रांचीः प्रकृति से प्रेम, आपसी सौहार्द और सामूहिकता का पर्व सरहुल पूरे झारखंड में हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है. झारखंड के बड़े त्योहारों में से एक सरहुल को लेकर हर तरफ अखड़ा सजा हुआ है तो शाम में जुलूस निकालने की तैयारी चल रही है. इन सब के बीच आदिवासी धर्मगुरु जगलाल पहान ने परंपरा के अनुसार सुबह में पूजा अर्चना की और बीते कल घड़ों में रखे पानी का सुबह में मुआयना करने के बाद इस वर्ष मानसून की सामान्य बारिश की भविष्यवाणी की.
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प्रकृति पर्व सरहुल, हमें प्रकृति के प्रति प्रेम, आस्था, विश्वास, सम्मान और उपासना के भाव को प्रदर्शित करने का भी त्योहार है. दूसरी ओर यह जनजातीय समुदाय के सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन का भी पर्याय इस मायने में है क्योंकि यह उनके खेती बाड़ी और बारिश से जुड़ा है. चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला त्योहार सरहुल के दिन जनजातीय आदिवासी समाज जहां नूतन वर्ष का स्वागत करते हैं. वहीं धरती को माता एवं सूर्य को पिता मानकर उनकी आराधना करते हैं.
सरहुल पर्व में ही आदिवासी और जनजाति समुदाय धरती मां और भगवान सूर्य से फल-फूल एवं पत्तियों के इस्तेमाल की इजाजत भी मांगते हैं. जगलाल पहान के अनुसार इससे पहले फल-फूल का सेवन वर्जित रहता है. सरहुल पूजा के साथ ही नए वर्ष का कृषि चक्र भी शुरू हो जाता है. सरहुल में मुख्यतः तीन दिन का आयोजन होता है, जिसमें पहले दिन जनजातीय समाज के लोग उपवास रखते हैं. सुबह खेत एवं जलाशयों में जाकर केकड़ा एवं मछली पकड़ते हैं. पूजा के बाद रसोई में उसे सुरक्षित रख देते हैं. ऐसी मान्यता है कि फसल बोने के समय केकड़ा को गोबर पानी से धोया जाता है, उसके बाद उसी गोबर पानी से फसलों के बीज को भीगा कर खेतों में डाला जाता है.
जगलाल पहान ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि ऐसी मान्यता है कि केकड़ा के 8-10 पैरों की तरह फसल में भी ढेर सारी जड़े निकलेंगी और बालियां भी खूब होंगी, अच्छी फसल होगी. इसके साथ साथ यह भी मानना है कि पहले धरती पर पानी ही पानी था, केकड़े ने मिट्टी बनाई और धरती वर्तमान स्वरूप में आया. पहान के अनुसार चाहे कितना भी अकाल पड़ जाएं, जहां केकड़ा होगा वहां संकेत है कि पानी जरूर होगा.
यही वजह है कि जनजातीय समाज सरहुल में अपने पूर्वजों के साथ साथ केकड़े की भी आज पूजा करते हैं. सरहुल के दूसरे दिन पूजा के बाद घड़े के पानी को देखकर पहान इस वर्ष बारिश का पूर्वानुमान करते हैं. इसी दिन दोपहर बाद सरहुल की शोभा यात्रा निकली जाती है. सरहुल के तीसरे दिन फूल खोंसी का रस्म के साथ त्योहार का समापन हो जाता है. सरना स्थल पर सरहुल की विशेष पूजा और रांची के प्रमुख पहान, जगलाल पहान से बात की ईटीवी भारत रांची संवाददाता उपेंद्र कुमार ने.