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PRESIDENTIAL ELECTION: झारखंड में आदिवासी राष्ट्रपति प्रत्याशी पर सरकार में विभेद, कहां तक साथ जाएगी जेएमएम-केंद्र की राह - मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

राष्ट्रपति चुनाव 2022 में आदिवासी राष्ट्रपति के सवाल पर सरकारी दल दो फाड़ हो गए. गठबंधन का एक दल विपक्ष के उम्मीदवार के साथ गया तो दूसरा केंद्र सरकार वाली पार्टी के प्रत्याशी के साथ. अब यह विभेद यहीं तक रहेगा, या आगे भी जाएगा और उससे झारखंड को क्या मिलेगा...इस पर पढ़ें ईटीवी भारत झारखंड के स्टेट हेड भूपेंद्र दूबे का विश्लेषण.

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झारखंड की राजनीति
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Published : Jul 22, 2022, 5:41 PM IST

Updated : Jul 22, 2022, 6:14 PM IST

रांचीः राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में द्रौपदी मुर्मू जीत कर देश के लिए महामहिम बन गईं हैं, झारखंड में जिस सियासत को राष्ट्रपति चुनाव के लिए जगह मिली थी, उसमें पक्ष और विपक्ष दोनों की लड़ाई में झारखंड ही था. झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू और झारखंड के रहने वाले विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा, सीधे मैदान में थे. झारखंड राष्ट्रपति के चुनाव में जीत हार के पैमाने पर हर गुणा गणित के साथ जुड़ा था. अब जो परिणाम आए हैं, उसमें झारखंड से संबंधित एक प्रत्याशी जीत गया तो दूसरा हार गया. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि झारखंड हार गया या जीत गया!

राजनीतिक कलाबाजीः झारखंड की चल रही सरकार को झारखंड की जनता ने अपने विकास के लिए चुना है. कहने के लिए झारखंड आदिवासी राज्य है तो संभव है कि आदिवासी समाज की हर नीति, विकास की योजना, दी जाने वाली सुविधा, मिलने वाली सेवाएं उनको मिले इस पर जोर होगा. इसी पर झारखंड की चुनी हुई सरकार चलेगी और चल भी रही है, झारखंड की जनता का यह मुद्दा बना रहे इसी को ध्यान में रखकर सूबे की जनता ने इस सरकार को चुना भी था लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में चल रही झारखंड की सरकार में राजनीतिक दलों का जो विभेद दिखा उसमें झारखंड की जीत और झारखंड की हार दोनों सामाजिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में एक जगह तो बना ही रही है. क्यों कि साथ होने के बाद भी विरोध में वोट देना राजनीति में ही संभव है और यह राजनीति झारखंड की चल रही सरकार में भी दिखा है.

ये भी पढ़ें-नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की झारखंड राजभवन से जुड़ी यादें, शौर्य, शांति, प्रकृति और शहादत को दिया स्थान

बात झारखंड की करें तो यहां पर गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का नारा देकर 2014 के चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली थी, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंडियों ने नियंता बदल दिया. हेमंत सोरेन इसे बार-बार कहते भी हैं, लेकिन आदिवासी राष्ट्रपति के नाम पर हेमंत सोरेन की चल रही सरकार में जिस तरीके का विभेद दिखा है वह एक बात को तो साफ-साफ दर्शाता है कि सामाजिक व्यवस्था में बातों के चाहे जो मायने हों, लेकिन राजनीति की जीत हार का विषय सिर्फ उसी आधार पर तय होता है जो अपने वोट बैंक के लिए फायदेमंद हो. झारखंड की राजनीति भी इससे आगे नहीं जा पाई क्योंकि सियासत का द्वंद्व राष्ट्रपति चुनाव में हेमंत सोरेन के सामने भी उसी तरीके से खड़ा था.

झारखंड की राजनीति कांग्रेस के लिए बिना कहे विभेद पर सियासत की हर कहानी को कह रहा था, पार्टी की नीति से अलग जाना झारखंड कांग्रेस के बस के बाहर की बात थी इसलिए कांग्रेस के लोगों ने मतदान वहीं किया जहां पार्टी ने कहा था. सरकार भले ही साथ हो . झारखंड में जिस जीत के लिए आज जश्न मनाया जा रहा है ढोल नगाड़े बजाए जा रहे हैं, मिठाई लड्डू बांटा जा रहा है, वह हेमंत कैबिनेट में नहीं होगा क्योंकि कैबिनेट में एक वर्ग ऐसा है जो यह नहीं चाहता था कि द्रौपदी मुर्मू जीते, लेकिन एक वर्ग ऐसा है जो आदिवासी समाज का हिमायती है. और वह चाहता था कि द्रौपदी मुर्मू जीते, कैबिनेट के इस विभेद का एक बड़ा स्वरूप यह भी है कि आदिवासी समाज के लिए काम करने का एक साथ दावा करने वाले दोनों राजनीतिक दल जो सरकार में हैं साथ साथ चल रहे हैं लेकिन आदिवासी समाज की महिला राष्ट्रपति बनती है वहां विभेद है. यह अलग बात है कि झारखंड में विपक्ष से डाले गए 17 वोट, पार्टी में होने और जाति में होने की एक अलग कहानी कहते हैं.

समाज को दिशा दे रहीं मुर्मूः झारखंड के विकास वाली राजनीति में जाति को बहुत आयाम मिलेगा ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जाति के विकास से समाज का विकास नहीं होगा लेकिन समाज के विकास के लिए सभी जातियों के विकास का होना जरूरी है. द्रौपदी मुर्मू संघर्ष और अपने हौसले से लड़कर आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं, वैसे समाज और जाति के विकास का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जहां आज भी अंधविश्वास की एक बहुत बड़ी खाई है. जिससे बाहर निकलना इस समाज के लिए काफी मुश्किल है. द्रौपदी मुर्मू ऐसे समाज के लिए एक प्रतीक चिन्ह हैं, जो समाज को दिशा दे रहीं हैं कि हौसले से किसी भी उड़ान को जीता जा सकता है. अब झारखंड की सियासत में यह बातें काफी अहम हो गईं हैं कि जिस द्रौपदी मुर्मू के विरोध के लिए सरकार चलाकर उससे बनने वाली नीति ही दो राह पर बढ़ गई है. राजनीति में जिस तरह की चीजें चली हैं वह आगे सिर्फ विकास के लिए चले तो झारखंड जीत जाएगा लेकिन अगर यह विभेद चलती हुई सरकार में नीतियों के साथ भी खड़ा हो गया तो आदिवासी समाज का यह चेहरा जीत कर के भी हार जाएगा, क्योंकि कांग्रेस के लोगों ने यह पहले भी कह दिया था कि चाहे रामनाथ कोविंद का मामला हो या फिर द्रोपदी मुर्मू का इनके आने से क्या होगा. डॉ अजय कुमार का बयान काफी चर्चा में भी रहा है जो कहीं न कहीं इस बात को दर्शाता है कि सियासत का रंग चल रही झारखंड की सरकार में अपने मुद्दे को लेकर किस तरीके से खड़ी है.

केंद्र का साथ देने पर क्या मिलेगाः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीत के बाद यह भी काफी चर्चा में है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के तमाम नेताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बधाई दी उनके निर्णय और नीतियों को सराहा और यह कहा कि जो निर्णय हेमंत सोरेन ने लिया वह काफी सही है और इसकी जरूरत भी थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोग जो कैबिनेट में मंत्री हैं अपने मुख्यमंत्री को इसी तरह से बधाई दिए हैं और दे रहे हैं, लेकिन हेमंत कैबिनेट के और ऐसे मंत्री जो हेमंत कैबिनेट में मंत्री हैं लेकिन हेमंत की उस बात के साथ नहीं थे जो पार्टी के आधार पर था. वह हेमंत सोरेन को द्रौपदी मुर्मू की जीत पर बधाई देंगे या चुप रहेंगे यह तो अंदर खाने की बात है जो संभवतः बाहर ही नहीं आए, लेकिन पूरी सरकार जब एक मंच पर बैठेगी तो दो चीजें साथ साथ हैं एक यह कि जो हेमंत सोरेन के निर्णय पर झारखंड में जीता गया है और दूसरा तबका तो झारखंड में हारा है लेकिन नीतियों को बनाने में हेमंत के साथ है. इस विभेद के धुंध में विकास की नीतियां में यह जरूरी है अगर यह नीतियां राजनीतिक विभेद के आधार पर नहीं उलझीं तो झारखंड जीत जाएगा और उलझन वाली डोर ने कहीं गांठ ले ली तो आदिवासी समाज को जिता कर भी झारखंड हार जाएगा. अब देखना है जाति आधारित राजनीति से अलग जाकर संघर्ष वाली राजनीति में झारखंड ने जिस तरीके से द्रौपदी मुर्मू को अपना सहयोग दे करके उन्हें देश का पहला नागरिक बना दिया है विकास की राजनीति में झारखंड पूरे देश में पहले नंबर पर जाकर कब बैठता है, यह भी सीएम ने देवघर में कहा था कि केन्द्र साथ दे और झारखंड साथ चले तो 5 से 7 साल में झारखंड पूरे देश में सबसे आगे होगा. देश को पहला नागरिक देने में झारखंड केन्द्र के साथ रहा है और देखना होगा झारखंड के खाते में क्या आता है.

रांचीः राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में द्रौपदी मुर्मू जीत कर देश के लिए महामहिम बन गईं हैं, झारखंड में जिस सियासत को राष्ट्रपति चुनाव के लिए जगह मिली थी, उसमें पक्ष और विपक्ष दोनों की लड़ाई में झारखंड ही था. झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू और झारखंड के रहने वाले विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा, सीधे मैदान में थे. झारखंड राष्ट्रपति के चुनाव में जीत हार के पैमाने पर हर गुणा गणित के साथ जुड़ा था. अब जो परिणाम आए हैं, उसमें झारखंड से संबंधित एक प्रत्याशी जीत गया तो दूसरा हार गया. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि झारखंड हार गया या जीत गया!

राजनीतिक कलाबाजीः झारखंड की चल रही सरकार को झारखंड की जनता ने अपने विकास के लिए चुना है. कहने के लिए झारखंड आदिवासी राज्य है तो संभव है कि आदिवासी समाज की हर नीति, विकास की योजना, दी जाने वाली सुविधा, मिलने वाली सेवाएं उनको मिले इस पर जोर होगा. इसी पर झारखंड की चुनी हुई सरकार चलेगी और चल भी रही है, झारखंड की जनता का यह मुद्दा बना रहे इसी को ध्यान में रखकर सूबे की जनता ने इस सरकार को चुना भी था लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में चल रही झारखंड की सरकार में राजनीतिक दलों का जो विभेद दिखा उसमें झारखंड की जीत और झारखंड की हार दोनों सामाजिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में एक जगह तो बना ही रही है. क्यों कि साथ होने के बाद भी विरोध में वोट देना राजनीति में ही संभव है और यह राजनीति झारखंड की चल रही सरकार में भी दिखा है.

ये भी पढ़ें-नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की झारखंड राजभवन से जुड़ी यादें, शौर्य, शांति, प्रकृति और शहादत को दिया स्थान

बात झारखंड की करें तो यहां पर गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का नारा देकर 2014 के चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली थी, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंडियों ने नियंता बदल दिया. हेमंत सोरेन इसे बार-बार कहते भी हैं, लेकिन आदिवासी राष्ट्रपति के नाम पर हेमंत सोरेन की चल रही सरकार में जिस तरीके का विभेद दिखा है वह एक बात को तो साफ-साफ दर्शाता है कि सामाजिक व्यवस्था में बातों के चाहे जो मायने हों, लेकिन राजनीति की जीत हार का विषय सिर्फ उसी आधार पर तय होता है जो अपने वोट बैंक के लिए फायदेमंद हो. झारखंड की राजनीति भी इससे आगे नहीं जा पाई क्योंकि सियासत का द्वंद्व राष्ट्रपति चुनाव में हेमंत सोरेन के सामने भी उसी तरीके से खड़ा था.

झारखंड की राजनीति कांग्रेस के लिए बिना कहे विभेद पर सियासत की हर कहानी को कह रहा था, पार्टी की नीति से अलग जाना झारखंड कांग्रेस के बस के बाहर की बात थी इसलिए कांग्रेस के लोगों ने मतदान वहीं किया जहां पार्टी ने कहा था. सरकार भले ही साथ हो . झारखंड में जिस जीत के लिए आज जश्न मनाया जा रहा है ढोल नगाड़े बजाए जा रहे हैं, मिठाई लड्डू बांटा जा रहा है, वह हेमंत कैबिनेट में नहीं होगा क्योंकि कैबिनेट में एक वर्ग ऐसा है जो यह नहीं चाहता था कि द्रौपदी मुर्मू जीते, लेकिन एक वर्ग ऐसा है जो आदिवासी समाज का हिमायती है. और वह चाहता था कि द्रौपदी मुर्मू जीते, कैबिनेट के इस विभेद का एक बड़ा स्वरूप यह भी है कि आदिवासी समाज के लिए काम करने का एक साथ दावा करने वाले दोनों राजनीतिक दल जो सरकार में हैं साथ साथ चल रहे हैं लेकिन आदिवासी समाज की महिला राष्ट्रपति बनती है वहां विभेद है. यह अलग बात है कि झारखंड में विपक्ष से डाले गए 17 वोट, पार्टी में होने और जाति में होने की एक अलग कहानी कहते हैं.

समाज को दिशा दे रहीं मुर्मूः झारखंड के विकास वाली राजनीति में जाति को बहुत आयाम मिलेगा ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जाति के विकास से समाज का विकास नहीं होगा लेकिन समाज के विकास के लिए सभी जातियों के विकास का होना जरूरी है. द्रौपदी मुर्मू संघर्ष और अपने हौसले से लड़कर आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं, वैसे समाज और जाति के विकास का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जहां आज भी अंधविश्वास की एक बहुत बड़ी खाई है. जिससे बाहर निकलना इस समाज के लिए काफी मुश्किल है. द्रौपदी मुर्मू ऐसे समाज के लिए एक प्रतीक चिन्ह हैं, जो समाज को दिशा दे रहीं हैं कि हौसले से किसी भी उड़ान को जीता जा सकता है. अब झारखंड की सियासत में यह बातें काफी अहम हो गईं हैं कि जिस द्रौपदी मुर्मू के विरोध के लिए सरकार चलाकर उससे बनने वाली नीति ही दो राह पर बढ़ गई है. राजनीति में जिस तरह की चीजें चली हैं वह आगे सिर्फ विकास के लिए चले तो झारखंड जीत जाएगा लेकिन अगर यह विभेद चलती हुई सरकार में नीतियों के साथ भी खड़ा हो गया तो आदिवासी समाज का यह चेहरा जीत कर के भी हार जाएगा, क्योंकि कांग्रेस के लोगों ने यह पहले भी कह दिया था कि चाहे रामनाथ कोविंद का मामला हो या फिर द्रोपदी मुर्मू का इनके आने से क्या होगा. डॉ अजय कुमार का बयान काफी चर्चा में भी रहा है जो कहीं न कहीं इस बात को दर्शाता है कि सियासत का रंग चल रही झारखंड की सरकार में अपने मुद्दे को लेकर किस तरीके से खड़ी है.

केंद्र का साथ देने पर क्या मिलेगाः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीत के बाद यह भी काफी चर्चा में है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के तमाम नेताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बधाई दी उनके निर्णय और नीतियों को सराहा और यह कहा कि जो निर्णय हेमंत सोरेन ने लिया वह काफी सही है और इसकी जरूरत भी थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोग जो कैबिनेट में मंत्री हैं अपने मुख्यमंत्री को इसी तरह से बधाई दिए हैं और दे रहे हैं, लेकिन हेमंत कैबिनेट के और ऐसे मंत्री जो हेमंत कैबिनेट में मंत्री हैं लेकिन हेमंत की उस बात के साथ नहीं थे जो पार्टी के आधार पर था. वह हेमंत सोरेन को द्रौपदी मुर्मू की जीत पर बधाई देंगे या चुप रहेंगे यह तो अंदर खाने की बात है जो संभवतः बाहर ही नहीं आए, लेकिन पूरी सरकार जब एक मंच पर बैठेगी तो दो चीजें साथ साथ हैं एक यह कि जो हेमंत सोरेन के निर्णय पर झारखंड में जीता गया है और दूसरा तबका तो झारखंड में हारा है लेकिन नीतियों को बनाने में हेमंत के साथ है. इस विभेद के धुंध में विकास की नीतियां में यह जरूरी है अगर यह नीतियां राजनीतिक विभेद के आधार पर नहीं उलझीं तो झारखंड जीत जाएगा और उलझन वाली डोर ने कहीं गांठ ले ली तो आदिवासी समाज को जिता कर भी झारखंड हार जाएगा. अब देखना है जाति आधारित राजनीति से अलग जाकर संघर्ष वाली राजनीति में झारखंड ने जिस तरीके से द्रौपदी मुर्मू को अपना सहयोग दे करके उन्हें देश का पहला नागरिक बना दिया है विकास की राजनीति में झारखंड पूरे देश में पहले नंबर पर जाकर कब बैठता है, यह भी सीएम ने देवघर में कहा था कि केन्द्र साथ दे और झारखंड साथ चले तो 5 से 7 साल में झारखंड पूरे देश में सबसे आगे होगा. देश को पहला नागरिक देने में झारखंड केन्द्र के साथ रहा है और देखना होगा झारखंड के खाते में क्या आता है.

Last Updated : Jul 22, 2022, 6:14 PM IST
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