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1932 और ओबीसी आरक्षण की SC नहीं कर सकता समीक्षा, सदन में सरकार ने बताई वजह, पढ़ें रिपोर्ट

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Published : Dec 23, 2022, 2:37 PM IST

झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र (Winter session of jharkhand assembly) के अंतिम दिन बीजेपी विधायक विधायक अमित मंडल 1932 आधारित स्थानीयता और ओबीसी आरक्षण बिल पर सवाल उठाये. इसके जवाब में संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि दोनों विधेयक और प्रस्ताव को भी संसद से पारित कराना आवश्यक होगा. उन्होंने कहा कि नवीं अनुसूची में शामिल विधेयकों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्राप्त है.

Minister Alamgir Alam
1932 और ओबीसी आरक्षण की SC नहीं कर सकता समीक्षा
क्या कहते हैं मंत्री आलमगीर आलम

रांचीः झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र (Winter session of jharkhand assembly) के अंतिम दिन 1932 आधारित स्थानीयता और ओबीसी आरक्षण बिल से जुड़े बीजेपी विधायक अमित मंडल के सवाल पर संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने सदन में जवाब दिया. उन्होंने कहा कि स्थानीयता और आरक्षण में संशोधन से संबंधित दोनों विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद लागू करने का प्रस्ताव है. इसी क्रम में दोनों विधेयक और प्रस्ताव को भी संसद से पारित कराना आवश्यक होगा. उन्होंने कहा कि नवीं अनुसूची में शामिल विधेयकों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्राप्त है.

यह भी पढ़ेंः झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्रः सदन के बाहर जेएमएम विधायक ने किया प्रदर्शन

आलमगीर आलम ने कहा कि 1973 के बाद शामिल किए गए विधेयकों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. लेकिन उनमें सिर्फ संविधान के मूल ढांचे यानी बेसिक स्ट्रक्चर जैसे संसदीय लोकतंत्र, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता में उल्लंघन और अनुच्छेद 14, 19 और 21 में प्रदान किए गए अधिकारों के उल्लंघन तक ही न्यायिक समीक्षा सीमित रहेगी. वर्तमान में नवीं अनुसूची में 284 कानून शामिल है, जिन्हें यह सुरक्षा कवच प्राप्त है. संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि दोनों ही विधेयक का संबंध संविधान के अनुच्छेद 16 से है और संविधान विशेषज्ञों के अनुसार नवीं अनुसूची में इसे शामिल कर दिए जाने से दोनों विधेयकों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकेगी.

संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 1993 में इसी तरह का विधेयक विधानसभा से पारित किया था, जिसे नवीं अनुसूची में शामिल कराया गया. इसके बाद से तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जा रहा है. इसी वजह से झारखंड सरकार ने भी दोनों विधेयक को नवीं अनुसूची में शामिल करने की कार्रवाई के तहत प्रक्रिया शुरू की है. संसदीय कार्य मंत्री ने सदन को आश्वस्त कराते हुए कहा कि विधि विभाग से दोनों विधेयकों पर टिप्पणी का पर्याप्त निराकरण करने के बाद ही इसे राज्यपाल के समक्ष भेजा गया है.

हालांकि, दोनों विधेयक पर सरकार की तरफ से जवाब आने के बावजूद बीजेपी विधायक वेल में जमे रहे और सरकार पर गलत जवाब देने का आरोप लगाते रहे. दरअसल बीजेपी विधायक अमित मंडल ने पूछा था कि जब दोनों विधेयक संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल हुए ही नहीं है तो किस आधार पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खतियानी जोहार यात्रा निकालकर लोगों को कह रहे हैं कि राज्य में दोनों विधेयक लागू हो गया है. हालांकि सरकार की तरफ से इस पर कोई जवाब नहीं आया.

अमित मंडल ने पूछा कि राज्य के विधि विभाग ने दोनों विधेयक पर सवाल क्यों खड़े किए थे. इस पर संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि संशोधन की समीक्षा के क्रम में विधि विभाग ने बताया था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 16 से जुड़े लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इस तरह का प्रावधान लोक नियोजन में प्रतिबंधित है और ऐसा करने का अधिकार सिर्फ पार्लियामेंट को है. संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि इसी वजह से दोनों विधेयक को पार्लियामेंट से पास कराकर नौवीं अनुसूची में शामिल कराने की कवायद की जा रही है.

भाजपा विधायक अमित मंडल ने कहा कि संसदीय कार्य मंत्री जिस प्रक्रिया का हवाला दे रहे हैं वह गलत है. उन्होंने कहा कि पार्लियामेंट से पारित कराकर नौंवी अनुसूची में शामिल कराने से पहले संबंधित सरकार को केंद्र को संकल्प पारित कर भेजना होता है. बाद में संकल्प को मान्य कराने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पहल करता है. इसके बाद विधेयक की कॉपी पार्लियामेंट को भेजी जाती है. लेकिन झारखंड में 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता और आरक्षण संशोधन बिल को सीधे विधानसभा से पारित करा दिया गया.

क्या कहते हैं मंत्री आलमगीर आलम

रांचीः झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र (Winter session of jharkhand assembly) के अंतिम दिन 1932 आधारित स्थानीयता और ओबीसी आरक्षण बिल से जुड़े बीजेपी विधायक अमित मंडल के सवाल पर संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने सदन में जवाब दिया. उन्होंने कहा कि स्थानीयता और आरक्षण में संशोधन से संबंधित दोनों विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद लागू करने का प्रस्ताव है. इसी क्रम में दोनों विधेयक और प्रस्ताव को भी संसद से पारित कराना आवश्यक होगा. उन्होंने कहा कि नवीं अनुसूची में शामिल विधेयकों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्राप्त है.

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आलमगीर आलम ने कहा कि 1973 के बाद शामिल किए गए विधेयकों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. लेकिन उनमें सिर्फ संविधान के मूल ढांचे यानी बेसिक स्ट्रक्चर जैसे संसदीय लोकतंत्र, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता में उल्लंघन और अनुच्छेद 14, 19 और 21 में प्रदान किए गए अधिकारों के उल्लंघन तक ही न्यायिक समीक्षा सीमित रहेगी. वर्तमान में नवीं अनुसूची में 284 कानून शामिल है, जिन्हें यह सुरक्षा कवच प्राप्त है. संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि दोनों ही विधेयक का संबंध संविधान के अनुच्छेद 16 से है और संविधान विशेषज्ञों के अनुसार नवीं अनुसूची में इसे शामिल कर दिए जाने से दोनों विधेयकों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकेगी.

संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 1993 में इसी तरह का विधेयक विधानसभा से पारित किया था, जिसे नवीं अनुसूची में शामिल कराया गया. इसके बाद से तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जा रहा है. इसी वजह से झारखंड सरकार ने भी दोनों विधेयक को नवीं अनुसूची में शामिल करने की कार्रवाई के तहत प्रक्रिया शुरू की है. संसदीय कार्य मंत्री ने सदन को आश्वस्त कराते हुए कहा कि विधि विभाग से दोनों विधेयकों पर टिप्पणी का पर्याप्त निराकरण करने के बाद ही इसे राज्यपाल के समक्ष भेजा गया है.

हालांकि, दोनों विधेयक पर सरकार की तरफ से जवाब आने के बावजूद बीजेपी विधायक वेल में जमे रहे और सरकार पर गलत जवाब देने का आरोप लगाते रहे. दरअसल बीजेपी विधायक अमित मंडल ने पूछा था कि जब दोनों विधेयक संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल हुए ही नहीं है तो किस आधार पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खतियानी जोहार यात्रा निकालकर लोगों को कह रहे हैं कि राज्य में दोनों विधेयक लागू हो गया है. हालांकि सरकार की तरफ से इस पर कोई जवाब नहीं आया.

अमित मंडल ने पूछा कि राज्य के विधि विभाग ने दोनों विधेयक पर सवाल क्यों खड़े किए थे. इस पर संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि संशोधन की समीक्षा के क्रम में विधि विभाग ने बताया था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 16 से जुड़े लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इस तरह का प्रावधान लोक नियोजन में प्रतिबंधित है और ऐसा करने का अधिकार सिर्फ पार्लियामेंट को है. संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि इसी वजह से दोनों विधेयक को पार्लियामेंट से पास कराकर नौवीं अनुसूची में शामिल कराने की कवायद की जा रही है.

भाजपा विधायक अमित मंडल ने कहा कि संसदीय कार्य मंत्री जिस प्रक्रिया का हवाला दे रहे हैं वह गलत है. उन्होंने कहा कि पार्लियामेंट से पारित कराकर नौंवी अनुसूची में शामिल कराने से पहले संबंधित सरकार को केंद्र को संकल्प पारित कर भेजना होता है. बाद में संकल्प को मान्य कराने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पहल करता है. इसके बाद विधेयक की कॉपी पार्लियामेंट को भेजी जाती है. लेकिन झारखंड में 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता और आरक्षण संशोधन बिल को सीधे विधानसभा से पारित करा दिया गया.

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