रांची: आईसीएआर-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आईआईएफएसआर) मेरठ की तरफ से एकीकृत कृषि प्रणाली आधारित शोध विषयों पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में अखिल भारतीय समन्वित एकीकृत कृषि प्रणाली परियोजना से जुड़े 70 शोध केन्द्रों के करीब 200 कृषि वैज्ञानिकों ने भाग लिया. कार्यशाला का उद्घाटन आईसीएआर महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने किया.
उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए सिंचित एवं असिंचित स्थिति के अनुकूल करीब 60 एकीकृत कृषि प्रणाली को चिन्हित एवं विकसित किया गया है. शोध में देखा गया है कि देश के किसानों की आय बढ़ाने में एकीकृत कृषि प्रणाली कारगर साबित हो रहीं हैं. कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने क्षेत्रवार एकीकृत कृषि प्रणाली पर विस्तार से चर्चा की.
झारखंड के लिए जल संग्रह वाली प्रणाली बेहतर
आईआईएफएसआर निदेशक डॉ. एएस पनवार ने बताया कि झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए वर्षा जल संग्रह आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली उपयोगी पाई गई है. इसमें गाय, भैंस, भेड़, बकरी, मुर्गी, मछली एवं बत्तख पालन का समावेश है. मॉडल में 6-7 अवयव शामिल हैं, जो छोटे किसानों के अनुकूल नहीं है. छोटे एवं सीमांत किसानों के 2-3 अवयवों वाली प्रणाली चिन्हित की गई है. यह मॉडल केवल खेती से ज्यादा लाभकारी है. इसे समय एवं वातावरण के अनुरूप अपनाने की आवश्यकता है.
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ट्रेनिंग पर जोर
कार्यशाला में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय केंद्र के डीन एग्रीकल्चर डॉ. एमएस यादव और वैज्ञानिक डॉ. आरपी मांझी ने भाग लिया और रांची केंद्र की शोध उपलब्धियों को रखा. डॉ. एमएस यादव ने बताया कि झारखंड की जलवायु के अनुरूप देसी गाय (शुद्ध नस्ल, स्थानीय फसल, छोटा बगीचा, मछली पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, बकरी पालन, सूकर पालन एवं फलदार बगीचा आधारित 5 एकीकृत कृषि प्रणाली को चिन्हित किया गया है. जिसे एक हेक्टेयर भूमि में आसानी से किसान अपना सकते हैं. डॉ. यादव ने बताया कि कार्यशाला में आईसीएआर उपमहानिदेशक डॉ. एसके चौधरी भी शामिल हुए. कार्यशाला के समापन के अवसर पर क्षेत्रीय स्तर पर एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल के प्रसार में स्थानीय राज्य सरकार एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के सहयोग एवं समन्वय से ट्रेनिंग, प्रदर्शनी एवं प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया.