हैं कि नियुक्ति नहीं होने की वजह क्या है सभी को मालूम है. उन्होनें कहा कि सूचना आयोग में आयुक्त का नहीं होना या फिर सूचना आयोग का सक्रिय रुप से कार्य नहीं करना निश्चित रूप से राज्य एवं राज्य के लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. सूचना का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिससे जनता सीधे भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सकती है. इस अधिकार से जनता प्रशासन में पारदर्शिता ला सकती है क्योंकि जनता के सवाल से अधिकारी भी सचेत रहते हैं. उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह सूचना आयोग में कार्य कर चुके हैं. उन्हें सूचना के अधिकार की ताकत का पता है जिस तरह से सूचना आयोग राज्य में स्थिर हो गया है इससे कहीं ना कहीं लोगों के अधिकार का हनन होता दिख रहा है.

इसे भी पढ़ें- CIC को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का कैसे पालन करेगी झारखंड सरकार? क्या है राज्य सूचना आयोग की स्थिति, पढ़ें रिपोर्ट

ईटीवी भारत की टीम ने जब सूचना आयोग के कार्यालय का जायजा लिया तो देखा गया कि शिकायत पेटी में कई शिकायत लंबित पड़े हुए हैं. सूचना आयोग कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में करीब दस से पंद्रह हजार मामलों की सुनवाई पेंडिंग है. वही करीब पांच हजार स्वीकृत मामले पर भी आयोग में आयुक्त नहीं होने के कारण सुनवाई नहीं हो पा रही है. प्रथम अपीलीय प्राधिकार और द्वितीय अपील में हजारों मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक इरफान अंसारी कहते हैं कि कांग्रेस सरकार ने सूचना का अधिकार का नियम बनाया था. सरकार ने जानकारी लेने का बड़ा हथियार देश की जनता को दिया था लेकिन झारखंड का दुर्भाग्य रहा कि यहां के लोगों को सूचना का अधिकार का लाभ नहीं मिल पाया. आगे उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार के समय में ही सूचना आयोग की स्थिति काफी खराब हो गई थी. लेकिन हमारी सरकार इसको लेकर सजग हैं जल्द ही नेता प्रतिपक्ष के मामले में कोर्ट से फैसला आने के बाद सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी ताकि राज्य के लोग सूचना के अधिकार का लाभ ले सकें. वहीं इसको लेकर जब राज्य के मंत्री से सवाल किया गया तो कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि जल्द ही इस मामले को मुख्यमंत्री के समक्ष रखा जाएगा.

अब सवाल ये उठता है कि कारण जो भी हो लेकिन इसका नुकसान कहीं ना कहीं आम लोगों को उठना पड़ता है और इससे किसी ना किसी रूप से भ्रष्टाचार को सीधा बढ़ावा मिल रहा है. क्योंकि आयोग का गठन राज्य के अधिकारियों पर निगरानी रखने के लिए की गई थी. लेकिन ऐसे में अगर सूचना आयोग ही कमजोर रहेगी तो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ अधिकारियों और दबंगों के खिलाफ आवाज उठाने में अक्षम रह जाएंगे.

रांची: आम लोगों का सबसे बड़ा हथियार कहा जाने वाला राइट टू इनफार्मेशन एक्ट झारखंड राज्य में एक तरह से पूरी तरह फेल हो चुका है. लोगों को न्याय और हक दिलाने के उद्देश्य से झारखंड राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया जो कि आज खुद दम तोड़ता नजर आ रहा है. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत केंद्र सूचना आयोग का गठन किया गया. आयोग का अधिकार सभी केंद्रीय लोक पदाधिकारियों पर दी गयी. इसी के साथ सभी राज्यों में भी सूचना आयोग का गठन किया गया ताकि कोई भी आम आदमी सूचना के अधिकार कल आप उठाते हुए किसी भी मामले पर सरकार से सवाल पूछ सके.

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आम लोगों की आवाज को मजबूत करने के लिए झारखंड में सूचना आयोग का गठन तो कर दिया गया. लेकिन यहां पर सूचना के अधिकार के तहत कार्यवाही पूरी तरह से ठप है. 8 मई 2020 को एक मात्र सूचना आयुक्त प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी के रिटायर होने के बाद से ही सारा कामकाज ठप हो गया. सूचना आयुक्त की नियुक्ति कब हो पाएगी यह कह पाना भी काफी मुश्किल है. वजह साफ है क्योंकि सूचना आयुक्त की बहाली राज्य सरकार करती है. लेकिन नियमावली के अनुसार नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अहम है उनके बिना सूचना आयुक्तों की बहाली प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती. इसलिए प्रतिपक्ष के नेता की मान्यता के लिए बाबूलाल मरांडी के मामले में कोर्ट का फैसला आना बहुत जरूरी है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

आयोग के सही तरीके से काम नहीं करने के कारण आरटीआई कार्यकर्ता बिजय शंकर बताते हैं कि वर्तमान में सूचना आयोग की स्थिति बहुत ही दयनीय है. किसी भी व्यक्ति को सूचना के अधिकार का लाभ नहीं मिल पा रहा है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 के बाद अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ दिनों तक सूचना आयोग आठ आयुक्तों के साथ संचालित हुआ. लेकिन धीरे-धीरे स्थिति खराब होती गयी. जब रघुवर दास मुख्यमंत्री बने तो राज्य सूचना आयोग केवल दो आयुक्तों के भरोसे चल रहा था. लेकिन पिछ्ले वर्ष 2020 के बाद से सूचना आयोग में एक भी आयुक्त मौजूद नहीं है. जिस वजह से आम लोगों सूचना के अधिकार का लाभ नहीं मिल रहा है, वहीं भ्रष्टाचार भी चरम पर जा रही भी है. सूचना आयोग की लचर व्यवस्था की वजह से लोगों के मानवाधिकार का भी हनन हो रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता रमेश सिंह बताते हैं कि कई बार आम व्यक्ति भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकता है. लेकिन सूचना के अधिकार का लाभ उसे नहीं मिलेगा तो वैसी परिस्थिति में आम लोगों की आवाज को निश्चित रूप से दवा दिया जाएगा जो कि कहीं ना कहीं आम आदमी के अधिकार का भी हनन होता है.

झारखंड राज्य सूचना आयोग के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु चौधरी बताते हैं कि जब से वो आयोग से सेवामुक्त हुए हैं तबसे आयोग में ना तो सूचना आयुक्त है ना ही कोई मुख्य सूचना आयुक्त हैं. पुर्व सूचना आयुक्त बताते हैं कि नियुक्ति नहीं होने की वजह क्या है सभी को मालूम है. उन्होनें कहा कि सूचना आयोग में आयुक्त का नहीं होना या फिर सूचना आयोग का सक्रिय रुप से कार्य नहीं करना निश्चित रूप से राज्य एवं राज्य के लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. सूचना का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिससे जनता सीधे भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सकती है. इस अधिकार से जनता प्रशासन में पारदर्शिता ला सकती है क्योंकि जनता के सवाल से अधिकारी भी सचेत रहते हैं. उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह सूचना आयोग में कार्य कर चुके हैं. उन्हें सूचना के अधिकार की ताकत का पता है जिस तरह से सूचना आयोग राज्य में स्थिर हो गया है इससे कहीं ना कहीं लोगों के अधिकार का हनन होता दिख रहा है.

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ईटीवी भारत की टीम ने जब सूचना आयोग के कार्यालय का जायजा लिया तो देखा गया कि शिकायत पेटी में कई शिकायत लंबित पड़े हुए हैं. सूचना आयोग कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में करीब दस से पंद्रह हजार मामलों की सुनवाई पेंडिंग है. वही करीब पांच हजार स्वीकृत मामले पर भी आयोग में आयुक्त नहीं होने के कारण सुनवाई नहीं हो पा रही है. प्रथम अपीलीय प्राधिकार और द्वितीय अपील में हजारों मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक इरफान अंसारी कहते हैं कि कांग्रेस सरकार ने सूचना का अधिकार का नियम बनाया था. सरकार ने जानकारी लेने का बड़ा हथियार देश की जनता को दिया था लेकिन झारखंड का दुर्भाग्य रहा कि यहां के लोगों को सूचना का अधिकार का लाभ नहीं मिल पाया. आगे उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार के समय में ही सूचना आयोग की स्थिति काफी खराब हो गई थी. लेकिन हमारी सरकार इसको लेकर सजग हैं जल्द ही नेता प्रतिपक्ष के मामले में कोर्ट से फैसला आने के बाद सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी ताकि राज्य के लोग सूचना के अधिकार का लाभ ले सकें. वहीं इसको लेकर जब राज्य के मंत्री से सवाल किया गया तो कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि जल्द ही इस मामले को मुख्यमंत्री के समक्ष रखा जाएगा.

अब सवाल ये उठता है कि कारण जो भी हो लेकिन इसका नुकसान कहीं ना कहीं आम लोगों को उठना पड़ता है और इससे किसी ना किसी रूप से भ्रष्टाचार को सीधा बढ़ावा मिल रहा है. क्योंकि आयोग का गठन राज्य के अधिकारियों पर निगरानी रखने के लिए की गई थी. लेकिन ऐसे में अगर सूचना आयोग ही कमजोर रहेगी तो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ अधिकारियों और दबंगों के खिलाफ आवाज उठाने में अक्षम रह जाएंगे.

Last Updated : Feb 11, 2022, 10:28 PM IST
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