रांची: झारखंड में हर पांच मिनट में एक मामला ट्रॉमा का मामला सामने आता है. राज्य में हर 10 हजार वाहनों पर दुर्घटना की दर 8.3 है. जबकि राष्ट्रीय औसत 5.1 के करीब है.
ऐसे में राज्य में सड़क हादसा में घायल होने वाले लोगों की जान बचाने के लिए सभी संसाधनों से लैस लेवल वन के ट्रॉमा सेंटर की आवश्यकता है. लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में 09 ट्रॉमा सेंटर में से सिर्फ रिम्स का ट्रॉमा सेंटर ही लेवल वन का है (Only one trauma center of level one in Jharkhand).
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रिम्स के टॉमा सेंटर में सभी जरूरी इक्विपमेंट के साथ क्रिटिकल केयर के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर और ट्रेंड नर्स के साथ पारा मेडिकल स्टाफ 24 घंटे सातो दिन के लिए उपलब्ध हैं. बाकी के 08 ट्रॉमा सेंटर लेवल 03 के हैं. इसका मतलब यह हुआ कि वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों और ट्रेंड नर्सों के अलावा ट्रॉमा केस से निपटने के लिए जरूरी मशीनों की कमी है.
कैसे मिलता है ट्रॉमा सेंटर को सर्वोच्च लेवल: रांची के रिम्स ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉक्टर्स डॉ वरुण कुमार और डॉ सुदीप्तो बनर्जी कहते हैं कि दुर्घटना के समय शुरुआती एक घंटा काफी अहम होता है. इस एक घंटे में अगर मरीज को क्रिटिकल केयर मिल जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है. डॉक्टर्स के अनुसार एक लेवल वन के ट्रॉमा सेंटर में तीन जोन रेड, येलो और ग्रीन एरिया डिवाइडेड होना चाहिए. वहां ट्रेंड डॉक्टरों की पूरी टीम जिसमें ट्रॉमा क्रिटिकल केयर, ट्रॉमा सर्जरी, ट्रॉमा न्यूरो सर्जरी, ट्रॉमा ऑर्थो, ट्रॉमा मेडिसीन के साथ साथ डेंटल सर्जन की पूरी टीम 24x7 उपलब्ध रहना चाहिए. इसके अलावा लेवल वन के ट्रॉमा सेंटर में ऑपेरशन थियेटर, एयर वे मैनेजमेंट, सीटी स्कैन, MRI मशीन,अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था होना जरूरी है. इसी से किसी ट्रॉमा सेंटर का ग्रेड या लेवल तय होता है.
ट्रॉमा सेंटर को अपग्रेड करने की हो रही है कोशिश: राज्य की सवा तीन करोड़ से अधिक की आबादी के लिए सिर्फ एक लेवल 01 ट्रॉमा सेंटर के सवाल पर राज्य के स्टेट ट्रॉमा नोडल अधिकारी डॉ अनिल कुमार ने बताया कि ट्रेंड ह्यूमन रिसोर्स की कमी की वजह से ट्रॉमा सेंटर को अपग्रेड करने में दिक्कत हो रही है. बावजूद इसके विशेष ट्रेनिंग देकर क्रिटिकल केयर के लिए ह्यूमन रिसोर्स की कमी को दूर करने के प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि रिम्स को छोड़ बाकी अन्य मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर को अपग्रेड करने के साथ साथ राज्य में वैसे जिले जो राष्ट्रीय उच्चपथ से जुड़े हैं वहां के जिला अस्पताल में भी ट्रॉमा सेंटर खोलने की योजना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके.