रांचीः झारखंड में उद्योग लगाने के नाम पर ली गई सरकारी या गैरसरकारी जमीन पर निर्धारित 12 वर्षों में कंपनी स्थापित नहीं की जाती है, तो रैयत को जमीन लौटाने का प्रावधान है. इस दिशा में राज्य सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी है.
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बुधवार को सरायकेला जिले के एक मामले में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 की धारा 49(5) के तहत पीठासीन पदाधिकारी बने मंत्री चम्पाई सोरेन की अदालत ने अहम फैसला सुनाते हुए रैयत को जमीन वापस करने का आदेश दिया है.
क्या है मामला
2005 में पूर्वी सिंहभूम के खूंटाडीह के रहनेवाले जमीन मालिक बिजॉय सिंह ने मेसर्स भालोटिया इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड के साथ करार करते हुए 5.63 एकड़ जमीन उद्योग लगाने के लिए दिया था. कंपनी की ओर से सेवा-शर्त के अनुसार 12 वर्षों के बाद तक कोई भी इंडस्ट्री जमीन पर नहीं लगाई गई. जमीन पर काम होता नहीं देख वर्ष 2015 में मामला सरायकेला उपायुक्त न्यायालय पहुंचा, ताकि रैयत को जमीन वापस हो सके. सरायकेला उपायुक्त न्यायालय की अनुशंसा पर पीठासीन पदाधिकारी सह मंत्री चंपाई सोरेन की अदालत में यह मामला अंतिम स्वीकृति के लिए मार्च 2021 में पहुंचा.
चंपई सोरेन की अदालन का फैसला
चंपाई सोरेन की अदालत ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कंपनी को जमीन रैयत को वापस करने का आदेश दिया है. भूमि एवं राजस्व विभाग के सचिव एल खियांग्ते ने जानकारी देते हुए कहा कि कंपनी ने एकरारनामा के मुताबिक 12 वर्षों तक कोई कार्य नहीं किया. सेवा-शर्त के अनुरूप काम नहीं हुआ, तो मामला अदालत तक पहुंचा. अदालत ने रैयत की करीब 5.63 एकड़ जमीन वापस करने का आदेश दिया है. उन्होंने कहा कि सीएनटी एक्ट के तहत जो जमीन लिये गए, उसपर करार के मुताबिक ना उद्योग लगा और ना ही कोई कार्य हुए. इसलिए एकरारनाना की सेवा-शर्तों का उल्लंघन मानते हुए अदालत ने जमीन वापस करने का फैसला सुनाया है. इससे पहले भी बड़कागांव के मामले में 32 रैयतों की जमीन वापस कराई गई है.