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आज भी मिसाल पेश करता है 60 के दशक में रशियन टेक्नोलॉजी पर बना एचईसी का अस्पताल, जानिए इसकी खासियत

रांची में एचईसी का अस्पताल, आज भी मिसाल पेश करता है कि वाकई में हॉस्पिटल कैसा होना चाहिए. 60 के दशक में रशियन टेक्नोलॉजी पर अस्पताल का निर्माण विदेशी सिद्धांत पर किया गया था. यहां दवाइयों के साथ दुआओं का भी ख्याल रखा जाता था. आज भी इस अस्पताल में आम अस्पतालों की तुलना में जल्दी से मरीज ठीक होते हैं. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में जानिए, और क्या है इसकी खासियत.

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Published : Jun 25, 2022, 4:27 PM IST

Updated : Jun 26, 2022, 10:37 PM IST

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एचईसी

रांची: कहते हैं अगर कोई शख्स बीमार हो जाता है तो उसके लिए दवा और दुआ दोनों की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए कई बार गंभीर मरीज का इलाज करने के बाद बड़े-बड़े डॉक्टर भी कहते हैं कि अब इसे दुआ ही बचा सकती है. इसीलिए दवा के साथ-साथ दुआ भी मरीज की जान बचाने के लिए अहम योगदान निभाती है. इसी सोच के साथ रांची का एक अस्पताल ऐसा है जो दवाई से तो मरीज का इलाज करता ही है. लेकिन उसके साथ साथ दुआ के भी विशेष इंतजाम इस अस्पताल में किए गए हैं.

रांची के धुर्वा स्थित एचईसी का अस्पताल बनाया गया. एक ऐसा अस्पताल में अत्याधुनिक सुविधाएं तो मौजूद है ही लेकिन प्राकृतिक सुविधाओं की भी विशेष इंतजाम किए गए हैं. प्राकृतिक सुविधाओं की बात करें तो उनमें सूर्य की रोशनी, शुद्ध हवा, खुली जगह, वैंटिलेशन का विशेष ख्याल रखा गया है. ईटीवी भारत की टीम ने जब इस अस्पताल का जायजा लिया तो हमने पाया कि सच में इस अस्पताल को बनाने में कई मांगों का विशेष ध्यान रखा गया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

फिलहाल यह अस्पताल निजी हाथों में है और यहां पर काम करने वाले चिकित्सक बताते हैं कि मरीज के बेड में के बगल में खिड़की लगाई गई है ताकि मरीज को सुबह की रोशनी सीधे उसके बिस्तर पर मिल सके. क्योंकि सुबह की धूप स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. अस्पताल के कर्मचारी बताते हैं कि आज के दिनों में बनने वाले अस्पताल में शुद्ध हवा व सूर्य की रोशनी या फिर वेंटिशन का इंतजाम नहीं होता. क्योंकि लगातार बढ़ रही आबादी में अस्पताल बनाने वाले लोगों के पास जमीन नहीं होते है. इसीलिए कम जगह में अस्पताल बनाकर उसमें अत्याधुनिक सुविधा डाल दी जाती है लेकिन प्राकृतिक सुविधाओं का इंतजाम नहीं हो पाता.

अस्पताल के इंचार्ज डॉ नितेश कुमार बताते हैं कि जब इस अस्पताल के इमारत को उनकी टीम ने देखा तो उन्होंने खुद को काफी खुश नसीब माना. क्योंकि ऐसे अस्पताल अब नहीं बन पा रहे हैं. वह बताते हैं कि 60 के दशक में बनाया अस्पताल को रशिया के इंजीनियरों द्वारा बनाया गया था, जो काफी अलग है. उन्होंने बताया कि वास्तुशास्त्र को ध्यान में रखकर इस अस्पताल को बनाए गए हैं. इस अस्पताल की दिशा पूरब और पश्चिम की ओर है ताकि सुबह के समय में सूर्य की रोशनी पूरब दिशा से ही मरीजों को मिल पाएगी.

अस्पताल में बनाई गयी सीढ़िया भी बेहद खास हैं. क्योंकि साठ के दशक में बनाने वाले इंजीनियरों ने सीढ़ियों को एक अलग ही रूप दिया है. यहां प्रत्येक 5 से 10 सीढ़ी के बाद एक प्लेटफार्म बनाया गया है, जहां पर कि मरीज थोड़ा रुक कर आराम कर सकें. सीढ़ियों को डिजाइन करने वक्त यह ध्यान रखा गया है कि जब मरीज सीढ़ी पर चढ़ने लगे तो उन्हें सांस फूले, गिरने या अन्य समस्याओं का सामना ना करना पड़े.

वर्तमान में अस्पताल के फेसीलेट डायरेक्टर डॉ नीतेश कुमार बताते हैं कि अस्पताल की छत को भी अलग तरह से बनाया गया है. जब अस्पताल की छत को रिपेयर करने के लिए लोग गए तो उन्होंने देखा कि छत पर चूना के तरह पदार्थ लगाए गए थे. जिसके बारे में इंजीनियरों ने बताया कि उससे छत ठंडा रहता है और ठंड के मौसम में मरीजों को सूर्य के धूप की गर्माहट में मिलती है. उन्होंने बताया कि जब यह अस्पताल बनाया गया था तो उस वक्त वास्तु शास्त्र का विशेष ध्यान रखा गया था क्योंकि कई बार वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाए गए. इस अस्पताल की खिड़कियां दरवाजे सभी को वैसे जगह ही बनाया गया है, जिस हिसाब से वास्तु शास्त्र में वर्णन किया गया है.

एचईसी के सेवानिवृत्त कर्मचारी बताते हैं कि जब यह अस्पताल बनाया गया था तो उस वक्त इस अस्पताल की इमारतों की चर्चा पूरे देश में होती थी. क्योंकि इस अस्पताल को रशिया के इंजीनियरों ने बनाया था, जो 60 के दशक में एचईसी को बनाने रांची आए थे. उस वक्त यह अस्पताल एचईसी के कर्मचारियों के लिए स्वाभिमान था क्योंकि इस अस्पताल की वजह से एचईसी के कर्मचारियों को दूसरे अस्पताल का रुख नहीं करना पड़ा. लेकिन धीरे-धीरे अस्पताल की स्थिति खराब होती गई जिस वजह से आज यह निजी हाथों में चला गया.

रांची के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और रिम्स अस्पताल के पूर्व एचओडी डॉ. अशोक प्रसाद बताते हैं कि अस्पताल में अगर सूर्य की रोशनी, शुद्ध हवा और प्राकृतिक संसाधनों की व्यवस्था हो तो निश्चित रूप से मरीज के स्वास्थ्य पर वह सीधा असर डालता है. पुराने दौर में इस तरह के अस्पताल इसलिए बनाए जाते थे ताकि मरीजों को मानसिक रूप से मजबूत रखा जाए और अगर कोई इंसान मानसिक रूप से मजबूत होता है तो शारीरिक रूप से मजबूत होने में उससे ज्यादा वक्त नहीं लगता. इसलिए अस्पतालों में इस तरह की सुविधा होने जरूरी है ताकि मरीज को मानसिक रूप से स्वस्थ रखा जा सके.


कब बना था एचईसी का अस्पतालः 1960 के दशक में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब रूस दौरे पर गए थे तो वहां से उन्हें एचईसी बनाने बनाने का ख्याल आया. जिसके बाद रशिया के इंजीनियरों को बुलाकर एचईसी के सभी भवनों को बनाया गया जो आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है और लोगों को लाभान्वित कर रहा है. वर्तमान में एचईसी का अस्पताल निजी अस्पतालों के लिए मिसाल है. ऐसे अस्पतालों में मरीज दवाओं के साथ साथ आबोहवा से भी स्वस्थ हो सकता है.

रांची: कहते हैं अगर कोई शख्स बीमार हो जाता है तो उसके लिए दवा और दुआ दोनों की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए कई बार गंभीर मरीज का इलाज करने के बाद बड़े-बड़े डॉक्टर भी कहते हैं कि अब इसे दुआ ही बचा सकती है. इसीलिए दवा के साथ-साथ दुआ भी मरीज की जान बचाने के लिए अहम योगदान निभाती है. इसी सोच के साथ रांची का एक अस्पताल ऐसा है जो दवाई से तो मरीज का इलाज करता ही है. लेकिन उसके साथ साथ दुआ के भी विशेष इंतजाम इस अस्पताल में किए गए हैं.

रांची के धुर्वा स्थित एचईसी का अस्पताल बनाया गया. एक ऐसा अस्पताल में अत्याधुनिक सुविधाएं तो मौजूद है ही लेकिन प्राकृतिक सुविधाओं की भी विशेष इंतजाम किए गए हैं. प्राकृतिक सुविधाओं की बात करें तो उनमें सूर्य की रोशनी, शुद्ध हवा, खुली जगह, वैंटिलेशन का विशेष ख्याल रखा गया है. ईटीवी भारत की टीम ने जब इस अस्पताल का जायजा लिया तो हमने पाया कि सच में इस अस्पताल को बनाने में कई मांगों का विशेष ध्यान रखा गया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

फिलहाल यह अस्पताल निजी हाथों में है और यहां पर काम करने वाले चिकित्सक बताते हैं कि मरीज के बेड में के बगल में खिड़की लगाई गई है ताकि मरीज को सुबह की रोशनी सीधे उसके बिस्तर पर मिल सके. क्योंकि सुबह की धूप स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. अस्पताल के कर्मचारी बताते हैं कि आज के दिनों में बनने वाले अस्पताल में शुद्ध हवा व सूर्य की रोशनी या फिर वेंटिशन का इंतजाम नहीं होता. क्योंकि लगातार बढ़ रही आबादी में अस्पताल बनाने वाले लोगों के पास जमीन नहीं होते है. इसीलिए कम जगह में अस्पताल बनाकर उसमें अत्याधुनिक सुविधा डाल दी जाती है लेकिन प्राकृतिक सुविधाओं का इंतजाम नहीं हो पाता.

अस्पताल के इंचार्ज डॉ नितेश कुमार बताते हैं कि जब इस अस्पताल के इमारत को उनकी टीम ने देखा तो उन्होंने खुद को काफी खुश नसीब माना. क्योंकि ऐसे अस्पताल अब नहीं बन पा रहे हैं. वह बताते हैं कि 60 के दशक में बनाया अस्पताल को रशिया के इंजीनियरों द्वारा बनाया गया था, जो काफी अलग है. उन्होंने बताया कि वास्तुशास्त्र को ध्यान में रखकर इस अस्पताल को बनाए गए हैं. इस अस्पताल की दिशा पूरब और पश्चिम की ओर है ताकि सुबह के समय में सूर्य की रोशनी पूरब दिशा से ही मरीजों को मिल पाएगी.

अस्पताल में बनाई गयी सीढ़िया भी बेहद खास हैं. क्योंकि साठ के दशक में बनाने वाले इंजीनियरों ने सीढ़ियों को एक अलग ही रूप दिया है. यहां प्रत्येक 5 से 10 सीढ़ी के बाद एक प्लेटफार्म बनाया गया है, जहां पर कि मरीज थोड़ा रुक कर आराम कर सकें. सीढ़ियों को डिजाइन करने वक्त यह ध्यान रखा गया है कि जब मरीज सीढ़ी पर चढ़ने लगे तो उन्हें सांस फूले, गिरने या अन्य समस्याओं का सामना ना करना पड़े.

वर्तमान में अस्पताल के फेसीलेट डायरेक्टर डॉ नीतेश कुमार बताते हैं कि अस्पताल की छत को भी अलग तरह से बनाया गया है. जब अस्पताल की छत को रिपेयर करने के लिए लोग गए तो उन्होंने देखा कि छत पर चूना के तरह पदार्थ लगाए गए थे. जिसके बारे में इंजीनियरों ने बताया कि उससे छत ठंडा रहता है और ठंड के मौसम में मरीजों को सूर्य के धूप की गर्माहट में मिलती है. उन्होंने बताया कि जब यह अस्पताल बनाया गया था तो उस वक्त वास्तु शास्त्र का विशेष ध्यान रखा गया था क्योंकि कई बार वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाए गए. इस अस्पताल की खिड़कियां दरवाजे सभी को वैसे जगह ही बनाया गया है, जिस हिसाब से वास्तु शास्त्र में वर्णन किया गया है.

एचईसी के सेवानिवृत्त कर्मचारी बताते हैं कि जब यह अस्पताल बनाया गया था तो उस वक्त इस अस्पताल की इमारतों की चर्चा पूरे देश में होती थी. क्योंकि इस अस्पताल को रशिया के इंजीनियरों ने बनाया था, जो 60 के दशक में एचईसी को बनाने रांची आए थे. उस वक्त यह अस्पताल एचईसी के कर्मचारियों के लिए स्वाभिमान था क्योंकि इस अस्पताल की वजह से एचईसी के कर्मचारियों को दूसरे अस्पताल का रुख नहीं करना पड़ा. लेकिन धीरे-धीरे अस्पताल की स्थिति खराब होती गई जिस वजह से आज यह निजी हाथों में चला गया.

रांची के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और रिम्स अस्पताल के पूर्व एचओडी डॉ. अशोक प्रसाद बताते हैं कि अस्पताल में अगर सूर्य की रोशनी, शुद्ध हवा और प्राकृतिक संसाधनों की व्यवस्था हो तो निश्चित रूप से मरीज के स्वास्थ्य पर वह सीधा असर डालता है. पुराने दौर में इस तरह के अस्पताल इसलिए बनाए जाते थे ताकि मरीजों को मानसिक रूप से मजबूत रखा जाए और अगर कोई इंसान मानसिक रूप से मजबूत होता है तो शारीरिक रूप से मजबूत होने में उससे ज्यादा वक्त नहीं लगता. इसलिए अस्पतालों में इस तरह की सुविधा होने जरूरी है ताकि मरीज को मानसिक रूप से स्वस्थ रखा जा सके.


कब बना था एचईसी का अस्पतालः 1960 के दशक में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब रूस दौरे पर गए थे तो वहां से उन्हें एचईसी बनाने बनाने का ख्याल आया. जिसके बाद रशिया के इंजीनियरों को बुलाकर एचईसी के सभी भवनों को बनाया गया जो आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है और लोगों को लाभान्वित कर रहा है. वर्तमान में एचईसी का अस्पताल निजी अस्पतालों के लिए मिसाल है. ऐसे अस्पतालों में मरीज दवाओं के साथ साथ आबोहवा से भी स्वस्थ हो सकता है.

Last Updated : Jun 26, 2022, 10:37 PM IST
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