रांची: यह खबर झारखंड सरकार में नौकरी कर रहे उन होनहार सरकारी सेवकों के लिए है जिन्होंने एसटी और एससी कोटे से बाहर निकल कर मेरिट के आधार पर अनारक्षित कोटे में जगह बनाई है. अब उन सरकारी सेवकों को परिणामी वरीयता के आधार पर अनारक्षित कोटे में ही प्रोन्नति मिल सकेगी. अब तक एसटी और एससी कोटे के अभ्यर्थी, जो अनारक्षित कोटे में चयनित होते थे, उन्हें उन्हीं के कोटे अर्थात आरक्षित कोटे में ही प्रमोशन मिलता था. इसकी वजह से मेरिट वाले ST-SC अभ्यर्थियों की तरक्की प्रभावित होती थी.
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हालांकि इसके बावजूद सदन में विपक्ष के ओबीसी विधायकों के हंगामे के बीच "राज्य सरकार के पदों पर आरक्षण के आधार पर प्रोन्नत सरकारी सेवकों की परिणामी वरीयता का विस्तार विधेयक 2022" पारित हो गया. इस पर रामचंद्र चंद्रवंशी, अमित मंडल, मनीष जयसवाल, लंबोदर महतो और विनोद कुमार सिंह ने संशोधन प्रस्ताव लाया जो खारिज हो गया. अमित मंडल ने कहा कि यह विधेयक ओबीसी के गर्दन पर छुरी चलने जैसा है. इसमें परिणामी वरीयता की परिभाषा नहीं है. लिहाजा इसे प्रवर समिति को भेजना चाहिए. उन्होंने कहा कि एसटी और एससी को प्रमोशन में रिजर्वेशन जरूर मिलना चाहिए. लेकिन सरकार को इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि ओबीसी को पहले से ही 27% की जगह 14% आरक्षण मिल रहा है. अगर यह व्यवस्था लागू होगी तो ओबीसी की प्रोन्नति प्रभावित होगी.
मनीष जायसवाल ने कहा कि इस व्यवस्था के लागू होने से ओबीसी अभ्यर्थी कभी भी उच्च पद पर नहीं जा सकेगा. अगर एसटी-एससी और ओबीसी का कोई अभ्यर्थी JE के पद पर एक साथ बहाल होगा तो एसटी एससी कोटे का अभ्यर्थी चीफ इंजीनियर तक बन जाएगा लेकिन ओबीसी अभ्यर्थी एक्सक्यूटिव इंजीनियर बनते बनते हांफ जाएगा. लंबोदर महतो ने कहा कि यह मामला झारखंड हाई कोर्ट में अभी तक पेंडिंग है. फिर विधेयक कैसे लाया गया. इससे संवैधानिक व्यवस्था प्रभावित होगी.
जवाब में प्रभारी मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि प्रमोशन का मामला लंबे समय से अटका हुआ है. इस बिल को लाने का उद्देश्य बिल्कुल साफ है. अब तक सीनियरिटी तय नहीं हो पाती थी. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व के आदेशों के आलोक में इस विधेयक को तैयार किया गया है. उन्होंने विपक्ष के हंगामे पर सवाल खड़े करते हुए पूछा कि क्या ओबीसी को प्रमोशन में आरक्षण मिलता है ? फिर इस सवाल को उठाने का क्या मतलब है. उन्होंने विधेयक में परिणामी वरीयता की परिभाषा जोड़ने की बात स्वीकार की. मंत्री आलमगीर आलम ने स्पष्ट कर दिया कि प्रमोशन का दायरा 50% के कैपिंग से आगे नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रमोशन के वक्त दक्षता का भी ख्याल रखा जाएगा. साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रमोशन में आरक्षण का फायदा अखिल भारतीय सेवा से जुड़े पदाधिकारी को नहीं मिलेगा.
विधेयक में विभाग बार आंकड़ों का विवरण एकत्र करने के बाद समिति ने जो सिफारिशें दी हैं उसके मुताबिक हर स्तर पर पदोन्नति के पदों पर एसटी और एससी का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है. स्वीकृत पदोन्नति के पदों की कुल संख्या के मुकाबले एसटी और एससी का कुल प्रतिशत 4.45% और 10.04% है जो उनकी जनसंख्या का प्रतिशत क्रमश 12% और 26.2% की तुलना में बहुत कम है. समिति ने अपने सुझाव में कहा है कि आरक्षण नीति और उसके प्रावधानों का सभी विभागों द्वारा कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराने और अधिक कठोर और निरंतर निगरानी के लिए कार्मिक विभाग के तहत एक अलग कोषांग. का गठन किया जाना चाहिए.
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झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के 16 वें कार्यदिवस के मौके पर सदन में कई ऐसी बातें हुई हैं जिसे लंबे समय तक याद रखा जायेगा. गुरुवार को सदन की कार्यवाही अन्य दिनों की अपेक्षा शांतिपूर्ण बनी रही और इस दौरान सरकार की ओर से विधेयक के अलावे मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को खत्म करने के साथ साथ सदन में दलबदल मामले में स्पीकर के द्वारा स्वतः संज्ञान लिये जाने के प्रावधान को भी समाप्त करने का निर्णय लिया गया. संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत झारखंड विधानसभा दल परिवर्तन पर सदस्यता से निरहर्ता के नियम 2006 में संशोधन विधानसभा से पारित किया गया. इसके तहत अब कोई भी व्यक्ति संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर के न्यायाधिकरण में दलबदल की याचिका दायर कर सकता है.
संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि इसके बाद कोई भी व्यक्ति स्पीकर न्यायाधिकरण में शिकायत दर्ज करा सकता है.इसके अलावा पूर्व में स्पीकर के पास यह अधिकार था कि वह दलबदल मामले में स्वत संज्ञान ले सकते थे. नए संशोधन में इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है. इसके अलावे सदन में राज्य सरकार के पदों पर एससी एसटी के आरक्षण के आधार पर प्रोन्नत से संबंधित विधेयक लाया गया जिसमें ओबीसी को छोड़कर एससी एसटी को इसका लाभ देने की मंजूरी दी गई.
टीटीपीएस ललपनिया में कार्यरत कर्मियों का भी सदन में उठा मामला: विधानसभा में आजसू विधायक लंबोदर महतो ने टीटीपीएस ललपनिया में कार्यरत कर्मियों को सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिलने का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यहां कार्यरत 560 कर्मी 25 वर्षों से संविदा पर कार्यरत हैं. उन कर्मचारियों के साथ श्रम कानून का उल्लंघन हो रहा है. ना तो उन्हें ईएसआई का लाभ मिल रहा है और ना ही पेंशन, ग्रेजुटी का लाभ. सदन में सरकार के जवाब को हास्यास्पद बताते हुए लंबोदर महतो ने कहा कि आखिर इन कर्मचारियों को सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार क्यों नहीं लाभ दे रही है. सदन में मंत्री बन्ना गुप्ता का जवाब गोल मोल रहा जिसके कारण सदन में गरमागरम चर्चा होती रही. हालांकि इसको लेकर विधायक लंबोदर महतो की मांग पर विधानसभा की विशेष समिति द्वारा जांच किये जाने का निर्णय जरूर लिया गया.