रांचीः राज्य में विश्वविद्यालयों में अनुबंध पर कार्यरत सहायक प्राध्यापकों की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है. इस सहायक प्राध्यापकों को 2 साल से मानदेय नहीं मिला है. इसकी वजह विभागीय विसंगतियां है. लेकिन संबंधित विभाग विसंगतियों को दूर नहीं कर रही है, जिससे विश्वविद्यालय की ओर इन प्राध्यापकों का मानदेय क्लियर नहीं किया जा रहा है. इसके विरोध में बुधवार को अनुबंध पर बहाल प्रोफेसरों ने काला पट्टा लगाकर क्लास रहे हैं.
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राज्य के सात विश्वविद्यालयों में स्थायी प्रोफेसरों की जगह अनुबंध पर बहाली की गई, जिससे विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन का काम सुचारू रूप से चल रहा है. विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अनुबंध पर 900 से अधिक असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की गई है. लेकिन कोरोना काल के समय से ही इन प्रोफेसरों को मानदेय समय पर नहीं दिया जा रहा है. राजभवन की ओर से भी सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया है कि अनुबंध पर बहाल प्रोफेसरों को समय पर मानदेय दें. इसके बावजूद विश्वविद्यालयों की ओर से उनका मानदेय क्लियर नहीं किया जा रहा है.
साल 2018 में स्थायी नियुक्ति की जगह अनुबंध पर सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति हुई थी. राज्य के सभी विश्वविद्यालय में औसतन 200 अनुबंध प्रोफेसरों की नियुक्त की गई. अनुबंध सहायक प्रध्यापक संघ के अध्यक्ष डॉ निरंजन कुमार महतो ने कहा कि सैकड़ों शिक्षक हैं, जिन्हें समय पर मानदेय नहीं दिया जा रहा है. अनुबंध पर बहाल प्रोफेसरों को 2 साल से मानदेय नहीं मिला है. इस स्थिति में इन प्रोफेसरों की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गई है. ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में नियमित क्लास लेने के बावजूद विश्वविद्यालय का ध्यान नहीं है. उन्होंने कहा कि आक्रोशित प्रोफेसरों ने काला पट्टा लगाकर विरोध किया है. इसके बावजूद मानदेय भुगतान नहीं किया गया, तो आंदोलन करेंगे.
जनजातीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो हरि उरांव ने कहा कि 9 भाषा के अलग अलग एचओडी हैं. एक साथ सभी प्रोफेसरों की रिपोर्ट जब तक नहीं भेजेंगे, तब तक मानदेय क्लियर करने में परेशानी आएगी. हालांकि राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में भी यही स्थिति है. उन्होंने कहा कि कई विभागों में शिक्षकों को मानदेय नहीं मिल रहा है. इसपर विश्वविद्यालय प्रबंधन को ध्यान देना चाहिए.