रांची: जेएसएससी की परीक्षा के लिए द्वितीय पत्र में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने के मसले पर पूर्व मंत्री और इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष केएन त्रिपाठी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा सोशल मीडिया पर भाषा विवाद पर दिए गए एक इंटरव्यू पर सख्त एतराज जताया है. उनका यह बयान गैरसंवैधानिक है. इसे विधिसम्मत नहीं कहा जा सकता और यह सीएम की मर्यादा के प्रतिकूल है. सीएम ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि मगही-भोजपुरी, अंगिका-मैथिली बिहार की भाषा है. यह झारखंड की भाषा नहीं है. सीएम ने ये भी कहा कि ये डोमिनेटिंग भाषा है.
ये भी पढ़ें- तुष्टिकरण और शिक्षकों को अपमानित कर रही है हेमंत सरकार, झारखंड बीजेपी अध्यक्ष दीपक प्रकाश का आरोप
त्रिपाठी ने सीएम के कथन का विरोध करते हुए कहा कि देश में कमोबेश सभी भाषाओं में गालियां दी जाती हैं, तो क्या इससे राष्ट्रीय या क्षेत्रीय भाषा का दर्जा छीन लिया जाएगा? सीएम ने माना कि भोजपुरी, मगही, अंगिका और मैथिली बिहार की भाषा है, तो बंगला और उड़िया भी ओड़िशा और बंगाल की भाषा है. फिर इस आधार पर भाषा का मानक कैसे तय किया जा सकता है?
'भाषा के आधार पर छात्रों का अधिकार नहीं छीनें'
उनका साफ मानना है कि झारखंड राज्य का निर्माण भाषा के आधार पर नहीं हुआ है. झारखंड का निर्माण दक्षिण बिहार इलाके के अतिपिछड़ेपन को दूर करने के मकसद से किया गया है. झारखंड में अगर विभिन्न जातियों और विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं तो उनकी भाषाएं भी एक नहीं हो सकतीं. हमारे राज्य में संतालपरगना में संताली के अलावा देवघर-गोड्डा में अंगिका और मैथिली बोली जाती है. यदि कोल्हान के चाईबासा में मुंडारी और हो बोली जाती है, तो जमशेदपुर में मगही और भोजपुरी बोली जाती है. वहीं बोकारो, धनबाद, गिरिडीह के ग्रामीण इलाकों में खोरठा तो शहरी इलाकों में भोजपुरी और मगही बोली जाती है, तो शहरी इलाकों में भोजपुरी और मगही भी बोली जाती है. पलामू, लातेहार. गढ़वा और चतरा में पूर्णतः मगही बोली जाती है, ये सारे जिले झारखंड के ही भाग हैं. इनके मुख्यमंत्री भी हेमंत सोरेन ही हैं. उन्होंने कहा कि सीएम हर जाति-धर्म-संप्रदाय के होते हैं तो हमें उनकी भाषाओं का भी सम्मान करना होगा. इसे अलग नजरिये से नहीं देखा जा सकता. भाषा के आधार पर हम राज्य के छात्रों का अधिकार नहीं छीन सकते. उन्होंने सीएम से मांग की है कि राज्यहित में अपने वक्तव्यों पर पुनर्विचार करें.
2013-14 में भी हुआ था भाषा विवाद
उल्लेखनीय है कि 2013-14 में हेमंत सरकार में मंत्री रहे केएन त्रिपाठी से भाषा विवाद पर राज्य की तत्कालीन शिक्षा मंत्री से मगही-भोजपुरी भाषा को लेकर मतभेद हुए थे. उस समय झारखंड कांग्रेस के प्रभारी रहे बीके हरिप्रसाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर झारखंड कांग्रेस मुख्यालय में दिनभर बैठक चली थी. बैठक में यह भाषा विवाद पर विराम लगाते हुए मगही और भोजपुरी भाषाओं को परीक्षाओं में शामिल करने का फैसला हुआ था. उन्हें यह याद रखना चाहिए, क्योंकि उस समय भी सीएम हेमंत सोरेन ही थे.
सीएम ने त्रिपाठी को दिया है आश्वासन
केएन त्रिपाठी ने जेएसएससी की परीक्षा के लिए द्वितीय पत्र में मगही, भोजपुरी, अंगिका और मैथिली भाषाओं का नाम हटाने पर आपत्ति जता चुके हैं. इस संबंध में उन्होंने कुछ दिन पहले मीडिया के समक्ष कहा था कि इन भाषाओं को भी जोड़ने पर सीएम ने सहमति जतायी है. इस मामले में उन्होंने झारखंड कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बातचीत की है. सीएम ने कहा है कि दुर्गापूजा के बाद इन भाषाओं को भी शामिल कर लिया जाएगा. फिर इस तरह अपने वक्तव्य को बदलना राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता.
'बांटो और राज करो की नीति पर चल रहे हैं हेमंत सोरेन'
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मामले पर कहा कि झारखंड में आज बचकाना नेतृत्व कार्यरत है. भोजपुरी-मगही भाषी लोगों के प्रति मुख्यमंत्री का यह बयान दुखद है. उनके गठबंधन को वोट देने वाले लोगों को आज दुख जरूर हो रहा होगा. हेमंत सोरेन जी को भोजपुरी और मगही बाहरी भाषा लगती है, लेकिन उर्दू अपनी लगती है. हेमंत सरकार ने पहले हिंदी-संस्कृत और अब भोजपुरी-मगही का अपमान किया है. मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि भोजपुरी-मगही से झारखंड का बिहारीकरण हो रहा है तो क्या उर्दू से झारखंड के इस्लामीकरण की तैयारी है. पांच लाख नौकरी देने का वादा करके सत्ता में आयी हेमंत सरकार ध्यान भटकाने की कला में पारंगत है. इसलिए मुद्दों से ध्यान भटकाने का खेल खेल रहे हैं. संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन को यह समझने की जरूरत है कि वे झारखंड के साढ़े तीन करोड़ लोगों के मुख्यमंत्री हैं. लेकिन वे उसी संविधान की तिलांजलि देने पर तुले हैं.
बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री भानू प्रताप शाही ने हेमंत सोरेन के बयान की निंदा करते हुए कहा है कि राज्य सरकार पाकिस्तानी भाषा उर्दू को प्रमोट करने में लगी है. भोजपुरी, मगही जैसी क्षेत्रीय भाषा बोलनेवाले पर अनरगल टिप्पणी कर अपमानित करने का काम किया है. भानू प्रताप शाही ने राज्य सरकार की ओर से लाई गई नियोजन नीति में हिन्दी की उपेक्षा किये जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि हेमंत सरकार पहले धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश की और अब भाषा के आधार पर लड़ाने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि जब बीजेपी की ओर से नमाज पॉलिटिक्स पर विरोध दर्ज किया गया तो सरकार बैकफुट पर सदन में आती दिखी. उन्होंने सरकार पर थूक फेंककर चाटने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की ओर से असंसदीय भाषा का प्रयोग किया जाना पूरे राज्य को शर्मसार किया है जिसके विरोध में भाजपा चुप नहीं बैठेगी.
बीजेपी विधायक राज सिन्हा ने कहा कि भोजपुरी, मगही, मैथिली झारखंड राज्य अलग होने से पहले ही झारखंड में रहते आ रहे हैं. अलग झारखंड राज्य की लड़ाई भी लड़े हैं. झारखंड के विकास और शिक्षा को बढ़ावा देने में भी अपनी भूमिका निभाए हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बाद भी झारखंड में आदिवासियों के साथ बलात्कार और कई तरह की प्रताड़ना हो रही है. यह उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है. बिरसा मुंडा का परिवार और रूपा तिर्की इसका ताजा उदाहरण है.