रांचीः RIMS के चिकित्सकों ने लापरवाही का ऐसा नमूना पेश किया है, जिसकी मिसाल मिलनी भी मुश्किल है. कोरोना के पीक टाइम में यहां गंभीर मरीजों पर कॉलेस्ट्रॉल की दवा Atorvastatin के असर को जांचने के लिए शोध की योजना बनाई गई थी. यह एक ग्लोबल शोध का हिस्सा था और अमेरिकी मेडिकल जर्नल में रिम्स की चर्चा हुई थी. इसको लेकर संस्थान को खूब वाहवाही मिली. संस्थान सुर्खियों में रहा, लेकिन अब चार महीने बाद जब कोरोना के मरीज कम हो गए हैं तो पता चला है कि RIMS की शोध के लिए गठित टीम शोध ही नहीं शुरू कर सकी.
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क्या था प्रोजेक्ट
कॉलेस्ट्राल और दिल की बीमारी में काम आने वाली दवा Atorvastatin का कोरोना के माइल्ड और मॉडरेट मरीजों पर क्या असर होता है. इसको लेकर जून महीने में रिम्स (RIMS) को एक शोध करना था, 04 जून को रिम्स की एथिकल कमिटी ने इसकी अनुमति भी दे दी थी. दावा किया गया था कि सभी तैयारियां पूरी कर ली गईं थीं लेकिन चार माह बाद जब etv भारत ने इस शोध को लेकर रिम्स कोरोना टास्क फोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. प्रभात कुमार से बात की तो शर्मनाक हकीकत सामने आई. उन्होंने बताया कि शोध शुरू ही नहीं हो सका.
रिम्स कोरोना टास्क फोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. प्रभात कुमार का बयान भी कम हैरान करने वाला नहीं है, डॉ. प्रभात कुमार ने कहा कि समाज के लिए अच्छा हुआ कोरोना मरीज कम हो गए. अब ऐसे में सवाल उठता है कि जब शोध करना ही नहीं था, फिर शोध के लिए प्लान बनाना, घोषणा करना और दूसरी औपचारिकताओं में समय बर्बाद करने की जरूरत क्या थी?
डॉ. प्रभात के नेतृत्व में ही बनी थी शोध के लिए डॉक्टर्स की टीम
रिम्स करो ना टास्क फोर्स के संयोजक डॉ प्रभात कुमार के नेतृत्व में 17 डॉक्टरों की टीम बनाई गई थी जिसमें रिम्स ट्रॉमा सेंटर के हेड डॉक्टर प्रदीप भट्टाचार्य डॉ जयप्रकाश डॉक्टर पी जी सरकार डॉ अजीत डॉ प्रज्ञा पंत डॉक्टर सुरेंद्र प्रसाद डॉक्टर लखन मांझी डॉक्टर अमित डॉक्टर दिनेश सहित कुल 17 डाक्टर शामिल थे इन डॉक्टरों को 300 कोरोना संक्रमित मरीजों को एटोरवास्टेटिन ( Atorvastatin) दवा देकर उसका प्रभाव देखना था ।
मरीज ही नहीं मिले इसलिए नहीं हो सका शोधः डॉ. प्रभात कुमार
कॉलेस्ट्राल की दवा Atorvastatin का कोरोना रोगियों पर प्रभाव संबंधित शोध योजना बनाने के बाद भी रिम्स में न होने पर रिम्स कोरोना टास्क फोर्स के संयोजक और प्रस्तावित शोध के नेतृत्वकर्ता डॉ. प्रभात कुमार का कहना है कि उस समय यानी जून में मरीज ही नहीं मिले इसलिए शोध शुरू नहीं हो सका.
जब मरीजों का जून में चयन हो गया था अब क्या हुआ?
इससे पहले जून के पहले पखवाड़े में डॉ. प्रभात कुमार ने ही ETV BHARAT से कहा था कि शोध के लिए मरीजों का चयन कर लिया गया है. अब सवाल यह कि जब कोरोना मरीजों का चयन उस समय कर लिया गया था तब अब क्यों कहा जा रहा है कि माइल्ड और मॉडरेट किस्म के मरीज नहीं मिले. इसलिए शोध नहीं शुरू हो सका.
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रिम्स निदेशक की इच्छा, शोध केंद्र बने रिम्स
रिम्स के चिकित्सकों की शोध को लेकर यह स्थिति तब है जब RIMS निदेशक पद्मश्री डॉ. कामेश्वर प्रसाद की चाहत है कि AIIMS दिल्ली की तरह रिम्स (RIMS) भी शोध केंद्र के रूप में विकसित हो. यह सामान्य सर्दी खांसी का इलाज करने वाला संस्थान बनकर न रहे पर जब कोरोना काल मे भी पूरी तैयारी के बावजूद शोध नहीं कर सके तो इनकी कार्यशैली पर सवाल उठना लाजमी है.
शोध पूरा होता तो यह लाभ होता
अगर रिम्स(RIMS) की टीम 300 कोरोना संक्रामितों पर यह रिसर्च पूरी कर लेती तो यह तथ्य सामने आता कि कॉलेस्ट्राल कम करने वाली दवा क्या कोरोना संक्रमितों में होने वाली क्लॉटिंग की समस्या को दूर करने में भी कारगर है? अगर शोध रिपोर्ट पॉजिटिव होतr तो एक नई दवा का ऑप्शन भी चिकित्सा जगत के सामने होता, मगर RIMS की टीम ने मौका गंवा दिया. साथ ही दावे कर शोध न करने का RIMS पर दाग भी लगा दिया.